Gautam Adani: क्या आप अडानी ग्रुप के खिलाफ आई हिंडनबर्ग रिसर्च को भूल गए? आप कहेंगे कि गौतम अडानी के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपना बोरिया-बिस्तर ही समेट लिया है। ऐसा है, मगर जनवरी 2023 के दौरान जब हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी ग्रुप को कटघरे में खड़ा किया था, तो इंडिया समेत दुनिया के कई देशों में काफी हो-हल्ला देखने को मिला था। उस समय गौतम अडानी ने चुप्पी साध रखी थी। ऐसे में अधिकतर लोगों को यही लगा कि एक दिग्गज उद्योगपति अपने उच्चतम स्तर से नीचे गिर सकता है। मगर ‘Financial Express’ की रिपोर्ट ने आते ही सबको हैरान कर दिया है।
Gautam Adani ने हिंडनबर्ग को ऐसे दिया करारा जवाब
हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा गौतम अडानी पर किए गए तीखे हमलों से अडानी ग्रुप को भारी-भरकम नुकसान हुआ। अरबों डॉलर डूबने के साथ ही एक बड़ी पब्लिक कंपनी ने अपनी पेशकश को कैंसिल कर दिया। उस दौरान गौतम अडानी इजरायल में हाइफा पोर्ट खरीदने के लिए 1.2 बिलियन डॉलर की डील को फाइनल करने में जुटे हुए थे। माना जा रहा है कि इस डील से इजरायल और इंडिया दोनों देशों को फायदा होने की संभावना है।
रिपोर्ट की मानें, तो इस डील की वजह से चीन के बढ़ते प्रभाव को कम किया जा सकता था। बताया जा रहा है कि इजरायल के हाइफा पोर्ट के एक छोटे से कमरे में इजरायल के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘हम अपने दोस्तों की रक्षा करते हैं।’ रिपोर्ट के मुताबिक, इस छोटे से वाकया ने गौतम अडानी की सारी चिंता को दूर करने का काम किया।
गौतम अडानी ने ऑपरेशन जेपेलिन से हासिल की बड़ी जीत
रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि Gautam Adani के खिलाफ इसके बाद जांच का दौर शुरू हो गया। मगर जांच में किसी का भी नाम नहीं लिया गया। मामले की जांच कर रहे अधिकारियों को जल्दी समझ में आ गया कि यह काफी कठिन मसला है। इसमें नामी वकील, पत्रकार, हेज फंड समेत बड़ी राजनीतिक हस्तियां भी शामिल हैं। इसके बाद साल 2024 के अंत में जब गौतम अडानी का मामला ठंडा पड़ गया, तो खबर आई कि हिंडनबर्ग रिसर्च हमेशा के लिए बंद हो गया है।
ऐसे में ऑपरेशन जेपेलिन के तहत इस मामले की जड़ को खंगाला गया। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अडानी ग्रुप के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च की मदद करने वालों में चीन और वाशिंगटन में राजनीतिक हस्तियों सहित विदेशी हितों से संबंध रखने वाली कई हस्तियां शामिल थी। भारत के उद्योद जगत में ऑपरेशन जेपेलिन को कॉर्पोरेट काउंटर नहीं, बल्कि मॉर्डन जमाने का करारा जवाब माना जा रहा है। इसमें व्यापार, कूटनीति और साइबर रणनीति एक साथ इस्तेमाल किया गया।