Delhi Election 2025: दिल्ली में विकास की राजनीति पर जनता वोट करेगी। मगर, विकास का मॉडल क्या है, किसका है जिसे जनता पसंद कर रही है? विकास की राजनीति का दावा ‘सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास’ का नारा देने वाली बीजेपी भी करती है। विकास की राजनीति का दावा AAP भी करती है जिसके पास विकास का ‘केजरीवाल मॉडल’ है। कांग्रेस इस मामले में दावों में पीछे है। चुनाव प्रचार के आखिरी दिन पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने छतरपुर में कहा, “जनता विकास की राजनीति पर वोट करेगी।” एक ट्वीट कर केजरीवाल ने 55 सीटें आने का दावा भी किया। महिलाओं से उन्होंने अपील की कि अगर वे कोशिश करें और अपने घर के पुरुषों को वोट देने के लिए कतार में खड़े करें तो AAP को 60 से ज्यादा सीटें भी मिल सकती हैं।
Delhi Election 2025 में सुर्खियां बटोर रहा विकास का ‘केजरीवाल मॉडल’
विकास का ‘केजरीवाल मॉडल’ सरकार का खजाना आम जनता के कल्याण के लिए खोलने का है। यह मॉडल विकास के ‘मोदी मॉडल’ से खुद को अलग बताता है। आम आदमी पार्टी का कहना है कि मोदी मॉडल का उद्देश्य सरकारी खजाने को अमीरों के लिए खोलना है। मोटा सवाल यह है कि सरकार का खजाना कहां खर्च हो? सरकार अगर जनता का और जनता द्वारा बनाया गया है तो इसे जनता के लिए भी होना चाहिए। तभी तो लोकतंत्र है। केजरीवाल जनता के लिए तरह-तरह की योजनाएं लाते हैं। उनकी सोच है कि छोटी-छोटी सहूलियतें देकर जनता को बड़ी-बड़ी खुशियां दी जा सकती हैं तो ऐसा क्यों न किया जाए? इसी सोच के तहत बीते 12 साल में अरविन्द केजरीवाल ने विकास का नया मॉडल स्थापित किया।
फ्री योजनाओं से बदली है दिल्लीवासियों की जिन्दगी
केजरीवाल मॉडल से निकला ‘रेवड़ी’। जिन लोगों को सरकारी खजाने का रुख जनता की ओर किया जाना पसंद नहीं था उन्होंने जनकल्याण के लिए शुरू की जाने वाली योजनाओं को ‘रेवड़ी’ और ‘फ्रीबीज़’ कहना शुरू किया। अरविन्द केजरीवाल ने इसका विरोध नहीं किया, बल्कि इन संबोधनों को महिमामंडित किया। अमीरों के 16 लाख करोड़ कर्ज माफ करना सही है तो आम लोगों के लिए ‘रेवड़ी’ या ‘फ्रीबीज़’ क्यों न हो? आधारभूत सुविधाओं के लिए तरसती दिल्ली के लोगों को आज फ्री में बिजली और पानी मिल रहा है। फ्री में 1 करोड़ रुपये तक सरकारी अस्पतालों में इलाज हो रहा है, फ्री में दवाएं मिल रही हैं, फ्री में ओपीडी की सुविधाएं मोहल्ला क्लीनिक में मिल रहे हैं। दिल्ली की महिलाओं को फ्री में बस यात्रा करने को मिल रहा है। फ्री की इन योजनाओं ने दिल्लीवालों की जिन्दगी बदली है।
