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Maha Kumbh 2025 से पहले क्यों सुर्खियां बटोर रही सन्यास की परंपरा? जानें Sanyas लेने के नियम और इसका धार्मिक महत्व

Maha Kumbh 2025 की शुरुआत से पहले सन्यास लेने की परंपरा सुर्खियां बटोर रही है। सवाल उठ रहे हैं कि सन्यास लेने के नियम क्या हैं? क्या नाबालिगों को भी सन्साय दिलाया जा सकता है? सन्साय लेने का धार्मिक महत्व क्या है? ऐसे में आइए हम आपको इन सभी सवालों का जवाब देने की कोशिश करते हैं।

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Maha Kumbh 2025
Picture Credit: Mahakumbh 'X' Handle

Maha Kumbh 2025: प्रयागराज में आयोजित हो रहे महाकुंभ से ठीक पहले सन्यास की परंपरा सुर्खियां बटोर रही है। दरअसल, हुआ यूं कि आगरा के एक पेठा कारोबारी की 14 वर्षीय बेटी राखी सिंह धाकरे की सन्यास को लेकर खबरें बनी। दावा किया गया कि बच्ची ने प्रयागराज पहुंचकर बाल्यावस्था में ही सन्यास ले लिया है और जूना अखाड़ा में चली गई हैं। इसके ठीक बाद महाकुंभ 2025 और सन्यास की परंपरा को लेकर खबरें बननी शुरू हो गईं। पूछा गया कि Maha Kumbh 2025 से पहले सन्यास की परंपरा के कोई नियम हैं? Sanyas की परंपरा का धार्मिक महत्व क्या है? इस तरह के तमाम सवाल सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोर रहे हैं। ऐसे में आइए हम आपको इन सवालों का जवाब देने के साथ सन्यास की परंपरा के बारे में विस्तार से बताते हैं।

Maha Kumbh 2025 से पहले क्यों सुर्खियां बटोर रही सन्यास की परंपरा?

आगरा के पेठा कारोबारी की बेटी के सन्यास से जुड़ी खबरों को लेकर सोशल मीडिया पर खूब चर्चा हुई। सचिन गुप्ता नामक एक्स हैंडल यूजर ने पोस्ट जारी कर दावा किया कि 14 वर्षीय राखी सिंह धाकरे ने सन्यासी बनने का निर्णय लिया है। उन्हें परिवार की ओर से जूना अखाड़ा को सौंप दिया गया है। महाकुंभ 2025 की तैयारियों के बीच छिड़ी चर्चा के दौरान जूना अखाड़ा का भी बयान सामने आया। स्पष्ट किया गया है कि Maha Kumbh 2025 में 14 साल की रेखा का सन्यास वापस हो गया है। वहीं जूना अखाड़ा ने नाबालिग बच्ची को सन्यास दिलाने वाले महंत कौशल गिरी को 7 साल के लिए निष्कासित भी कर दिया है। जूना अखाड़ा ने स्पष्ट किया है कि नाबालिगों को सन्यास दिलाने की हमारी परंपरा नहीं है। यही वजह है कि महाकुंभ 2025 की तैयारियों के बीच सन्यास से जुड़ी खबरें चर्चा बटोर रही हैं।

सन्यास लेने के नियम और इसके धार्मिक महत्व क्या हैं?

धार्मिक मतानुसार किसी को भी संन्यास लेने के लिए बाध्य नही किया जा सकता है। लोग अपनी स्वेच्छा से धर्म मार्ग पर बढ़ते सन्यास का मार्ग चुनते हैं। व्यक्ति अपनी इच्छा से सन्यास लेकर सन्यासी बनता है और तमाम चुनौतियों का सामना कर जीवन यापन करता है। सन्यास लेकर सन्यासी बनने के लिए कोई खास नियम भी नहीं है। व्यक्ति के भीतर जब परिवार को त्यागने, एक समय भोजन करने, ब्रह्मचर्य का पालन करने, जमीन पर सोने और मोह-माया से मुक्ति की अनुभूति होने लगती है, तब वो सन्यास का मार्ग चुनता है। इसके लिए सन्यासियों की टोली का हिस्सा बन सन्यास मार्ग पर आगे बढ़ा जा सकता है।

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