भारत में मुसलमान शासकों के राज पर एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं। सवाल ये है कि, भारत को मुसलमान शासकों का ग़ुलाम बताना आख़िर कितना सही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 सितंबर को व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाक़ात में कहा कि, वो भारत में बाइडन सरनेम से जुड़े कुछ दस्तावेज़ लेकर आए हैं। इस पर राष्ट्रपति बाइडन ने हंसते हुए पूछा कि क्या हम रिश्तेदार हैं, जवाब में पीएम मोदी ने हंसते हुए कहा, हां। दोनों नेताओं की इस मुलाक़ात की ख़बर को ट्वीट करते हुए पाकिस्तान के नामी-गिरामी पत्रकार हामिद मीर ने लिखा, यह अच्छा है कि नरेंद्र मोदी ने बाइडन को उनके पारिवारिक संबंधों का दस्तावेज़ सौंपा। भारतीय प्रधानमंत्री भारत में रहने वाले मुसलमानों के अरब शासकों के साथ पारिवारिक संबंध भी खोज सकते हैं और उन पर भी गर्व कर सकते हैं।
अब आपको फरवरी 2020 का एक और वाक्या बताते हैं जो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से जुड़ा है। फ़रवरी, 2020 में तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन पाकिस्तान के दौरे पर गए तो साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस में इमरान ने बड़े गर्व से कहा कि तुर्कों ने हिन्दुस्तान पर 600 सालों तक शासन किया। इमरान ख़ान ने कहा, आपके आने से हम सबको इसलिए भी ख़ुशी हुई क्योंकि हमारी कौम समझती है कि तुर्की से हमारे रिश्ते सदियों से हैं। तुर्कों ने तो 600 साल तक हिन्दुस्तान पर हुकूमत की थी।
राष्ट्रपति बाइडन ने भारत में बाइडन सरनेम के बारे में कहा, उन्हें पता चला था कि ईस्ट इंडिया टी कंपनी में जॉर्ज बाइडन नाम के एक व्यक्ति कैप्टन थे। बाइडन उसी ईस्ट इंडिया कपंनी की बात कर रहे हैं, जिसने भारत को गुलाम बनाया था। दूसरी तरफ़, इमरान ख़ान ने मध्यकाल के मुस्लिम शासकों को तुर्क कहते हुए, गर्व से कहा कि उन्होंने हुकूमत की थी और इसलिए उनकी कौम को ख़ुशी मिलती है। पाकिस्तान के इतिहासकार मुबारक अली ने एक निजी चैनल से बातचीत में कहा कि, गोरों के प्रति भारत के नेताओं का इस तरह अपनापन दिखाना और मध्यकालीन मुस्लिम शासकों के प्रति पाकिस्तानियों और मुसलमानों के एक तबके में दिखने वाली गर्व की भावना, परेशान करने वाली बात है। मुबारक अली कहते हैं, जब कोई मुसलमान कहेगा कि हमने हिन्दुस्तान पर एक हज़ार सालों तक राज किया तो हिन्दू यही सोचेगा कि मुसलमान ख़ुद को यहाँ का नहीं मानते हैं। इसी ओढ़े हुए गर्व के कारण हिन्दुओं के लिए मुसलमानों को बाहरी कहना और आसान हो जाता है। मुसलमानों को सोचना चाहिए कि मध्यकालीन भारत में जो मुस्लिम शासन था वो आम मुसलमानों का शासन नहीं था। वो एक सत्ता वर्ग था। आप जब कहते हैं कि मुसलमानों ने सैकड़ों सालों तक तुम पर राज किया तो इसका यही भाव होता है कि हिन्दुओं को दबाकर रखा गया।
भारत पर किसका जुल्म ?
