भारत में भूमिगत पानी में केमिकल की मात्रा काफी ज्यादा है इसलिए अधिकांश जगहों पर भूमिगत पानी अब पीने योग्य नहीं बचा है लेकिन अब आर्सेनिक खाद्य वस्तुओं को प्रभावित कर रहा है। इस बात का खुलासा ब्रिटिश काउंसिल और केंद्रीय विज्ञान मंत्रालय की एक स्टडी में हुआ है। स्टडी राज्य बिहार पर हुई है। जहां बिहार के गांवों में सिंचाई के पानी के जरिए आर्सेनिक खाद्य श्रृंखला में जा रहा है और ये खाने वाले के शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पहुंचा रहा है।ऐसा पहली बार है जब एक अध्ययन में स्थानीय रूप से उगाए जाने वाले खाद्य पदार्थों – चावल, गेहूं और आलू में आर्सेनिक पाया गया है।
जिले में बढ़ रहा आर्सेनिक का स्तर
एक स्टडी के मुताबिक राज्य के 38 में से 22 जिलों में आर्सेनिक का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की 10 माइक्रोग्राम / लीटर की अनुमेय सीमा से भी ज्यादा है।अनुसंधान का नेतृत्व करने वाली टीम के प्रमुख वैज्ञानिकों में से एक और बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष अशोक कुमार घोष ने जानकारी देते हुए कहा कि हमारे अध्ययन में सिंचाई के पानी के माध्यम से बिहार में खाद्य श्रृंखला में आर्सेनिक की उपस्थिति पायी गई है। तीन सामान्य खाद्य पदार्थ – चावल, गेहूं और आलू – में आर्सेनिक का स्तर बढ़ा हुआ है जो लोगों पर बीमारियों का खतरा बढ़ा रहा है। हालांकि रिपोर्ट में बिहार में पीने के पानी में आर्सेनिक की मिलावट को लेकर कोई बात नहीं कही गई है।
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पीने के पानी को लेकर अभी कोई दावा नहीं
अब तक सिंचाई के पानी में आर्सेनिक नहीं आता था लेकिन स्टडी ने इस बात की पुष्टि की है कि सिंचाई के पानी के जरिए आर्सेनिक बिहार की फूड चेन में पहुंच रहा है। अशोक घोष ने कहा कि हम सभी भूजल में आर्सेनिक की उपस्थिति पर लगातार जांच कर रहे हैं। सिंचाई का पानी अब तक अछूता था। लेकिन हमारे अध्ययन ने सिंचाई के पानी के माध्यम से बिहार में खाद्य श्रृंखला में आर्सेनिक की मौजूदगी की पुष्टि की है। इसके पीछे का कारण कम गहरे नलकूपों को बताया जा रहा है। ज्यादातर 30-70 फीट गहरे उथले नलकूपों के जरिए ही खेतों में सिंचाई होती है।अध्ययन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, चावल, गेहूं और आलू में आर्सेनिक का स्तर बढ़ा हुआ है जो संक्रमित व्यक्तियों पर रोग के बोझ को बढ़ा सकता है। बिहार में 19 गांवों में आर्सेनिक का स्तर खतरे वाला है।रिसर्च के मुताबिक उच्च आर्सेनिक युक्त चीजें खाने से कैंसर का रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा त्वचा रोग जैसे केराटोसिस, मेलानोसिस और बोवेन भी हो सकते हैं।
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