Eknath Shinde: कुर्सी की पेटी बांध लीजिए, क्योंकि महाराष्ट्र की सियासत में एक बार फिर बड़ा उलटफेर होने की संभावना है। ये वाक्य पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना है। महाराष्ट्र की सियासत फिलवक्त एकनाथ शिंदे के इर्द-गिर्द घूम रही है। टिप्पणीकार अपने तर्क के हिसाब से महायुति में दरार की खबरों को बल दे रहे हैं। इसी बीच डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे का एक बयान सामने आया है। Eknath Shinde ने तल्ख अंदाज में कहा है कि “2022 में मैनें सरकार बदल दी और एक ऐसी सरकार लेकर आए जो लोगों की इच्छा को प्रतिबिंबित करती है।” शिंदे का बयान भले ही शिवसेना (यूबीटी) नेतृत्व के लिए था, लेकिन इसके तार Mahayuti की समीकरण से भी जुड़ रहे हैं। सवाल उठ रहे हैं कि क्या BJP शिवसेना (शिंदे गुट) की अनदेखी कर रही है? तो आइए विस्तार से इस सवाल का जवाब देते हैं।
Mahayuti में दरार की अफवाहों के बीच Eknath Shinde ने चेताया!
महायुति में दरार की खबरों से सोशल मीडिया पटा पड़ा है। कई तरह के दावे और महायुति में एकनाथ शिंदे की अनदेखी की बात कही जा रही है। इसी बीच एकनाथ शिंदे ने आज नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान अपनी चुप्पी तोड़ी है। Eknath Shinde ने तल्ख अंदाज में कहा कि ”मुझे बालासाहेब और दिघे साहेब के साधारण कार्यकर्ता के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने (शिवसेना-यूबीटी) जब मुझे हल्के में लिया गया तो मैंने 2022 में सरकार बदल दी और एक ऐसी सरकार लेकर आए जो लोगों की इच्छा को प्रतिबिंबित करती है। मैनें चुनावी दौर में कहा था कि महायुति 200 से अधिक सीटें हासिल करेगी और हमने 232 सीटें जीतीं। मुझे हल्के में मत लीजिए। जिन्हें इस संदेश को समझने की जरूरत है, वे समझ जाएंगे।” Eknath Shinde के इस अंदाज ने जमकर सुर्खियां बटोरी हैं।
क्या BJP को भारी पड़ सकती है एकनाथ शिंदे की अनदेखी?
फिलवक्त अफवाहों से इतर वास्तविकता कुछ और बयां कर रहा है। ये कहीं से भी नहीं लगा कि बीजेपी एकनाथ शिंदे की अनदेखी कर रही है। हालांकि, ये सियासत है और यहां किसी भी संभावना को नकारा नहीं जा सकता है। Eknath Shinde ने आज नागपुर में जैसे बयान दिया है, उससे ऐसा लगा कि कहीं न कहीं वे आहत हैं। यही वजह है कि बीजेपी द्वारा उनकी अनदेखी को लेकर सवाल उठ रहे हैं। दावा किया जा रहा है यदि बीजेपी ने एकनाथ शिंदे की अनदेखी की, तो इसका असर आगामी नगर निगम चुनाव में देखने को मिल सकता है। Eknath Shinde ने बालासाहेब के उत्तराधिकारी के रूप में खुद को महाराष्ट्र की राजनीति में स्थापित कर लिया है। मराठा समुदाय में उनकी पैठ किसी से छिपी नही है। ऐसे में यदि महायुति में उनकी अनदेखी हुई, तो महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर उठा-पटक देखने को मिल सकता है।