Bal Thackeray: मातोश्री बंगला कभी महाराष्ट्र की सियासत का केन्द्र हुआ करता था। बेबाकी और कट्टर हिंदुत्व की राजनीति के लिए मशहूर बालासाहेब ठाकरे के निधन के बाद स्थिति बदली। वर्तमान समीकरण को देखें तो बाल ठाकरे द्वारा निर्मित शिवसेना दो धड़ों में बंट चुकी है। शिवसेना यूबीटी विपक्ष तो वहीं शिवसेना शिंदे गुट सत्ता की सांझेदार बनकर अपनी भूमिका अदा कर रही है। हालांकि, बात जब Bal Thackeray को होगी तो उद्धव ठाकरे उस किस्से का हिस्सा जरूर बनेंगे। सवाल ये भी उठेंगे कि क्या उद्धव ठाकरे, अपने पिता बाल ठाकरे के उसूलों के विपरित चल रहे हैं? शिवसेना यूबीटी के सिमटते प्रभाव का कारण क्या है? इस लेख के माध्यम से बाल ठाकरे जयंती पर सभी समीकरण को विस्तार से बताने की कोशिश की जाएगी।
क्या Bal Thackeray के उसूलों से विपरित चल रहे उद्धव ठाकरे?
शिवसेना के संस्थापक दिवंगत नेता बालासाहेब ठाकरे के अपने खास उसूल थे। उन्होंने 1977 में कांग्रेस का समर्थन तो किया, लेकिन फिर उनका ऐसा मोहभंग हुआ कि जीवन के अंतिम क्षणों तक इस पार्टी की ओर मुड़कर नहीं देखा। एक निजी चैनल को दिए साक्षात्कार में बाल ठाकरे ने कहा था कि “मैं शिवसेना को कांग्रेस नहीं बनने दूंगा। अगर मुझे लगा कि ऐसा हो रहा है तो मैं अपनी दुकान बंद कर दूंगा। शिवसेना को हिंदुत्व के लिए ही मान सम्मान मिल रहा है।” हालांकि, अब स्थिति अलग है। Bal Thackeray के उसूलों से इतर उनके सुपुत्र उद्धव ठाकरे कांग्रेस के साथ गठबंधन का हिस्सा हैं। वर्ष 2024 लोकसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे की रणनीति कामयाब हुई, लेकिन विधानसभा चुनाव में उन्हें मुह की खानी पड़ी। स्थिति ये हुई कि उद्धव गुट के महज 20 उम्मीदवार ही चुनाव जीत सके।
ऐसे में सवाल यही है कि क्या उद्धवर अपने पिता Bal Thackeray के उसूलों से विपरित चल रहे हैं? बता दें कि उद्धव ठाकरे ने कई सार्वजनिक मंचों से इस तरह के दांवों का खंडन किया है। उनका कहना है कि परिस्थितियों के अनुसार रणनीति में परिवर्तन करने होते हैं। बाल ठाकरे के सिद्धांत आज भी हमारे ज़हन में बसे हैं और मेरे साथ हर सच्चा शिवसैनिक उन्हीं के बनाए मार्ग पर चलता है।” हालांकि, उद्धव ठाकरे ने उसी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया जिनकी मुखालपत Bal Thackeray भर-भरकर किया करते थे।
Shiv Sena UBT के सिमटते प्रभाव का कारण क्या?
महाराष्ट्र में शिवसेना का दो गुंटों में बंट जाना सबसे अप्रत्याशित राजनीतिक घटनाक्रमों में से एक रहा है। आज शिवसेना उद्धव और शिंदे गुट के राह अलग हैं। शिवसेना में हुई टूट का लाभ अन्य दलों को मिला है। प्रमुख तौर पर बीजेपी Bal Thackeray की विरासत को कैप्चर करती नजर आ रही है। पार्टी में टूट, उद्धव ठाकरे का कांग्रेस के साथ जाना, ठाकरे परिवार के सदस्य राज ठाकरे के बगावती सुर कहीं न कहीं शिवसेना यूबीटी की राह में रोड़ा बन रहे हैं।
आज पार्टी महाराष्ट्र की सियासत में सिमटती नजर आ रही है। 1966 में राजनीति में पदार्पण करने वाली शिवसेना आज वर्ष 2025 में अपने वजूद को मजबूत करने के लिए संघर्षरत नजर आ रही है। उद्धव और शिंदे गुट आज भी Bal Thackeray की विरासत पर अपना हक जमाते नजर आते हैं। शिवसेना यूबीटी की एक परीक्षा BMC चुनाव भी है जो निकट भविष्य में होगी। इसमें देखना दिलचस्प होगा कि उद्धव गुट की रणनीति क्या होती है। क्या पार्टी अपना परचम फहरा पाएगी या मुंबई में भी उसका प्रभाव सिमटेगा।