Humayun Kabir: बंगाल का सियासी समीकरण पूरी तरह से बदला-बदला नजर आ रहा है। जो हुमायूं कबीर कल तक टीएमसी के बैनर तले ममता बनर्जी के लिए काम कर रहे थे अब वे नई पार्टी के साथ बंगाल सीएम को चुनौती देने के लिए तैयार हैं। दूसरी ओर बीजेपी, वाम दल और कांग्रेस भी पश्चिम बंगाल में सियासी संभावनाओं को तलाशने में जुटी है।
इस बीच सवाल है कि क्या हुमायूं कबीर मुर्शिदाबाद से इतर आस-पास के विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारकर मुस्लिम वोटबैंक में सेंधमारी कर सकते हैं? क्या टीएमसी से निष्कासित होने के बाद बागी रुख अपनाए हुए हुमायूं कबीर ममता बनर्जी के कोर वोटर पर असर डालेंगे? सूबे में सियासी उठा-पटक के बीच हम इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे।
क्या मुस्लिम वोटबैंक में सेंधमारी कर सकते हैं Humayun Kabir?
इस सवाल का पुख्ता जवाब भविष्य के गर्भ में है। हुमायूं कबीर का सियासी प्रभाव मुर्शिदाबाद और आसपास के जिलों में ही रहा है। जनपद के बेलडांगा में बाबरी जैसी नई मस्जिद निर्माण की नींव रख हुमायूं कबीर ने देशव्यापी स्तर पर सुर्खियां बटोरी हैं। मुसलमानों का एक बड़ा समूह उन्हें समर्थन देता नजर आया है। ये हालिया समीकरण है। हालांकि, पूर्व की बात करें तो बंगाल में कुल 27 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं जो टीएमसी के कोर वोटर माने जाते हैं।
2011 में वाम दलों को छोड़ ममता बनर्जी की टीएमसी से जुड़े मुस्लिम मतदाता आज तक उन्हीं के साथ रहे हैं। हालांकि, अभी हाल ही में कबीर की रैलियों में मुस्लिम भीड़ की मौजूदगी ने उनके मनोबल को बढ़ाया है। जनता उन्नयन पार्टी ने नाम से नई सियासी दल बनाकर बंगाल में दांव खेलने जा रहे हुमायूं कबीर कितना सफल होंगे ये वक्त बताएगा, लेकिन उनकी मौजूदगी बंगाल के सियासी समीकरण को दिलचस्प बना रही है।
टीएमसी से बगावत के बाद क्या ममता बनर्जी के कोर वोटर पर डालेंगे असर?
बागी विधायक के लिए ये करना आसान नहीं होगा। विशेषतौर पर बंगाल के संदर्भ में बात करें तो यहां की 27 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं पर टीएमसी की अच्छी खासी पकड़ रही है। टीएमसी की ओर से आईएसएफ हाईकमान और फुरफुरा शरीफ से जुड़े प्रभावशाली धार्मिक नेता ममता बनर्जी के साथ एकजुट नजर आ रहे हैं। इतना ही नहीं बंगाल के प्रमुख इमामों, मस्जिद, टीपू सुल्तान मस्जिद और राज्य अल्पसंख्यक आयोग का भी समर्थन टीएमसी को प्राप्त है जो हुमायूं कबीर के लिए बड़ी बाधा साबित हो सकता है।
हुमायूं कबीर का प्रभाव फिलहाल उनके गृह नगर मुर्शिदाबाद और आसपास के इलाकों से आगे नहीं बढ़ पाया है। यही वजह है कि मुस्लिम वोटबैंक में उनकी पार्टी द्वारा सेंधमारी किए जाने वाले दावे पर पुख्ता रूप से कुछ भी कहना जल्दबाजी भरा कदम होगा। इसके लिए उचित समय का इंतजार ही एकमात्र विकल्प है, ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।