मुबारक अली ने आगे कहा- जिन अंग्रेज़ों ने हम पर बेइंतहा जुल्म किया, उनमें भी अब ये गर्व का भाव नहीं है जबकि मुस्लिम शासक तो भारत को अपना चुके थे। यहीं की मिट्टी को अपनी मिट्टी माना। उन मुस्लिम शासकों को लेकर मज़हबी मुसलमानों का ये गर्व भाव हिन्दुओं को चिढ़ाने वाला होता है। पाकिस्तान के स्कूलों में जो किताबें पढ़ाई जा रही हैं, उन्हें पढ़ें तो यही लगता है कि सारे मुस्लिम शासक बहादुर थे और हिन्दू उनके सामने आत्मसमर्पण करते गए, जबकि ये सच नहीं है। मुबारक अली कहते हैं, पाकिस्तान की किताबें हिन्दुओं और भारत के प्रति नफ़रत ही पैदा करती हैं। यहां के शासक वर्ग को लगता है कि मध्यकाल के मुस्लिम शासक उनके अपने थे और उन्होंने हिन्दुओं को सीधा करके रखा। यहां की मिसाइलों और हथियारों का नाम देखिए- ग़ज़नी, गोरी, ग़ज़नवी. ये मानसिकता राइट विंग हिन्दू राजनीति के लिए ऊर्जा का काम करती है और इससे भारत में रहने वाले मुसलमानों का जीना दूभर होता है।
गुलामी की जंजीरों में जकड़ा भारत
नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार 11 जून, 2014 को लोकसभा में बोल रहे थे। अपने पहले ही भाषण में मोदी ने कहा था, 12 सौ सालों की ग़ुलामी की मानसिकता परेशान कर रही है। बहुत बार हमसे थोड़ा ऊंचा व्यक्ति मिले, तो सर ऊंचा करके बात करने की हमारी ताक़त नहीं होती है। प्रधानमंत्री की इस बात ने कई सवाल एक साथ खड़े किए। क्या भारत 1200 सालों तक ग़ुलाम था, क्या भारत ब्रिटिश शासन के पहले भी ग़ुलाम था। पीएम मोदी ने जब 1200 साल की ग़ुलामी की बात कही तो उन्होंने आठवीं सदी में सिंध के हिंदू राजा पर हुए मीर क़ासिम के हमले से लेकर 1947 तक के भारत को गुलाम बताया। भारत में अंग्रेज़ों का शासनकाल मोटे तौर पर 1757 से 1947 तक माना जाता है, जो 190 साल है। इस हिसाब से गुलामी के बाकी तकरीबन एक हज़ार साल भारत ने मुस्लिम शासकों के अधीन गुज़ारे। भारत में स्कूली किताबों के मुताबिक, 1757 में पलासी के युद्ध में बंगाल के नवाब के ख़िलाफ़ अंग्रेज़ों की जीत के बाद से भारत को ग़ुलाम माना जाता है, लेकिन अब भारत में इतिहास बदलने की बात हो रही है और कहा जा रहा है कि मध्यकाल में मुस्लिम शासक आक्रांता थे और उन्होंने भारत को ग़ुलाम बनाकर रखा था।
मुसलमान शासकों की गुलामी का सच ?
भारत में मध्यकाल के जाने-माने इतिहासकार इरफ़ान हबीब कहते हैं, मध्यकाल की अलग-अलग व्याख्याएं हैं। 19वीं सदी में सांप्रदायिक इतिहास लेखन की शुरुआत हुई। ऐसा अंग्रेज़ों ने तो किया ही, हिन्दुओं और मुसलमानों ने भी किया। भारतीय इतिहास को धर्म के आधार पर बांटना कोई नई बात नहीं है। आज़ादी की लड़ाई से जुड़े लोग कहते रहे कि भारत ब्रितानी शासन का ग़ुलाम था, तो दूसरी ओर हिन्दुत्ववादी कहते हैं कि भारत में विदेशी शासन 13वीं सदी या उससे भी पहले से था। हबीब कहते हैं, इश्तियाक़ हुसैन क़ुरैशी जैसे मुस्लिम इतिहासकार मध्यकाल को मुस्लिम शासन का दौर कहते हैं। यहां तक कि मुस्लिम लीग के लोग भी कहते हैं कि उन्होंने पूरे भारत पर शासन किया। इतिहास की ऐसी व्याख्या दोनों तरफ़ से है और सच्चे राष्ट्रवादी इस व्याख्या को ख़ारिज करते हैं। इरफ़ान हबीब कहते हैं, मध्यकाल के कई शासकों का जन्म विदेशों में हुआ था लेकिन उन्होंने ख़ुद को भारतीय रंग में ढाल लिया था। आज़ादी की लड़ाई लड़ने वालों का तर्क है कि ब्रिटिश शासन उनसे पहले के मुसलमान राजाओं के दौर से बिल्कुल अलग था क्योंकि अंग्रेज़ भारत की संपत्ति बाहर ले जा रहे थे लेकिन मुसलमान बादशाहों ने भारत की संपत्ति भारत में ही रखी।