Home एजुकेशन & करिअर Shobhit University: “बच्चे आपके, संस्कार किसके?” – हिन्दी संस्करण का भव्य लोकार्पण

Shobhit University: “बच्चे आपके, संस्कार किसके?” – हिन्दी संस्करण का भव्य लोकार्पण

Shobhit University: शोभित विश्वविद्यालय और इन्फिनिटी फ़ाउंडेशन इंडिया के संयुक्त तत्वाधान में आज राष्ट्रीय विज्ञान केन्द्र, प्रगति मैदान, नई दिल्ली में प्रसिद्ध चिंतक एवं अंतर्राष्ट्रीय लेखक राजीव मल्होत्रा और सह-लेखिका विजया विश्वनाथन की चर्चित कृति “Who is Raising Your Children?” के हिन्दी अनुवाद “बच्चे आपके, संस्कार किसके?” का भव्य लोकार्पण हुआ।

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Shobhit University: शोभित विश्वविद्यालय और इन्फिनिटी फ़ाउंडेशन इंडिया के संयुक्त तत्वाधान में आज राष्ट्रीय विज्ञान केन्द्र, प्रगति मैदान, नई दिल्ली में प्रसिद्ध चिंतक एवं अंतर्राष्ट्रीय लेखक राजीव मल्होत्रा और सह-लेखिका विजया विश्वनाथन की चर्चित कृति “Who is Raising Your Children?” के हिन्दी अनुवाद “बच्चे आपके, संस्कार किसके?” का भव्य लोकार्पण हुआ।

बच्चों को गढ़ने का कार्य कौन कर रहा है

कार्यक्रम की अध्यक्षता शोभित विश्वविद्यालय के कुलाधिपति कुँवर शेखर विजेन्द्र ने की। उन्होंने कहा
“आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि बच्चों को गढ़ने का कार्य कौन कर रहा है—माता-पिता और शिक्षक, या फिर वैश्विक मीडिया, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और उपभोक्तावादी प्रवृत्तियाँ? महाभारत के अभिमन्यु की तरह हमारे बच्चे ज्ञान और तकनीक के चक्रव्यूह में प्रवेश करना तो जानते हैं, परंतु बाहर निकलने का मार्गदर्शन उनके पास नहीं है। शिक्षा तभी सार्थक है जब वह संस्कारों से जुड़ी हो।”

उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को इस चुनौती का साहसिक उत्तर बताते हुए कहा कि यह मातृभाषा, मूल्य-आधारित शिक्षा और समग्र विकास पर बल देती है। “शोभित विश्वविद्यालय सदैव Education with Purpose की परंपरा पर चलता आया है और यह पुस्तक उसी उद्देश्य को प्रतिबिंबित करती है।”

आज का सबसे बड़ा संकट यह है कि माता-पिता ने यह मान लिया है कि बच्चों का निर्माण केवल विद्यालय करेंगे

लेखक राजीव मल्होत्रा, जो तीन दशकों से भारतीय दृष्टि से वैश्विक विमर्श को चुनौती देते आ रहे हैं, अपने वक्तव्य में कहा—“आज का सबसे बड़ा संकट यह है कि माता-पिता ने यह मान लिया है कि बच्चों का निर्माण केवल विद्यालय करेंगे। परंतु विद्यालय भी अब वैश्विक बाज़ारवाद और उपभोक्तावादी मानकों से संचालित हो रहे हैं। बच्चों का मन आज का सबसे बड़ा युद्धक्षेत्र है।

युद्ध अब केवल राष्ट्रों के बीच नहीं, बल्कि विचारधाराओं के बीच है

यह युद्ध अब केवल राष्ट्रों के बीच नहीं, बल्कि विचारधाराओं के बीच है। एक अदृश्य तंत्र—जिसे हम Deep State कह सकते हैं—वैश्विक मीडिया, डिजिटल एल्गोरिद्म, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और विदेशी पाठ्यक्रमों के माध्यम से नई पीढ़ी के मानस को नियंत्रित कर रहा है। इसका उद्देश्य बच्चों को केवल ‘वैश्विक उपभोक्ता’ बनाना है, न कि अपनी जड़ों से जुड़े नागरिक।

यदि भारत अपनी शिक्षा और संस्कारों के प्रति सजग नहीं हुआ तो हमारी नई पीढ़ी आर्थिक रूप से सक्षम लेकिन सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से पराधीन हो जाएगी। यह पुस्तक हर माता-पिता, हर शिक्षक और हर नीति-निर्माता से प्रश्न पूछती है कि आप अपनी संतान की सोच और दृष्टि को किसके हाथों में सौंप रहे हैं?”उन्होंने कहा— “‘बच्चे आपके, संस्कार किसके?’ केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि एक घोषणापत्र है—संस्कार, पहचान और स्वतंत्रता की रक्षा का।”

बच्चे आज सबसे अधिक समय स्क्रीन पर बिताते हैं

सह-लेखिका विजया विश्वनाथन ने कहा—“बच्चे आज सबसे अधिक समय स्क्रीन पर बिताते हैं। यह पुस्तक अभिभावकों को पुनः यह सोचने पर मजबूर करेगी कि वे बच्चों से संवाद कैसे जीवित करें और उन्हें अपनी परंपरा से कैसे जोड़ें।”

जड़ों से कटेंगे तो राष्ट्र का भविष्य भी असुरक्षित होगा

पूर्व सांसद श्री राजेन्द्र अग्रवाल ने कहा—“यदि बच्चे अपनी जड़ों से कटेंगे तो राष्ट्र का भविष्य भी असुरक्षित होगा। राष्ट्र-निर्माण घर और परिवार से ही शुरू होता है।”

शिक्षा केवल जानकारी का हस्तांतरण नहीं है, बल्कि चरित्र निर्माण का मार्ग है

श्री विनय रूहेला, उपाध्यक्ष, उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कहा—
“शिक्षा केवल जानकारी का हस्तांतरण नहीं है, बल्कि चरित्र निर्माण का मार्ग है। तकनीकी दक्षता तभी सार्थक है जब उसमें मूल्य जुड़े हों।”

न्याय का आधार केवल कानून नहीं, बल्कि संस्कारित नागरिक हैं

न्यायमूर्ति श्री राजेश टंडन, पूर्व न्यायाधीश, उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने कहा—
“न्याय का आधार केवल कानून नहीं, बल्कि संस्कारित नागरिक हैं। यदि बच्चों में सत्यनिष्ठा और नैतिकता बचपन से डाली जाए तो अपराध स्वतः कम होंगे।”

मातृभाषा में विचार गहराई से असर डालते हैं

श्री अनुराग शर्मा, हिन्दी संपादक ने कहा— “अनुवाद का उद्देश्य यही है कि पुस्तक का संदेश हर भारतीय परिवार तक पहुँचे। मातृभाषा में विचार गहराई से असर डालते हैं।”

“हिन्दी संस्करण समय की माँग था

श्री संक्रांत सानु, संस्थापक, गरुड़ प्रकाशन ने कहा—“हिन्दी संस्करण समय की माँग था। यह पुस्तक केवल प्रश्नचिह्न नहीं उठाती, बल्कि उत्तर भी देती है।”

समारोह में समाज के विभिन्न क्षेत्रों से आए शिक्षाविद्, न्यायविद्, नीति-निर्माता, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे। शोभित विश्वविद्यालय, मेरठ के कुलपति, संकाय और विद्यार्थियों की उपस्थिति ने इस विमोचन को केवल साहित्यिक आयोजन न रहकर एक गंभीर शैक्षिक और सांस्कृतिक विमर्श बना दिया।

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