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Maha Kumbh 2025: सैकड़ों वर्ष बाद आयोजित होने वाला महाकुंभ क्यों है दुर्लभ? मेले के लिए ज्योतिषीय गणना का क्या है महत्व? जानें

Maha Kumbh 2025 आयोजन से पहले हम आपको बताएंगे कि सैकड़ों वर्ष बाद आयोजित होने वाला ये धार्मिक समागम क्यों दुर्लभ है। इसके अलावा ये भी बताने की कोशिश की जाएगी कि कुंभ, अर्ध कुंभ, पूर्ण महाकुंभ और महाकुंभ आयोजन के लिए स्थल चयन में ज्योतिषीय गणना का क्या महत्व है।

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Maha Kumbh 2025
Picture Credit: गूगल (सांकेतिक)

Maha Kumbh 2025: प्रयागराज की पावन धरा पर आयोजित होने वाले महाकुंभ 2025 को लेकर कई तरह का मतभ्रम है। विभिन्न अखाड़ा परिषद के नागा साधु-संतों की उपस्थिति और संगम नगरी की चका-चौंध लोगों के मन में कौतूहल का भाव पैदा कर रही है। लोग कुंभ, अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ के बीच अंतर समझना चाहते हैं। सवाल है कि महाकुंभ का आयोजन सैकड़ों वर्षों बाद क्यों होता है? कुंभ, अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ के बीच क्या अंतर है? क्या ये सभी धार्मिक आयोजन एक समान हैं? ऐसे में आइए हम आपको Maha Kumbh 2025 आयोजन से पहले इन सवालों का जवाब देने की कोशिश करते हैं। साथ ही ये बताने की कोशिश भी की जाएगी महाकुंभ मेला के लिए जगह चुनने में ज्योतिषीय गणना का क्या महत्व है।

Maha Kumbh 2025 सैकड़ों वर्ष बाद आयोजित होने वाला महाकुंभ क्यों है दुर्लभ?

सनातन परंपरा में जन्म लेने वालों और आस्थावान लोगों के लिए महाकुंभ 2025 मेला का विशेष महत्व है। बता दें कि महाकुंभ का आयोजन बेहद दुर्लभ है क्योंकि ये 12 पूर्ण कुंभ के बाद आयोजित होता है। 12 पूर्ण कुंभ का आशय 144 वर्ष से है। यानी कि 144 वर्ष के बाद Maha Kumbh 2025 का आयोजन हो रहा है। धर्माचार्यों के मुताबिक महाकुंभ का भव्य आयोजन संगम नगरी प्रयागराज में किया गया है। इसके पीछे ज्योतिषिय गणना का महत्व है। महाकुंभ प्रयागराज में तब होता है जब बृहस्पति वृषभ राशि और सूर्य मकर राशि में होता है। वहीं जब जब सूर्य और बृहस्पति दोनों सिंह राशि के आकाशीय नक्षत्र में होते हैं तब महाकुंभ का आयोजन नासिक में होता है। जबकि बृहस्पति जब कुंभ राशि और सूर्य मेष राशि में होता है तब महाकुंभ हरिद्वार में आयोजित होता है।

महाकुंभ आयोजन स्थल के चयन में ज्योतिषीय गणना का महत्व

दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम में से एक महाकुंभ आयोजन के लिए स्थान का चयन कौन करता है? ये सवाल तमाम श्रद्धालुओं के मन में उमड़ता रहता है। बता दें कि महाकुंभ मेले के लिए स्थान का चयन ज्योतिषीय गणना के आधार पर तय किया जाता है। इसके लिए ज्योतिष और विभिन्न अखाड़ा परिषदों के धर्माचार्य खगोलीय स्थिति व बृहस्पति और सूर्य की स्थिति का निरीक्षण करते हैं। खगोलीय घटनाक्रमों का अवलोकन कर कुंभ, अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ जैसे धार्मिक समागम के लिए स्थल का चयन किया जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि कुंभ मेला चार प्रकार के होते हैं। इसमें कुंभ, अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ है। खगोलीय पिंडों की स्थिति और वर्षों के आधार पर इन्हें मनाया जाता है।

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