महाराष्ट्र (Maharashtra) में सियासी संकट गहराता जा रहा है। महा विकास आघाडी सरकार खतरे में नजर आ रही है। शिवसेना (Shiv Sena) के बागी नेता एकनाथ शिंदे (Eknith Shinde) ने ट्वीट कर सीएम उद्धव ठाकरे की ओर से आज शाम को बुलाई गई पार्टी विधायकों की बैठक को ‘अवैध’ बताया है।
गौरतलब है कि आज शाम 5 बजे सीएम उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackrey) के आवास पर सभी विधायकों की मीटिंग बुलाई गई है। इस मीटिंग पर सबकी निगाहें टिकी हुई है। इस बीच शिंदे के समर्थक विधायकों ने राज्यपाल और महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि एकनाथ शिंदे जिन्हें 2019 में शिवसेना ने विधायक दल के नेता नियुक्त किया था, वे इस पद पर बने रहेंगे। इनका कहना यह भी है कि भारत गोगावले को पार्टी का चीफ व्हिप नियुक्त किया गया और वे सभी भी शिवसेना में हैं।
यह भी पढ़ें: Maharashtra Politics Crisis: सियासी उथल-पुथल के बीच अटकलों का बाजार गर्म, सीएम उद्धव आज देंगे इस्तीफा?
एकनाथ शिंदे को दल बदल कानून से बचते हुए उद्धव सरकार गिराने के लिए शिवसेना के 37 विधायक चाहिए। वो बागी विधायकों को जोड़ते जा रहे हैं। शिंदे ने दावा किया है कि उनके पास 46 विधायक हैं।
एक सवाल जो सबके मन में है कि आखिर शिंदे चाहते क्या हैं? उद्धव से खुली बगावत के बावजूद शिंदे लगातार क्यों कह रहे हैं कि वो बाला साहेब के सच्चे शिवसैनिक हैं और उन्होंने शिवसेना नहीं छोड़ी है। इस सभी का एक ही जवाब है।
कानूनी तौर पर राजनीतिक पार्टियों में बंटवारे दो हालात में होते हैं
पहली हालात में, जब संसद या विधानसभा सत्र में होती हैं तो किसी भी पार्टी के विधायकों के बीच होने वाले बंटवारे को पार्टी में बंटवारा माना जाता है। ऐसे बंटवारे पर ही दल बदल कानून लागू होता है। ऐसे हालात में फिर गेंद स्पीकर के हाथ में चली जाती है।
दूसरी हालात में, जब संसद या विधानसभा सत्र में नहीं होती तब किसी भी पार्टी में होने वाला बंटवारा संसद या विधानसभा से बाहर का बंटवारा माना जाता है।
ऐसे में फिर अगर कोई पार्टी के चुनाव चिन्ह पर कोई खेमा दावा करता है, यानि जब यह तय होना होता कि कौन सा खेमा असली पार्टी है तब इन पर सिंबल्स ऑर्डर 1968 लागू होता है। सिंबल्स ऑर्डर 1968 के तहत सिर्फ चुनाव आयोग ही फैसला करता है।
सीधे शब्दों में कहें तो संसद या विधानसभा की सत्र में होने पर पार्टियों में होने वाले बंटवारे की गेंद चुनाव आयोग के हाथ में चली जाती है।
विधानसभा से बाहर राजनीतिक पार्टियों में बंटवारे के सवाल को चुनाव आयोग सभी पक्षों को सुनकर फैसले करता है। आयोग सिंबल को फ्रीज भी कर सकते हैं।
यह भी पढ़ें: Presidential Election: राष्ट्रपति चुनाव में आदिवासी पर दांव, जानें अब तक कितने राज्यपाल बने हैं राष्ट्रपति
देश और दुनिया की तमाम खबरों के लिए हमारा YouTube Channel ‘DNP INDIA’ को अभी subscribe करें।आप हमें FACEBOOK, INSTAGRAM और TWITTER पर भी फॉलो पर सकते हैं।