Arvind Kejriwal: जैसे-जैसे दिल्ली विधानसभा चुनाव की वोटिंग नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे दिल्ली का सियासी पारा लगातार बढ़ता जा रहा है। वहीं दिल्ली की सबसे ह़ॉट सीट बनी है, वह है नई दिल्ली विधानसभा सीट, बता दें कि इस सीट से खुद अरविंद केजरीवाल चुनाव मैदान में उतरे है तो बीजेपी ने प्रवेश वर्मा इस सीट से अपनी किस्मत आजमां रहे है। वहीं कांग्रेस की तरफ से शीला दीक्षित के सुपुत्र संदीप दीक्षित चुनाव मैदान में उतरे है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अरविंद केजरीवाल एक बार फिर इस सीट से जीत रहे है। आईए समझते पूरा कैलकुलेशन।
नई दिल्ली विधानसभा सीट क्यों है खास?
नई दिल्ली विधानसभा सीट की अहमियत यह है कि यह सीट मुख्यमंत्री चुनती है। Arvind Kejriwal ने लगातार तीन बार नई दिल्ली विधानसभा सीट से जीत हासिल की और दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। इससे पहले शीला दीक्षित भी इसी सीट से विधायक हुआ करती थीं और मुख्यमंत्री बनीं। शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल दोनों 3-3 बार मुख्यमंत्री बने। सीएम बनने का चौका लगाएंगे केजरीवाल? यह बड़ा सवाल है। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को 2025 के विधानसभा चुनाव में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटे चुनौती दे रहे हैं। संदीप दीक्षित नई दिल्ली से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं और पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत शीला दीक्षित के पुत्र भी। परवेश वर्मा भी पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत साहेब सिंह वर्मा के बेटे हैं। दोनों सांसद रह चुके हैं। साफ है कि अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ कांग्रेस और बीजेपी ने मजबूत उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा है। इसलिए मुकाबला दिलचस्प हो गया है।
जायंट किलर रहे हैं Arvind Kejriwal?
Arvind Kejriwal को जायंट किलर कहा जाता है। नई दिल्ली में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराया था। दिल्ली में नये सिरे से विधानसभा चुनाव लड़कर और 70 में 67 सीटें जीत लेने के बाद एक पार्टी के मुखिया के तौर पर भी जायंट किलर बनकर सामने आए थे। ऐसा बहुमत कभी किसी को दिल्ली में या फिर देश में भी किसी राजनीतिक दल को नहीं मिला था। अगर वोट प्रतिशत की बात करें तो, 2013 में केजरीवाल को 53.46 प्रतिशत वोट मिले थे। 2015 में 64.34 प्रतिशत वोट मिले थे। इसके अलावा 2020 में आप संयोजक को 61.10 वोट मिले थे।
दलित-महिला-बुजुर्ग को साध रहे हैं पूर्व मुख्यमंत्री
नई दिल्ली विधानसभा की खासियत यह है कि यहां केंद्रीय कर्मचारी और अफसर बड़ी तादाद में रहते हैं। दिल्ली सचिवालय के कर्मचारियों की भी अच्छी खासी संख्या है। व्यापारी वर्ग में अरविन्द केजरीवाल खासा लोकप्रिय हैं। इसके अलावा यहीं वाल्मीकि मंदिर भी है जो दलितों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है। केजरीवाल एक रणनीति के तहत नामांकन से पहले वाल्मीकि मंदिर जाना तय किया। लेकिन, सबसे बड़ा दांव Arvind Kejriwal ने महिलाओं पर लगाया है। महिला मतदाताओं को साथ लेकर नामांकन के लिए निकलना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। अरविन्द केजरीवाल की मुफ्त योजनाओं के केंद्र में महिलाएं रही हैं। मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना का एलान करके भी वे महिलाओं को आकर्षित कर चुके हैं। ऐसे में नई दिल्ली में महिलाएं अरविंद केजरीवाल के लिए करिश्मा दिखा सकती हैं, इसके पूरे आसार हैं। अरविन्द केजरीवाल ने बुजुर्ग वोटरों को भी साधा है।
क्यों नई दिल्ली से Arvind Kejriwal को हराना है मुश्किल
Arvind Kejriwal के पास नई दिल्ली विधानसभा में जो सुनिश्चित और अर्जित वोटर हैं वह उनका प्लस प्वाइंट है। यह लाभ उनके प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशियों को नहीं है। संदीप दीक्षित डोर टु डोर कैंपेन और शीला दीक्षित के कार्यकाल में हुए कामों पर निर्भर हैं। परवेश वर्मा की नज़र अरविंद केजरीवाल के समर्थक महिला वोटरों पर है। इसके अलावा परवेश वर्मा के पास हिन्दुत्व का वोट भी है। तीनों प्रत्याशियों के बीच तुलना करें तो अरविन्द केजरीवाल की पकड़, अनुभव, साधन, संसाधन और संगठन की ताकत के मुकाबले बाकी प्रत्याशी नहीं ठहरते। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी नई दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी को बढ़त मिली थी। हालांकि यह बढ़त मामूली वोटों की ही मानी जाएगी। 2262 वोटों से बीजेपी यहां पिछड़ी थी।