किसान आंदोलन को एक साल होने को है लेकिन न सरकार मानी और न ही किसान। आज भी दिल्ली की सीमाओं में हजारों किसान आंदोलन पर बैठे हैं। वहीं दूसरी तरफ आजकल किसानों का नया अड्डा मुजफ्फऱनगर बन गया है। टिकैत महापंचायत के बाद आज फिर राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान में किसान महापंचायत हुई। इस बार हिंद मजदूर किसान समिति ने किसान महापंचायत बुलाई। गठवाला खाप के बाबा चौधरी राजेंद्र सिंह ने महापंचायत को समर्थन दिया। करीब 21 दिन पहले 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर के इंटर कॉलेज मैदान में ही राकेश टिकैत ने महापंचायत बुलाई थी। बड़ी संख्या में किसानों ने कृषि कानूनों के खिलाफ इस महापंचायत में हिस्सा लेकर शक्ति प्रदर्शन किया था और सीधे-सीधे बीजेपी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। 21 दिनों बाद फिर से मुजफ्फरनगर के इसी मैदान में एक बार फिर किसान संगठनों ने शक्ति प्रदर्शन किया। लेकिन इस बार झंडा भारतीय किसान यूनियन का नहीं बल्कि राष्ट्र प्रेमी मजदूर किसान सभा और हिंद मजदूर किसान समिति का था। आध्यात्मिक किसान नेता चंद्रमोहन के नेतृत्व में कई किसान संगठनों, मलिक खाप जैसी कई खाप संगठनों और किसानों ने ट्रैक्टर लेकर मुजफ्फरनगर के उसी मैदान में अपनी ताकत दिखाई जहां राकेश टिकैत ने 5 सितंबर को मोर्चा खोला था।
कृषि कानूनों से दिक्कत नहीं
राजकीय इंटर कॉलेज में आज भी मुजफ्फरनगर, शामली, कैराना, बागपत और आसपास के कई जिलों से किसानों के जत्थे पहुंचे, लेकिन इस महापंचायत का मकसद कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन नहीं बल्कि किसानों की समस्याएं थीं। युवा किसान अमित कुमार का कहना है कि यह महापंचायत टिकैत की महापंचायत से इसलिए अलग है क्योंकि यहां वह उन किसानों के मसलों पर बात करेंगे जिसकी बात 5 सितंबर को हुई महापंचायत में नहीं हुई थी। किसानों ने बताया कि, इस महापंचायत में हम सरकार से गन्ने की कीमतों में बढ़ोतरी, समय से कीमतों का भुगतान, बिजली बिलों में राहत और पुराने ट्रैक्टरों की बहाली का मुद्दा उठा रहे हैं। उनका कहना है कि गन्ने की कीमतें 4 साल से नहीं बढ़ी हैं इसलिए वो कीमतें बढ़नी चाहिए और कम से कम 400 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत होनी चाहिए साथ ही बिजली की कीमत बढ़ गई है उसमें भी कमी होनी चाहिए।
किसानों की ये मांगे जायज हैं !
महापंचायत के जवाब में बुलाई गई इस महापंचायत में आए किसानों ने दो टूक कहा कि उनमें गन्ने की कीमतों को लेकर यूपी सरकार के खिलाफ नाराजगी तो है लेकिन वह सरकार का विरोध नहीं करते बल्कि सरकार से अपनी मांगें मनवाना चाहते हैं। मुजफ्फरनगर जिले से आए परविंदर मलिक कहते हैं कि हम अपनी मांगों को लेकर आए हैं जिसमें बिजली का बिल और गन्ने का भुगतान सबसे प्रमुख मुद्दा है। परविंद्र कहते हैं कि सभी खापों के चौधरी पंचायत में शामिल हैं और किसानों में कोई बंटवारा नहीं है। परविंद्र मलिक कहते हैं कि सरकार के खिलाफ नाराजगी तो नहीं है लेकिन अगर थोड़ी सुविधा किसानों को हो जाए हम बस इतना ही चाहते हैं। आखिर 1 महीने में एक छोटे किसान को एक पर्ची मिलती है तो घर पर क्या लाएगा। कोहिला गांव से आए बुजुर्ग सोमपाल कहते हैं कि, गन्ने का भाव यहां के किसानों के लिए बड़ा मुद्दा है। 5 साल से यूपी सरकार ने गन्ने की कीमत नहीं बढ़ाई। ऊपर से 4 साल में बिजली का बिल दोगुना हो गया है क्योंकि पहले हम साल में 8 से 9 हजार देते थे और अब हमें 10,000 रुपये जमा करने पड़ रहे हैं इतना ही नहीं कांग्रेस की सरकार में डीजल 60 रुपए लीटर था और अब 100 रुपए पहुंच गया। ऊपर से खाद की कीमत भी बढ़ गई है। शिशपाल मलिक कहते हैं कि 5 सितंबर को जो महापंचायत हुई वह टिकैत यूनियन द्वारा बुलाई गई थी जबकि उन्होंने किसानों के लिए कुछ नहीं कहा। लेकिन हम हिंद किसान सभा से हैं और हमारे मुद्दे किसानों वाले हैं। यशपाल मलिक कहते हैं कि कानून की वापसी क्यों हो, कानून में संशोधन हो जाए और जो गलतियां हैं उसे ठीक करवा लिया जाए।
सरकार का गन्ना किसानों को तोहफा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गन्ने का समर्थन मूल्य 325 रुपये से बढ़ा कर 350 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। उन्होंने कहा कि इससे 45 लाख गन्ना किसानों की आय में आठ फीसदी की वृद्धि होगी। लखनऊ के किसान सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उनके राज में एक भी दंगा नहीं हुआ। सभी अवैध स्टॉलट हाउस बंद कर दिए गए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गन्ने का मूल्य 325 से 350 रुपये प्रति क्विंटल करने के एलान के साथ कहा कि अब तक उनकी सरकार ने गन्ना किसानों का सबसे अधिक भुगतान किया है। 2007 से 2017 तक बीएसपी और समाजवादी पार्टी की सरकार में गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं हुआ था। मुख्यमंत्री की कोशिश पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन की धार को कमजोर करना भी है। मुख्यमंत्री ने इसके साथ किसानों को ये भी दिखाने की कोशिश की है कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा। वो नकली किसान नेताओं के चक्कर में नहीं पड़ें। उन्होंने कहा कि पराली जलाने संबंधी सभी मुकदमें किसानों पर से वापस ले लिए गए हैं।