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Rajasthan में कैदियों की अनोखी पहल, मनोरंजन के लिए शुरू किया अपना रेडियो स्टेशन

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Radio in Rajasthan Jail: राजस्थान की अजमेर सेंट्रल जेल से एक अनोखी पहल शुरू की गई है। जेल प्रशासन ने कैदियों को अपना रेडियो स्टेशन जेलवाणी शुरू करने में सहयोग दिया। इसके बाद कैदियों ने रेडियो स्टेशन तैयार कर लिया और अब वे इसकी सहायता से मनोरंजन भी कर सकेंगे और अपने को देश-दुनिया में बाहर क्या चल रहा है। इसकी जानकारी भी रख सकेंगे। इस जेलवाणी की सहायता से न सिर्फ वो मनपसंद गाने सुन सकेंगे बल्कि खुद के गीत, गजल और कविताएं गाकर सुना भी सकेंगे।

जानें कैसे हुआ संभव ‘जेलवाणी’

सरकारों की व्यवस्था में जेल बनाने का मुख्य मकसद तो अपराध की दुनिया में भटक गए नागरिकों को सुधार का मौका देकर मुख्य धारा में लाना होता है। इसी तरह अजमेर सेंट्रल जेल के डीजी भूपेंद्र कुमार दक ने कैदियों के जीवन को बेहतर बनाने और उनमें बदलाव लाने का लिये अनोखा फैसला किया। उन्होंने खुद की देख-रेख में सीएम नवाचार निधि योजना के तहत कैदियों के द्वारा एक रेडियों स्टेशन तैयार कराया। खास बात तो यह रही कि कैदियों ने ‘जेलवाणी’ रेल स्टेशन खुद तैयार किया है। अब वो सप्ताह के सातों दिन अपने मनपसंद कार्यक्रम सुन भी सकेंगे और प्रस्तुत भी कर सकेंगे।

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जानें कैसा होगा हफ्ते का शिड्यूल

इस रेडियो स्टेशन ‘जेलवाणी’ का कार्यक्रम शिड्यूल सातों दिन अलग-अलग थीम पर रहेगा। यह हर दिन 12:30 से 2 बजे तक विभिन्न कार्यक्रमों को प्रसारित करेगा।

  • सोमवार को विभिन्न जानकारी के साथ सलाम-ए-हिंदुस्तान देशभक्ति के गीतों से सजा होगा
  • मंगलवार को जेल अनुशासन,भूले-बिसरे गीत और राज्यों के इतिहास की जानकारी
  • बुधवार को आपणी ‘जेलवाणी’ जरा मुस्कुरा दो के तहत हास्य-व्यंग्य, कैदियों की स्वरचित कविताएं तथा फरमाइसी गीत
  • गुरुवार को धार्मिक आराधना, भजन और संतों के प्रवचन
  • शुक्रवार को महफिल-ए-तरन्नुम में कैदियों की स्वरचित गजल,शायरी, कैदियों को विधिक जानकारी, पैरोल, मुलाकात के संबंध में
  • शनिवार को तनाव मुक्ति और स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां, लता, किशोर, मुकेश तथा के फरमाइशी गीत
  • रविवार को रेडियो धमाल में फिल्मी गीत, इसके साथ जेल अधिकारी कैदियों तक अपनी बात भी पहुंचाएंगे।

क्या है मकसद शुरु करने का

अजमेर सेंट्रल जेल की जेल सुपरिटेंडेंट सुमन मालीवाल ने इस अभिनव प्रयोग का मकसद बताते हुए कहा कि इस ‘जेलवाणी’ के माध्यम से कैदी जो लंबे समय से अपने परिवार से दूर रहने, कानूनी प्रक्रिया की उलझनों और विचाराधीन मामलों के कारणों से अवसाद का शिकार होने लगते हैं। उन्हें सकारात्मकता की तरफ मोड़ेंगे। क्यों कि कोटा तथा भीलवाड़ा में इस पहल के सफल परिणाम मिल चुके जिसके कारण यह अजमेर में भी इसकी पहल की गई।

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