डीएनपी डेस्क: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही राजनीतिक दलों में हलचल तेज हो गई है. राजनीतिक दलों के द्वारा उम्मीदवारों की घोषणा की जा रही है. राजनीतिक दल एक-दूसरे से खुद को बेहतर बताकर वोट बैंक को साधने के जुगत में लगी है. उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अपने कामों से लोगों को रु-ब-रु करा रही है. वहीं, दूसरी ओर सपा-रालोद गठबंधन अपने नए वादों के साथ सत्ता में वापसी के लिए पूरी मेहनत कर रही है. प्रियंका गांधी की नेतृत्व में कांग्रेस अपनी वापसी चाह रही है. हालांकि बसपा भी किसी से कम नहीं दिख रही है. आइये इस कड़ी में पश्चिम उत्तर प्रदेश पर एक नजर डालते हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजे को देखा जाए तो पश्चिम उत्तर प्रदेश की सीटों पर भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की थी. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक यहां के सीटों के लिए जिस तरीके से सपा-रालोद गठबंधन दावा कर रही है वो अपवाद मात्र है. दरअसल यहां के सीटों पर भाजपा की विजय रथ को रोकने की कोशिश बहुत हद तक बसपा के प्रदर्शन पर भी निर्भर करने वाली है. हकीकत यह है कि बसपा ने पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई सीटों पर ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं, जो सपा-रालोद गठबंधन का खेल बिगाड़ सकती है. ऐसे में इस क्षेत्र में सियासी समीकरण दिन प्रतिदन उलझता जा रहा है. हालांकि, जानकार ये भी कहते हैं कि इससे किस पार्टी को फायदा होगा और किस को नुकसान, अभी यह दावे से कहना मुश्किल है.
एक आंकड़े के मुताबिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब 35 प्रतिशत सीटों पर मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं. इस बार मुस्लिम वोटों को लेकर लड़ाई सपा-रालोद गठबंधन, कांग्रेस और बीएसपी में सीधे तौर पर होती दिख रही है. बताया जाता है कि 2012 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों वोटरों ने सपा का समर्थन किया था. इसके बाद सपा उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब रही थी. हालांकि इस बार मुसलमान असमंजस में हैं और एक राय नहीं बना पा रहे हैं.
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बहरहाल यहां के सीटों पर भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसके पीछे की वजह हाल ही में संपन्न हुए किसान आंदोलन भी बताया जा रहा है. एक निजी चैनल के द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किए गए सर्वे के मुताबिक इस बार की चुनाव में भाजपा को खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है. बताया जा रहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को 36 फीसद वोट शेयर मिल सकता है, जो पिछले विधानसभा चुनाव के मुताबिक कम है. बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां से 41 फीसद वोट शेयर मिला था. इसके अलावा समाजवादी पार्टी और रालोद के साथ गठबंधन की बात की जाए तो इन्हें इस बार की चुनाव में यहां फायदा हो सकता है. इसके पीछे की वजह बताई जा रही है कि गठबंधन का वोट शेयर पिछले चुनाव के 22 फीसद से बढ़कर 37 फीसद तक पहुंच सकता है. कांग्रेस की बात की जाए तो इन्हें इस चुनाव में यहां से 14 फीसद वोट शेयर मिलने का अनुमान है. बता दें कि कांग्रेस को पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार फायदा होता दिख रहा है. यह करीब 8 फीसद वोट शेयर से अधिक हो सकता है. जबकि बसपा को इस क्षेत्र में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. इस बार की चुनाव में बसपा को इस क्षेत्र से सिर्फ 6 फीसद वोट शेयर मिलने की संभावना है, जो पिछले चुनाव के मुताबिक बहुत कम है. आपको बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा ने इस क्षेत्र में 21 फीसद वोट शेयर हासिल करने में सफल रही थी. हालांकि राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यहां की सीटों पर बसपा किसी का खेल बिगाड़ सकती है.
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