OBC Reservation: राजस्थान के चुनावी वर्ष में राजनीतिक बिसात पर अब पारंपरिक मुद्दों को छोड़कर नए मुद्दों की बिसात बिछना चालू हो गई है। अभी तक राज्य की राजनीति ने जनता को दलीय आधार पर उलझा रखा है ऐसा कहा जा सकता है। राज्य की राजनीति के दोनों प्रमुख दल जहां एक दूसरे की आंतरिक कलह को मुद्दा बनाकर चुनावी रणनीतियों को बनाने में जुटे थे। लेकिन आगामी चुनावों को देखकर OBC आरक्षण और जातिगत जनगणना के मुद्दे का खड़ा हो जाना दोनों दलों के गले की हड्डी बनने के आसार शुरु हो गए हैं। क्योंकि जातिगत जनगणना और उसके मुताबिक सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की मांग ने यदि जोर पकड़ा तो कांग्रेस और भाजपा के रणनीतिकारों के लिए विधानसभा चुनाव 2023 को पार पाना नया सिरदर्द होगा। इस मांग को लेकर राज्य के जाट समाज के लोग आगामी 5 मार्च को राजधानी जयपुर में लाखों की संख्या में जुटकर एक सम्मेलन करने वाले हैं।
जानें क्या है यह मुद्दा
आपको बता दें OBC आरक्षण और जातिगत जनगणना का असल मकसद राज्य में जनंसांख्यिकीय स्थिति के आधार पर भागीदारी के हिसाब से सरकारी नौकरी में आरक्षण देने से है। अभी राजस्थान में OBC आरक्षण की सीमा 21 फीसदी है। जयपुर में होने वाले इस जाट महाकुंभ के माध्यम से दोनों पार्टियों पर दबाव बनाकर इसे 27 फीसदी की सीमा तक करवाने के लक्ष्य के साथ चल रहे हैं। आपको बता दें सबसे पहले बिहार के सीएम नितीश कुमार ने जातिगत जनगणना कराने के आदेश दिए थे। जबकि देश में इस तरह की जनगणना कराने की नीति नहीं रही है। उनका कहना था कि जब इसके तथ्यात्मक आंकड़े प्राप्त हो जाएंगे तब इसकी एक विस्तृत रिपोर्ट बनाकर केंद्र सरकार को भेजेंगे। उनकी इस मंशा पर केंद्र ने अभी तक अपनी कोई राय नहीं दी है।
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बीजेपी और कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण मुद्दा
बीजेपी और कांग्रेस के लिए यह विषय राजस्थान की जातिगत पृष्ठभूमि को देखते हुए कई कारणों से दुविधापूर्ण है। इसीलिए कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। इसका मुख्य कारण राजस्थान में ओबीसी बाहुल्य राज्य है जाट तथा गुर्जर समुदाय का वर्चस्व है और कोई भी दल इनको नाराज करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता। अकेले राजस्थान में ओबीसी की तादात करीब 50-55 फीसदी है। इसी के आधार पर यदि मांगें मान ली गई तो कम संख्या वाली जातियों को सर्वाधिक नुकसान होना तय है।
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