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शिंदे-ठाकरे विवाद में Supreme Court ने राज्यपाल की भूमिका पर उठाए सवाल, कहा- सरकार गिराने में इच्छा से शामिल नहीं हो सकते

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Supreme Court: महाराष्ट्र में शिवसेना की लड़ाई पर देश की शीर्ष अदालत ने बुधवार को कई कड़े सवाल किए। महाराष्ट्र में शिंदे गुट के विधायकों द्वारा अचानक से पाला बदलने से Supreme Court ने महाराष्ट्र के राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाया। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ ने महाराष्ट्र के शिंदे और ठाकरे विवाद पर कई तीखे प्रश्न खड़े किए।

CJI बोले-34 विधायकों ने अचानक से लेटर लिख दिया

5 जजों की संविधान पीठ ने कहा कि ऐसे किसी भी मामले में राज्यपाल को नहीं बोलना चाहिए, जहां उनकी कार्रवाई से एक स्पेशल परिणाम निकले। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को शिंदे गुट के 34 विधायकों ने अचानक से लेटर लिख दिया। इसके बाद राज्यपाल ने उस पत्र के आधार पर बहुमत परीक्षण कराने का निर्णय ले लिया। ऐसा इसलिए, क्योंकि वह ठाकरे सरकार को गिराना चाहते थे? संविधान पीठ ने आगे कहा कि क्या राज्यपाल इसलिए सरकार गिरा सकते हैं, क्योंकि किसी एक विधायक ने उनकी संपत्ति और लाइफ पर खतरा बताया।

बीते तीन साल में एक भी पत्र नहीं भेजा 

चीफ जस्टिस ने कहा कि क्या राज्यपाल उस पत्र को शिवसेना का भीतरी मसला मानकर नजरअंदाज नहीं कर सकते थे। जिन विधायकों ने बीते तीन साल में एक भी पत्र नहीं भेजा और अचानक से 34 विधायकों ने एक रात में पत्र भेज दिया। इसके बाद एक रात में सबकुछ बदल गया। सीजेआई ने कहा कि क्या विश्वास मत बुलाने के लिए कोई संवैधानिक संकट था? उन्होंने कहा कि बहुमत परीक्षण से सरकार गिर सकती है। सरकार गिराने में राज्यपाल इच्छा से शामिल नहीं हो सकते। लोकतंत्र के लिए ये एक दुखद तस्वीर है। उन्होंने आगे कि राज्यपाल को इस तरह से विश्वास मत नहीं बुलाना चाहिए।

राज्यपाल पार्टी तोड़ने का काम कर रहे थे- सीजेआई

सीजेआई ने कहा कि राज्यपाल को खुद से सोचना चाहिए था कि तीन साल बाद आखिर कैसे सब बदल गया। राज्यपाल ने इसका कैसे अंदाजा लगाया कि आगे क्या होने वाला है। तो क्या ये माना जाए कि राज्यपाल पार्टी तोड़ने का काम कर रहे थे। सीजेआई कहा कि शिवसेना के 56 में से 34 विधायकों ने अपने पत्र में अविश्वास जताया। ऐसे में राज्यपाल ने गठबंधन की बाकी दो पार्टियों को क्यों ध्यान में नहीं रखा।

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