Supreme Court: नोटबंदी में बंद हुए बदले जा सकते हैं 500 और 1000 के नोट, SC से मिल सकती है अनुमति

Supreme Court: 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने 500 और 1000 रुपए के नोट बंद कर दिए थे। अब इसी नोटबंदी की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कल शुक्रवार को संविधान पीठ के सामने सुनवाई की गई। इस मामले में संविधान पीठ केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के खिलाफ तमाम याचिका पर सुनवाई कर चुकी है। अब जस्टिस एसए नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने संकेत दिया है कि पुराने नोटों को बदलने के लिए एक व्यवस्था बनाने पर विचार किया जाएगा। अब संविधान पीठ इस मामले में 5 दिसंबर को सुनवाई जारी रखेगी।

पुराने नोट बदलने पर विचार कर सकती है सरकार

इसी बीच कल 25 नवंबर को उच्चतम न्यायालय ने 500 और 1000 रुपए के नोटों को अमान्य करार देने के केंद्र के 8 नवंबर 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका में हस्तक्षेप संबंधी एक अर्जी पर विचार करने से इनकार कर दिया। केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणि का कहना है कि कोर्ट इस तरह का आदेश नहीं दे सकता। नोट बंदी के बाद नोट बदले जाने के लिए विंडो को काफी आगे बढ़ाया गया था। लेकिन लोगों ने इसका फायदा नहीं उठाया। उन्होंने कहा कि कुछ विशेष मामलों में सरकार नोट बदले जाने के बारे में विचार कर सकती है।

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पीठ ने कहा विशेष मामलों में देखेंगे

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उनके पास करोड़ों रुपए से ज्यादा पुराने नोट है। इसका क्या किया जा सकता हैं। कोर्ट का कहना है कि आप इन्हें संभाल कर रखिए। इसके बाद याचिकाकर्ता ने कहा कि मेरी जब्त की गई लाखों रुपए की रकम अदालत में जमा है। लेकिन नोटबंदी के बाद वह बेकार हो गई। हम विदेश में थे, विंडो मार्च से पहले बंद हो चुकी थी। जबकि कहा गया था कि विंडो मार्च के अंत तक खुली रहेगी। संविधान पीठ का कहना है कि हम एक तंत्र बनाने पर विचार कर रहे हैं जिसमें विशेष मामलों में पुराने 500 और 1000 रुपए के नोटों को बदलने के विकल्प भी देखेंगे। रिजर्व बैंक 2017 के कानून की धारा 4(2) (3) के तहत ऐसा कर सकता है।

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अटॉर्नी जनरल ने नोटबंदी की अधिसूचना का बचाव किया

शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने नोटबंदी की अधिसूचना का बचाव किया उन्होंने कहा था कि जाली नोट की समस्या और आतंकवाद की फंडिंग रोकने के लिए बड़ा कदम उठाया गया था। बता दे कि नोटबंदी रिजर्व बैंक कानून 1934 के प्रावधानों के तहत की गई जिसमें कोई कानूनी परेशानी नहीं है अब इन याचिकाओं पर विचार करना शैक्षणिक कवायद है। जिसका कोई भी अर्थ नहीं है।

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