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Khaleda Zia के निधन से क्या बदल सकती है बांग्लादेश की सियासी हवा? बेटे तारिक रहमान के समक्ष बढ़ गईं कई चुनौतियां, जानें ताजा अपडेट

बीएनपी की सर्वमान्य नेत्री रहीं Khaleda Zia के निधन के बाद उनके बेटे तारिक रहमान के समक्ष चुनौतियां बढ़ सकती हैं। इसके साथ ही मुल्क का सियासी समीकरण बदल सकता है जिसका असर बांग्लादेश में होने वाले आम चुनाव पर भी पड़ सकता है।

Khaleda Zia
Picture Credit: गूगल (पूर्व पीएम खालिदा जिया & तारिक रहमान - सांकेतिक तस्वीर)

Khaleda Zia: चुनावी सरगर्मी के बीच मातम की लहर दौड़ पड़ी है। ये हाल भारत के पड़ोस में स्थित बांग्लादेश का है जहां पूर्व पीएम खालिदा जिया के निधन से शून्य सी स्थिति है। एक ओर जहां मुल्क में फरवरी, 2026 में चुनाव होने हैं उससे ठीक पहले 29 दिसंबर, 2025 को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टीयानी बीएनपी की सबसे बड़ी नेता ने अंतिम सांस ली। इसके बाद शोक संवेदना का दौर शुरू हुआ और मोहम्मद यूनुस, शेख हसीना समेत तमाम अन्य नेताओं ने पूर्व पीएम को श्रद्धांजलि दी।

खालिदा जिया के निधन के बाद बांग्लादेश के बदले सियासी समीकरण की चर्चा हो रही है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या पूर्व पीएम के निधन से बांग्लादेश की सियासी हवा बदल सकती है? इस बदले समीकरण के बाद उनके बेटे तारिक रहमान के समक्ष क्या-क्या चुनौतियां बढ़ गई हैं? तो आइए आपको बांग्लादेश की हालिया स्थिति बताने के साथ इन सवालों का भी जवाब देते हैं।

पूर्व पीएम Khaleda Zia के निधन से क्या बदल सकती है बांग्लादेश की सियासी हवा?

इस सवाल का पुख्ता जवाब अभी भविष्य के गर्भ में है। हालांकि, सवाल जरूर पूछे जा रहे हैं कि क्या बीएनपी की सर्वमान्य नेत्री के निधन से मुल्क की सियासी हवा बदल सकती है। दरअसल, खालिदा जिया का एक मजबूत राजनीतिक वजूद रहा है। वो 1981 में अपने पति जियाउर रहमान की हत्या के बाद सियासत में सक्रिय हुईं और 1991-1996 और 2001-2006 तक मुल्क की पीएम रहीं। उनके पति जियाउर रहमान भी बांग्लादेश के राष्ट्रपति रहे थे। 2006 से लगातार खालिदा जिया अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंदी शेख हसीना से लड़ती रहीं।

अंतत: 2018 में भ्रष्टाचार से जुड़े एक मामले में उन्हें 10 साल की सजा हुई। फिर 2024 में हुए तख्तापलट के बाद खालिदा जिया को रिहा किया गया था जिसके बाद वो इलाज के लिए बेटे तारिक रहमान के पास लंदन चली गई थीं। किडनी की बीमारी से जूझ रहीं खालिदा जिया इन दिनों वेंटिलेटर पर थीं जहां उन्होंने 29 दिसंबर, 2025 को अंतिम सांस ली। पूर्व पीएम से बांग्लादेशी आवाम का एक जुड़ाव रहा है। उनका ये लंबा सियासी सफर ही उनके निधन के बाद मुल्क में सियासी हवा बदलने से जुड़े सवाल उठने पर मजबूर करता है।

कई दशकों तक जिनके इर्द-गिर्द बांग्लादेश की सियासत घूम चुकी है उनके जाने के बाद मुल्क की स्थिति बदलना स्वभाविक है। आसार जताए जा रहे हैं कि खालिदा जिया के निधन के बाद राजनीति का पुराना ढ़ांचा कमजोर हो सकता है जो नए नेताओं के उदय का रास्ता बनाएगा। इसका असर फरवरी 2026 में होने वाले चुनाव पर भी पड़ सकता है। साथ ही मुल्क की सियासत एक नए और अनिश्चित दौर में प्रवेश कर सकती है जो सियासी समीकरण को बदलने के लिए काफी है।

तारिक रहमान के समक्ष बढ़ गईं कई चुनौतियां

पूर्व पीएम खालिदा जिया के निधन से उनके बेटे तारिक रहमान के समक्ष कई चुनौतियां बढ़ गई हैं। सबसे पहले बीएनपी पर पूर्ण नियंत्रण के लिए उन्हें जद्दोजहद करनी पड़ सकती है। खालिदा जिया कार्यकर्ताओं के लिए सर्वमान्य नेत्री थीं। अब उनके निधन के बाद पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर असंतोष प्रकट हो सकता है जो अंदरुनी कलह को दावत देगा। इसके अलावा 15 वर्षों बाद लंदन से ढ़ाका लौटे तारिक रहमान को अब खुद को मुल्क में स्थापित करना थोड़ा कठिन होगा। इन्हीं तर्कों के आधार पर बीएनपी नेता के समक्ष चुनौतियां बढ़ने के आसार जताए जा रहे हैं।

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