भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिवस यानी कृष्ण जन्माष्टमी हर वर्ष भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इसीलिए इसे कृष्ण जन्माष्टमी या जन्माष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। जैसा कि आप सभी जानते ही है कि राधा और कृष्ण सिर्फ नाम नहीं बल्कि एक एहसास है। एहसास है उस प्रेम का जो समय के साथ बीत तो गया लेकिन भुलाया नहीं जा सका। प्रेम इतना गहरा है कि जब राधा ने श्रीकृष्ण से विवाह न करने का पूछा तो भगवान ने कहा वे उनकी आत्मा है, कोई अपनी आत्मा से कैसे विवाह कर सकता है।
हालांकि श्रीकृष्ण ने विवाह रुकमणी, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, भद्रा और लक्ष्मणा से किया लेकिन पहचान हमेशा राधा को मिली। आखिर मिलती भी क्यों नहीं, ये वही तो राधा थीं जो श्रीकृष्ण की बांसुरी सुनकर उनकी भक्ती में लीन हो जातीं थी।
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जब श्रीकृष्ण और राधा की पहली मुलाकात हुई थी। उस समय वे सिर्फ 1 दिन के थे और राधा जी 11 माह की। कृष्ण जन्मोत्सव के मौके पर राधा अपनी मां कीर्ति के साथ नंद गांव आई थीं। उस समय श्रीकृष्ण पालने में झूल रहे थे और राधा अपनी मां की गोद से उन्हें निहार रही थीं। नंद गांव से चार मील दूर बसे बरसाना गांव के बीच संकेट गांव से राधा और कृष्ण की अमर प्रेम कहानी शुरू हुई थी। इसी जगह पर बाल गोपाल और राधा का लौकिक मिलन हुआ था। बता दें कि बरसाना को राधा जी का जन्मस्थल भी कहा गया है।
कृष्ण और राधा का एक दूसरे के बिना जीवन अधुरा था लेकिन नीति में दोनों का अलग होना लिखा जा चुका था, उसे कोई बदल ही नहीं सकता था। जब श्रीकृष्ण वृंदावन छोड़कर मथुरा चले गए तो राधा जी उन्हें हर पल याद करतीं रहती क्योंकि न राधा उन्हें देख पाती न उन्हें सुन पातीं। सालों बीत गए और आखिरकार राधा और कृष्ण का कुरुक्षेत्र में पुनर्मिलन हुआ। यहां सूर्यग्रहण के अवसर श्रीकृष्ण द्वारिका और राधा जी वृंदावन से नंद के साथ आई थीं। पुराणों में जिक्र किया गया है कि राधा जी सिर्फ श्रीकृष्ण को देखने और उनसे मिलने ही नंद के साथ कुरुक्षेत्र आई थीं।
श्रीकृष्ण 16 की उम्र के बाद राधा से कभी नहीं मिले। लेकिन राधा के साथ गुजारे 9 साल अमर प्रेम कहानी का इतिहास बन गई। मुरली मनोहर को अपनी बांसुरी पर गर्व था। राधा से जुदा होकर उन्होंने अपनी बांसुरी राधा जी को दे दी और फिर श्रीकृष्ण ने जीवन में कभी बांसुरी नहीं बजाई।
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