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Red Fort Blast: जामिया में घपले से लेकर अल फलाह को मिनी कश्मीर बनाने तक! दिल्ली धमाके के बाद चांसलर जावेद सिद्दीकी पर उठ रहे गंभीर सवाल

Red Fort Blast के बाद अल-फलाह यूनिवर्सिटी और संस्थान के चांसलर जावेद अहमद सिद्दीकी सुर्खियों में हैं। इसको लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।

Red Fort Blast
Picture Credit: गूगल (सांकेतिक तस्वीर)

Red Fort Blast: राजधानी में हुए धमाके के बाद जिस चीज की सर्वाधिक चर्चा हो रही है, अल-फलाह यूनिवर्सिटी उनमें से एक है। हरियाणा के फरीदाबाद में स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी में कार्यरत डॉ. शाहीन, डॉ. उमर, डॉ. आदिल पर धमाके के आरोप लगे हैं। एक और शख्स मुजम्मिल की गिरफ्तारी भी रेड फोर्ट ब्लास्ट के तार कश्मीर से जोड़ती है। इन सबके बीच अल-फलाह से संस्थापक चांसलर जावेद अहमद सिद्दीकी भी सवालों के घेरे में आ गए हैं।

दिल्ली धमाके से जुड़े मामले में जांच को जैसे-जैसे रफ्तार मिल रही है, वैसे-वैसे जावेद अहमद पर भी शिकंजा कस रहा है। उन पर अल-फलाह विश्वविद्यालय परिसर को ‘मिनी कश्मीर’ बनाने का आरोप है। पूर्व में जामिया मिल्लिया इस्लामिया में कार्यरत रहे चांसलर सिद्दीकी धोखाधड़ी से जुड़े मामले में जेल भी जा चुके हैं जिसका खुलासा अब रेड फोर्ट ब्लास्ट के बाद हुआ है। ऐसे में आइए हम एक-एक कड़ी पर चर्चा कर सब कुछ विस्तार से बताने की कोशिश करते हैं।

दिल्ली Red Fort Blast के बाद चांसलर जावेद सिद्दीकी पर उठ रहे गंभीर सवाल

हरियाणा के फरीदाबाद में स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी 10 नवंबर की शाम तक निर्विवाद थी। हालांकि, लाल किला मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 1 पर सोमवार शाम हुआ धमाका यूनिवर्सिटी को विवादों में लाया है। धमाका से जुड़े मामले में अल-फलाह यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर में कार्यरत डॉ. शाहीन, आदिल, मुजम्मिल आदि की गिरफ्तारी हो गई है। ये सभी कश्मीरी हैं जो संस्थान का हिस्सा थे। अब इस मामले में यूनिवर्सिटी के चांसलर जावेद अहमद सिद्दीकी भी सवालों के घेरे मे हैं।

जामिया में कार्यरत रहने के दौरान धोखाधड़ी का आरोप झेल चुके जावेद अहमद ने यूं तो दिल्ली धमाके में संस्थान के किसी भी तरह की भूमिका से नकार दिया है। हालांकि, उनका अतीत उन्हें सवालों के घेरे में लाता है। बात 1993 की है जब जावेद अहमद जामिया मिलिया इस्लामिया में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के लेक्चरर बनने के बाद अपने भाई सऊद के साथ कुछ छोटी कंपनियाँ बनाते हैं। इसके बाद जावेद अपने साथियों को निवेश करने के लिए राजी कर भारी मुनाफे का वादा करते हैं। अंतत: उनपर धोखाधड़ी और गबन का आरोप लगता है जिसके लिए उन्हें तीन साल के लिए तिहाड़ जेल जाना पड़ता है।

हालांकि वे फरवरी 2004 में जमानत पर बाहर आते हैं और अंतत: 2005 में पटियाला कोर्ट उन्हें मामले में बरी कर देता है। इसके बाद जावेद अहमद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखते हैं और देखते ही देखते अपना साम्राज्य खड़ा कर लेते हैं। 2019 में स्थापित की गई अल-फलाह यूनिवर्सिटी भी उसी का एक हिस्सा है। हालांकि, रेड फोर्ट धमाके के बाद विश्वविद्यालय सवालों के घेरे में आए है जिसको लेकर चांसलर जावेद की मुश्किलें भी बढ़ती नजर आ रही हैं।

मिनी कश्मीर बनी अल-फलाह यूनिवर्सिटी!

फरीदाबाद में स्थित अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान अल-फलाह यूनिवर्सिटी में कश्मीरियों की तादाद ज्यादा है। इंडिया टूडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में स्थापित हुआ ये विश्वविद्यालय धीरे-धीरे, कश्मीर से आने वाले कई डॉक्टरों की नियुक्ति करने लगा। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि कश्मीरी डॉक्टर सस्ते उपलब्ध होते थे। अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय होने के नाते परिसर का माहौल भी रूढ़िवादी हो गया जिसकी जानकारी प्रबंधन को दी गई, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। डॉ. शाहीन जिसकी गिरफ्तारी रेड फोर्ड ब्लास्ट केस में हुई है उस पर अल-फलाह यूनिवर्सिटी में कट्टरता फैलाने और रूढ़िवादी कपड़े पहनने के लिए प्रेरित करने के आरोप लगे थे।

ये सारे ऐसे घटनाक्रम हैं जो कथित तौर पर अल-फलाह को मिनी कश्मीर बनाते हैं। इसके बाद 10 नवंबर की शाम दिल्ली में हुआ धमाका सारी तस्वीर बदल देता है और विश्वविद्यालय चर्चा में आ जाता है। रेड फोर्ट ब्लास्ट केस के बाद अब यूनिवर्सिटी के चांसलर जावेद अहमद भी सवालों के घेरे मे हैं। एनआईए इस मामले की जांच कर रहा है जो रिपोर्ट जारी कर पूरे घटनाक्रम का कारण स्पष्ट करेगा, ताकि स्पष्ट जानकारी सामने आ सके।

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