गर्भ निरोधक तरीकों में सबसे ज्यादा कंडोम का यूज होता है। हालांकि पुरुषों के लिए बर्थ कंट्रोल के तरीके लिमिटेड हैं। बहुत से ऐसे लोग है जो सेक्स करना चाहते है लेकिन प्रेगनेंसी नहीं चाहते है। इसके बावजूद भी वे किसी प्रकार का प्रोटेक्शन नहीं लेते है। कुछ महिलाएं बर्थ कंट्रोल पिल्स के साइड इफेक्ट्स के चलते इसे लेने से घबराती हैं। पूरी दुनिया में इस तरह की ऐसी प्रेग्नेंसी की संख्या ज्यादा है जो बिना किसी प्लानिंग के हो जाती है।
वैज्ञानिकों ने ढूंढा नया और आसान तरीका
वैज्ञानिकों ने बर्थ कंट्रोल का एक नया तरीका ढूंढा है। जिसका इस्तेमाल कोई भी बेझिझक और आसानी से कर सकता है। इस कॉन्ट्रासेप्टिव को वैज्ञानिक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी से बना रहे हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि ये गर्भनिरोधक महिलाओं के हार्मोन में किसी तरह का बदलाव किए बिना बेहतर तरीके से काम करेगा।मोनोक्लोनल एंटीबॉडी इम्यून सिस्टम के जरिए स्पर्म पर ठीक उसी तरह हमला करती है जैसे कि किसी वायरस पर। ये स्पर्म को एग्स से मिलने से पहले ही अपना शिकार बना लेती है।
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मोनोक्लोनल एंटीबॉडी स्पर्म को कर देती है कमजोर
साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन और ईबीओमेडिसिन पत्रिका में इस कॉन्ट्रासेप्टिव मेथड के बारे में विस्तार से बताया गया है। स्टडी के अनुसार मोनोक्लोनल एंटीबॉडी स्पर्म को पकड़कर उन्हें बहुत कमजोर कर देती हैं। स्टडी में ये भी जानने की कोशिश की गई क्या इसका इस्तेमाल गर्भनिरोधक के तौर पर किया जा सकता है और इसे वजाइना में डालना कितना सुरक्षित है। स्टडी के लेखक एंडरसन के अनुसार ये एंटीबॉडीज स्पर्म को बांधकर रखने में काफी कारगर पाई गई हैं। ये कॉन्ट्रासेप्टिव एक पतली झिल्ली की तरह होगी जो बिना किसी प्रिस्क्रिप्शन के मेडिकल स्टोर से खरीदी जा सकेगी। ये पूरे 24 घंटे तक अपना काम करेगी।
उन महिलाओं के लिए लोकप्रिय तरीका, जो करती है इंटरकोर्स
एंडरसन ने कहा, ‘मुझे लगता है कि ये उन महिलाओं में ज्यादा लोकप्रिय होने वाला है जो कभी-कभी इंटरकोर्स करती हैं। ऐसी महिलाएं उन दवाओं के इस्तेमाल से बचती हैं जिसका असर हार्मोन पर लंबे समय तक पड़ता है। उन्हें ऐसे प्रोडक्ट की जरूर पड़ती है जिसका इस्तेमाल वो अपनी जरूरत के हिसाब से कर सकें।’ पुरुषों के लिए ये कंडोम और नसबंदी का अच्छा विकल्प साबित हो सकता है।
बता दें कि पहले चरण के क्लिनिकल ट्रायल मे 9 महिलाओं ने एक हफ्ते तक हर दिन वजाइना में झिल्ली के जरिए एंटीबॉडीज लगाईं। इसके अलावा शोधकर्ताओं 29 महिलाओं पर प्लेसबो स्टडी भी की। इसके लिए इन महिलाओं ऐसी झिल्ली दी गई जिसमें एंटीबॉडीज नहीं थीं। शोधकर्ताओं ने एंटीबॉडी ग्रुप वाली महिलाओं का वजाइनल पीएच, प्लेसबो ग्रुप वाली महिलाओं के बराबर ही पाया। मोनोक्लोनल एंटीबॉडी लगाने वाली महिलाओं में किसी भी तरह का बैक्टीरियल इंफेक्शन भी नहीं पाया गया।
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