रोहिणी में रहने वाली पूजा सिंघल बताती हैं कि “फ्री बिजली से ज्यादा जरूरी बात यह है कि यहां बिजली कटती नहीं। बिल में तो इसका फायदा है ही, जेनरेटर नहीं चलाना पड़ता। कई तरह के खर्चे बच जाते हैं।” पूजा सिंघल आगे बताती हैं कि “बस यात्रा का फायदा किसको नहीं मिलता? अमीर-गरीब कोई भी महिला हो, वो बस में मुफ्त में सफर कर सकती हैं। मुझ जैसी कामकाजी महिलाओं के पर्स में इससे पैसे बचते हैं।”
ऐसा भी नहीं हैं कि फ्रीबीज़ का विरोध नहीं होता। मुफ्त सुविधाओं को इतना बुरा-भला कहा गया है कि अरविन्द केजरीवाल कहते हैं “मिडिल क्लास के लोग ‘रेवड़ी’ लेने में ग्लानि महसूस करने लगे हैं।” केजरीवाल का कहना है कि जब लाखों करोड़ रुपये अमीरों के माफ होते हैं तब तो अमीर ग्लानि महसूस नहीं करते। क्या वह ‘रेवड़ी’ नहीं ले रहे हैं? इसी तर्ज पर चुनाव के दौरान भी तर्क-वितर्क हुआ है।
Delhi Election 2025 में हर पार्टी ने बांटी ‘रेवड़ी’
आश्चर्य की बात यह है कि बीजेपी जैसी राजनीतिक पार्टी भी चुनाव घोषणा पत्र में ‘रेवड़ी’ से बच नहीं सके। बीजेपी नेताओं को भी कहना पड़ा कि अगर वे सत्ता में आए तो आम आदमी पार्टी की सभी मुफ्त की योजनाओं को आगे बढ़ाएंगे। हालांकि आम आदमी पार्टी ने हमेशा ही बीजेपी की नीयत पर सवाल उठाए हैं। आप ने जनता को आगाह किया है कि अगर गलती से भी बीजेपी सत्ता में आ गयी तो मुफ्त की योजनाएं बीजेपी रहने नहीं देगी। उदाहरण के लिए बवाना में अरविन्द केजरीवाल कहते हैं, “बवाना की जनता ने ठान लिया है- जिसने हमारे बच्चों के लिए स्कूल बनाए, हमारे लिए अस्पताल बनाए, उसे ही वोट देंगे। ‘आप’ की जीत तय है।”
दिल्ली की फ्रीबीज या रेवड़ी वाली सियासत का असर केंद्रीय आम बजट और उसके बाद राजनीतिक प्रतिक्रियाओं में भी देखने को मिला। जैसे ही आम बजट में घोषणा हुई कि 12 लाख रुपये तक टैक्स देना नहीं होगा। उसके तुरंत बाद अरविन्द केजरीवाल ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “देश के खजाने का एक बड़ा हिस्सा चंद अमीर अरबपतियों के कर्जे माफ करने में चला जाता है। मैंने मांग की थी कि बजट में ये ऐलान किया जाए कि ऐसे किसी अरबपति के कर्ज माफ नहीं किए जाएंगे। इससे बचने वाले पैसे से मिडिल क्लास के होम लोन और व्हीकल लोन मे छूट दी जाए, किसानों के कर्जे माफ किए जाएं। इनकम टैक्स और जीएसटी की टैक्स दरें आधी की जाएं। मुझे दुख है कि ये नहीं किया गया।”
विकास के किस मॉडल पर सहमति देगी जनता?
केजरीवाल मॉडल ने चुनाव में हमेशा अपनी छाप छोड़ने की कोशिश की और मोदी के विकास मॉडल के सामने चुनौती रखी। फ्री बीज और रेवड़ी पर सभी दलों को आना पड़ा। वहीं केजरीवाल मॉडल में नित नयी-नयी विकास की पहल जुड़ती चली गयी। निश्चित रूप से दिल्ली विधानसभा चुनाव विकास के अलग-अलग राजनीतिक मॉडलों के बीच है। कांग्रेस ने शीला दीक्षित के समय वाले विकास मॉडल को सामने रखा है। देखना यही है कि जनता विकास के किस मॉडल पर अपनी सहमति देती है।