Nepal Banknotes Row: पड़ोसी मुल्क नेपाल की हुकूमत जेन-जी प्रोटेस्ट के बाद भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही है। आलम ये है कि फिर एक बार बैंक नोट के डिजाइन और प्रिटिंग के लिए नेपाल चीन की ओर खींचा चला गया है। ये वही नेपाल है जहां चीन समर्थक कम्युनिस्ट पार्टियों के खिलाफ जेन-जी का उग्र प्रदर्शन देखने को मिला था।
अब फिर वहां हुकूमत का कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली चीन सरकार से नजदीकी बढ़ाना कई संभावनाओं की ओर इशारा करता है। इन सबके बीच भारत भी सतर्कता के साथ स्थिति की क्लोज मॉनिटरिंग में जुटा है। पड़ोसी मुल्क के दो अहित चाहने वालों का एक होना, कहीं दिक्कत का विषय न बन जाए इसका भी ख्याल रखना है। यही वजह है भारत सचेत भाव के साथ बदलते घटनाक्रम की निगरानी में जुटा है।
बैंक नोट छापने के बहाने नेपाल की चीन से बढ़ती नजदीकी का आशय क्या?
जिस नेपाल में जेन-जी चीन समर्थिक कम्युनिस्ट पार्टियों के खिलाफ सड़क पर उतरी थी। वहां की हुकूमत फिर एक बार ड्रैगन के साथ नजदीकी साध रही है। पूरा मामला नेपाल की करेंसी छापने और डिजाइन करने से जुड़ा है। दरअसल, नेपाली हुकूमत ने अपने मुल्क की करेंसी छापने और डिजाइन करने का ठेका चीनी सिक्योरिटी प्रिंटिंग प्रेस को दिया है।
चीनी कंपनी को ठेका देने के पीछे सबसे कम बोली लगाने का आधार बताया गया है। दावा किया जा रहा है कि पीएम सुशीला कार्की के नेतृत्व वाली नेपाली हुकूमत ड्रैगन से संपर्क स्थापित कर खुद को एक उभरती शक्ति के रूप में दर्शाना चाहती है। यही वजह है कि जेन-जी प्रोटेस्क के बार नेपाल सरकार की आंखें नहीं खुल रही हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि इसको लेकर उठ रही आवाज का सामना हुकूमत कैसे करती है।
भारत को नेपाल के इस कदम से क्यों रहना चाहिए सचेत?
इस सवाल का जवाब देने के लिए तमाम तरह के तर्क पेश किए जा सकते हैं। सबसे पहली बात ये कि चीन एशिया में भारत की बढ़ती साख से सबसे बेचैन रहता है। ऐसे में भारत के पड़ोस नेपाल में उसका प्रभुत्व बढ़ना हमारे लिए चुनौती के रूप में है। इससे इतर कई मौकों पर चीन-पाकिस्तान की सांठ-गांठ सामने आ चुकी है। ऐसे में जहां ड्रैगन भारत के दुश्मन संग कदम से कदम मिलाता है। वहां उनका नेपाल के साथ संबंध पटरी पर लौटना भी भारत के लिए थोड़ा असहज है। यही वजह है कि भारत को इस बदलते घटनाक्रम पर सचेत रहने और स्थिति की क्लोज मॉनिटरिंग करने की जरूरत है।
