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Atal Bihari Vajpayee के आगे विरोधी भी रहे नतमस्तक! कैसे फर्नांडीस, ममता बनर्जी, जयललिता के साथ मिलकर चलाई सरकार? उदारता जान नमन करेंगे

दिवंगत नेता व पूर्व पीएम Atal Bihari Vajpayee के व्यक्तित्व के आगे विरोधी भी रहे नतमस्तक रहते थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने जॉर्ज फर्नांडीस, ममता बनर्जी, जयललिता, फारुक अब्दुल्ला जैसे सहयोगियों के साथ मिलकर 1999 से 2004 तक अपनी सरकार चलाई थी।

Atal Bihari Vajpayee
Picture Credit: गूगल (पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी)

Atal Bihari Vajpayee: लुटियन्स दिल्ली में स्थित ७ लोक कल्याण कभी अटल बिहारी वाजपेयी का राजकीय आवास हुआ करता था। 25 दिसंबर, 1924 को जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वयंसेवक से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक का सफर किया। इस दौरान तमाम उतार-चढ़ाव हुए, लेकिन अटल ‘सदैव अटल’ रहे और हर चुनौतियों का दृढ़ता से सामना किया। भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व के आगे विरोधी भी खुद को नतमस्तक पाते थे।

उनकी उदार व्यक्तित्व ही थी कि उन्होंने असंभव माने जाने वाले सहयोगियों को साथ लेकर पहली गैर-कांग्रेसी सरकार 5 वर्ष तक चलाई। इसमें धुर-विरोधी रहे जॉर्ज फर्नांडीस, ममता बनर्जी, जयललिता जैसे सहयोगी शामिल थे। अटल बिहारी वाजपेयी का बड़प्पन उनकी शख्सियत का उजला पहलू था जिसकी आज भी दाज दी जाती है। पूर्व पीएम का उदार जीवन इस कदर है कि आज भी लोग उन्हें नमन करते हैं।

पूर्व पीएम Atal Bihari Vajpayee ने कैसे फर्नांडीस, ममता बनर्जी, जयललिता के साथ मिलकर चलाई थी सरकार?

1998-1999 का वो दौर जब अटल बिहारी वाजपेयी 13 महीनों तक देश के प्रधानमंत्री रहे। ऑल इंडिया अन्ना द्रविड मुनेत्र कड़गम के समर्थन वापस लेने से उनकी सरकार गिर गई और फिर नया गठबंधन बना। 24 दलों के इस गठबंधन को ‘जंबो गठबंधन’ नाम दिया गया और अटल बिहारी वाजपेयी ने 81 मंत्रियों के साथ मिलकर 5 वर्षों तक सरकार चलाई।

इस सरकार में जॉर्ज फर्नांडीस, ममता बनर्जी, जयललिता, फारुक अब्दुल्ला, शिवसेना, नवीन पटनायक समेत तमाम ऐसी सियासी शख्सियत शामिल थीं जो कभी अटल बिहारी वाजपेयी की धुर-विरोधी रही थीं। यहां तक कि तमाम विपक्षी नेता भी अटल बिहारी वाजपेयी की व्यक्तित्व के आगे नतमस्तक रहते थे। उनकी उदार नीति इस कदर प्रभावी थी कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक तब की एनडीए सरकार की कार्यशैली सुर्खियों में रहती थी।

अटल बिहारी वाजपेयी की व्यक्तित्व के आगे विरोधी भी रहते थे नतमस्तक

सियासत में विरोध का दौर शुरू से रहा है। हालांकि, एक वो भी दौर था जब संभावनाओं की खिड़की सदैव खुली रहती थी। भाषाई मर्यादा बरकरार थी। इसकी एक झलक वर्ष 2001 में देखने को मिली थी जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। खबरों के मुताबिक नवंबर, 2001 में ममता बनर्जी अपनी ही सरकार से खफा थीं। वक्त की नजाकत को समझते हुए अटल बिहारी वाजपेयी अपना काफिला लिए कालीघाट की उस संकरी गली में प्रवेश कर गए जो ममता बनर्जी का आवास था।

वहां पहुंचकर पूर्व पीएम ने ममता बनर्जी की मां के पैर छुए और उनसे बातचीत की। ये उनकी खास शैली थी जिसके आगे उनके विरोधी भी नतमस्तक रहते थे। ऐसा कर अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी गुस्सैल सहयोगी को मान लिया और 2004 तक केन्द्र में दमदारी के साथ सरकार चलाई। हालांकि, शाइनिंग इंडिया के सहारे चुनावी मैदान में उतरी एनडीए को 2004 में करारी हार मिली और यूपीए सत्ता में आ गई।

यही वजह है कि आज भी अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व को मिशाल के तौर पर पेश किया जाता है और इसकी चर्चा होती है। भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के 7 साल बाद भी आज उनकी जयंती (25 दिसंबर) को सुशासन दिवस यानी गुड गवर्नेंस डे के रूप में मनाया जाता है। लोग आज के दिन पूर्व प्रधानमंत्री को याद कर उन्हें नमन करते हुए श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं।

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