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Muharram 2025: इमाम हुसैन शिया समुदाय के बीच क्यों हैं पूजनीय? जानें इस्लामी परंपरा से जुड़ी मान्यता

तमाम मतभेदों के साथ शिया और सुन्नी मुसलमान मुहर्रम का त्योहार भी अलग-अलग तरीके से मनाते हैं। Muharram 2025 के खास अवसर पर हम आपको ये बताने की कोशिश करेंगे कि सुन्नी समुदाय से इतर शिया मुसलमान इमाम हुसैन के समक्ष शीश क्यों नवाते हैं। इससे जुड़ी इस्लामी मान्यता क्या है।

Muharram 2025
Picture Credit: गूगल (सांकेतिक तस्वीर)

Muharram 2025: तमाम ऐसी पारंपरिक मान्यताएं सदियों से चली आ रही हैं, जिनको लेकर समय-समय पर चर्चा होती रहती है। इस्लामी परंपरा में मुहर्रम को लेकर चली आ रही मान्यता भी उसी का हिस्सा है। दरअसल, इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम कहीं खुशियां लेकर आता है, तो कहीं ताजिया-जुलूस के साथ शोक और गम की बारिश होती है। यहां बात सुन्नी और शिया समुदाय की परंपराओं पर हो रही है। मुहर्रम 2025 पर हम आपको कुछ खास बताने की दिशा में कोशिश कर रहे हैं। इस क्रम में इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने की कोशिश की जाएगी कि शिया मुसलमान इमाम हुसैन को पूजनीय क्यों मानते हैं? वो क्या कारण है जिसको लेकर शिया समुदाय इमाम हुसैन के समक्ष शीश नवाता है? Muharram 2025 पर इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने के साथ इस्लामी परंपरा से जुड़ी पुरानी मान्यता के बारे में बताने की कोशिश की जाएगी।

इमाम हुसैन शिया समुदाय के बीच क्यों हैं पूजनीय?

इस इस्लामी परंपरा को लेकर कुछ खास धार्मिक मान्यताएं हैं। इस्लाम के जानकारों की मानें तो शिया समुदाय पैगंबर मुहम्मद के पोते इमाम हुसैन की बलिदान को याद करता है। Muharram 2025 पर भी शिया समुदाय के लोग सैंकड़ो वर्षों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक शोक मनाएंगे। इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक शिया मुसलमानों के लिए मुहर्रम त्याग, बलिदान और साहस का प्रतीक है। इस दिन इमाम हुसैन यजीद की सेना से लड़ते हुए शहादत को प्राप्त कर गए थे। यजीद की सेना के सामने इमाम हुसैन ने हथियार नहीं डाले और अपने 72 सैनिकों के साथ 680 ई. में हुए कर्बला की लड़ाई लड़ते रहे।

जलिम बादशाह यजीद की सेना ने इमाम हुसैन के साथ उनके साथियों को भी मार डाला। मरने वालों में इमाम हुसैन का 6 महीने का बच्चा अली असगर, 18 साल का बेटा अली अकबर और 7 साल का भतीजा कासिम भी शामिल था। 1400 साल पहले हुई कर्बला की लड़ाई का जिक्र आज भी होता है। शिया मुसलमान सैंकड़ों वर्षों से चली आ रही अपनी परंपरा का निर्वहन करते हुए जज्बे से मुहर्रम मनाते हैं। शिया समुदाय इस दिन शोक और गम व्यक्त करते हुए इमाम हुसैन के समक्ष शीश नवाता है और उन्हें पूजनीय मानते हुए इस दिन को मनाता है।

मुहर्रम पर क्या करते हैं शिया मुसलमान?

दुनिया भर में अलग-अलग तरीकों से गम का इजहार कर मनाया जाने वाला मुहर्रम शिया मुसलमानों के लिए भी बेहद खास होता है। इस दिन को यौम-ए-आशूरा के रूप में भी जानते हैं। मुहर्रम की 10वीं तारीख यानी आशूरा के दिन शिया मुसलमान खुद को जख्मी करते हुए मातम मनाते हैं। शुरुआत के 9 दिनों तक मजलिस करने वाले शिया मुसलमान 10वीं तारीख पर धधकते अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं और ताजिया-जुलूस निकालकर इमाम हुसैन संग की गई जुल्म की दास्तान का जिक्र करते हैं।

नोट– इस्लामिक कैलेंडर चांद पर आधारित होता है। यदि चांद आज यानी 5 जुलाई, 2025 को निकला, तो मुहर्रम कल 6 जुलाई को मनाया जाएगा। यदि चांद 6 जुलाई को निकलता है, तो मुहर्रम 7 जुलाई दिन सोमवार को मनाया जाएगा।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। डीएनपी इंडिया/लेखक यहां लिखी गई मान्यताओं की पुष्टि या समर्थन नहीं करता है।

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