अफगानिस्तान पर तालिबान के शासन के बाद से ही देश में आतंक चरम पर है। यह आतंक ना सिर्फ वहां के स्थानीय लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है बल्कि अफगानिस्तान की सीमा से सटे देश में तालिबान के आतंक से डरे हुए हैं। उन्हीं देशों में से एक देश है ताजिकिस्तान। अफगान में तालिबान का शासन पूरे विश्व को प्रभावित कर रहा है लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर ताजिकिस्तान पर पड़ा रहा है। इस स्थिति से निपटने के लिए ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में शंघाई सहयोग संगठन के प्रमुखों की बैठक हो रही है। जिसमें अफगानिस्तान की स्थिति को चिंताजनक बताया गया है।
CSTO की अहम बैठक
इस बैठक में सभी देश मिलकर मादक पदार्थों की तस्करी के खिलाफ प्रतिबंध करने और अवैध प्रवास को रोकने और अफगानिस्तान में बिगड़ती स्थिति की पृष्ठभूमि के खिलाफ ताजिक-अफगान सीमा को मजबूत करने जैसे अहम मुद्दों पर बातचीत हो रही है। बैठक में अफगानिस्तान के अंदर और आसपास की स्थिति पर विशेष ध्यान दिया गया। बैठक में कहा गया कि अफगानिस्तान के हालात के कारण अगर ताजिकिस्तान की दक्षिणी सीमा पर स्थितियां बिगड़ती है तो सभी देश सैन्य मदद के लिए एक साथ आगे आएंगे।बता दें कि रूस और अन्य मध्य एशियाई देशों के सुरक्षा गठबंधन CSTO की अहम बैठक एससीओ शिखर सम्मेलन से पहले दुशांबे में बुलाई है।
ताजिकिस्तान पर कैसे पड़ रहा सबसे ज्यादा असर
ताजिकिस्तान तालिबान शासन से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है। इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला ताजिकिस्तान अफगान की सीमा से लगा देश है। तालिबान के आने के बाद सीमाओं पर हलचल बढ़ गई है। सीमाओं पर लगातार हालात बिगड़ रहे हैं। घुसपैठ और गोलीबारी की घटनाएं आम हो रही हैं। सीमा इस हलचल सेताजिकिस्तान परेशान है। इसके अलावा ताजिकिस्तान को पलायन का भी डर है। दरअसल अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा तजाकिस्तानी लोग रहते हैं और तालिबान शासन के बाद सभी लोग अपने-अपने देशों में पलायन कर रहे हैं। ताजिकिस्तान पर अब पलायन देशवासियों का बोझ बढ़ता जा रहा है। सिर्फ ताजिकिस्तान ही ऐसा देश नहीं है जो सीमा पर हो रही हलचल से परेशान है। ईरान,उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान भी इसी डर से गुजर रहे हैं।
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