Mahabharat: अपने 10000 शिष्यों सहित द्रोपदी की परीक्षा लेने पहुंचे थे दुर्वासा ऋषि, इस तरह श्रीकृष्ण ने रखी लाज

Mahabharat: महर्षि दुर्वासा के बारे में सभी लोग जानते हैं कि वह कितने क्रोधित ऋषि हैं। महाभारत काल में जब कुंती का विवाह राजा पांडु से हुआ था तब बाल्यकाल में कुंती ने ऋषि दुर्वासा की सेवा की थी। इसी के फल स्वरुप दुर्वासा ने कुंती को मंत्र दिया। जिससे वह किसी भी देवताओं का आवाह्न करके उससे पुत्र प्राप्त कर सकती थी।

पांडव पत्नी द्रोपदी का जीवन कठिनाइयों से भरा रहा। पर भगवान श्री कृष्ण की परम भक्त होते हुए उसे आंच नहीं आई। भगवान श्री कृष्ण ने कदम-कदम पर द्रोपदी का साथ दिया। इसी बीच द्रोपति का वनवास काल एक ऐसी ही कथा है जो काफी प्रसिद्ध है। महर्षि दुर्वासा ने द्रोपदी की परीक्षा ली थी।

धनुष यज्ञ में उत्पन्न हुई थी द्रौपदी

पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार द्रुपद की बेटी द्रौपदी धनुष यज्ञ में उत्पन्न हुई थी और अर्जुन द्वारा जीते जाने पर पांडव की पत्नी बनाई गई। कौरवों से जुए में हार के बाद पांडवों को वनवास भोगना पड़ा। उनके साथ द्रौपदी भी गई थी। महाभारत में महर्षि दुर्वासा द्रौपदी की परीक्षा लेने के लिए अपने 10 हजार शिष्यों के साथ कुटिया पहुंचे थे और दुर्योधन ने ही उन्हें वहां भेजा था‌। वह भी ऐसे समय जब द्रोपति समेत सभी पांडव भोजन करने के बाद विश्राम कर रहे थे। इसके बाद उन्होंने वहां भोजन करने की इच्छा जताई।

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श्री कृष्ण ही रखी भोजन करने की इच्छा

बता दें कि पांडवों के पास भगवान सूर्य के चमत्कारिक पात्र में तब तक ही भोजन प्राप्त करने का वरदान था। जब तक द्रोपति भोजन नहीं कर लेती। ऐसे में ऋषि को भोजन कराना संभव नहीं था। ऋषि की इस इच्छा के बाद पांडवों की चिंता बढ़ गई। लेकिन द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण को याद किया और उस समय वहां श्री कृष्ण पहुंच गए।

उस समय ऋषि दुर्वासा अपने शिष्यों सहित स्नान के लिए नदी पर गए हुए थे। कृष्ण ने भी आते ही भूख लगने की बात कहकर भोजन मांग लिया। इच्छा को सुनकर द्रौपदी ने सिर झुका कर बोला कि भोजन खत्म हो गया।

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एक चावल के दाने से भरा पेट

इसके बाद श्री कृष्ण ने द्रौपदी को भोजन का पात्र लाने के लिए कहा। जब द्रौपदी पात्र लेकर आई तो उसमें एक चावल का दाना बचा था। श्री कृष्ण ने चावल के उस गाने को खा लिया। परम ब्रह्मा के उस गाने के खाने से ही ब्रह्मांड के सभी जीवो का पेट भर गया और इसके बाद दुर्वासा सहित अपने शिष्यों सहित वहां से वापस लौट गए। इस तरह भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी की वनवास में भी लाज रखी थी।

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