Maharashtra Civic Polls: मतदान से ठीक पहले निकाय चुनाव की चर्चा जोरों पर है। जहां एक ओर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पार्टियां एक साथ चुनाव लड़ी थीं। वहीं निकाय चुनाव में सभी अपने-अपने राह पर अग्रसर हैं। आलम ये है कि तमाम मतभेद के बावजूद पुणे की चाकण नगरपरिषद सीट से शिंदे गुट और उद्धव ठाकरे की शिवसेना मनीषा सुरेश गोर को मेयर पद के लिए चुनाव लड़ा रही है। मनीषा गोर बीजेपी के उम्मीदवार के खिलाफ सीधे चुनावी मैदान में हैं। शिंदे गुट और उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना का उनके लिए एक साथ होना महाराष्ट्र निकाय चुनाव में बदले मंजर को प्रदर्शित करता है। यही वजह है कि पुणे की चाकण सीट का ये समीकरण लोगों को हैरत में डाल रहा है।
उद्धव ठाकरे के साथ शिंदे गुट भी बीजेपी के लिए बनी चुनौती!
पुणे की चाकण सीट फिलहाल निकाय चुनाव के लिए हाई प्रोफाइल सीट है। इस सीट से शिवसेना शिंदे गुट की उम्मीदवार मनीषा सुरेश गोर चुनावी मैदान में हैं। शिंदे गुट की उम्मीदवार को उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना की ओर से समर्थन मिला है। यहां बीजेपी प्रत्याशी के खिलाफ सियासी समीकरण तैयार है। यही वजह है लोकसभा और विधानसभा चुनाव में महायुति का हिस्सा रही शिंदे गुट का महाराष्ट्र निकाय चुनाव में कुछ सीटों पर बीजेपी के खिलाफ जाना लोगों को हैरत में डाल रहा है।
निकाय चुनाव के बीच बदल गया महाराष्ट्र का सियासी रंग!
राजनीति संभावनाओं का खेल है ये यूंही नहीं कहा जाता। ऐसे तमाम मौके सामने आ चुके हैं जब सियासी दुश्मनों को एक साथ मंच साझा करते देखा जा चुका है। ऐसी ही बदलती तस्वीर महाराष्ट्र निकाय चुनाव के बीच से सामने आई है। यहां दुश्मनों का खेमा अपनी संभावनाओं की बेहतर करने के लिए एक-दूसरे से हाथ मिलाता नजर आ रहा है।
246 नगरपरिषदों और 42 नगरपंचायतों के लिए 2 दिसंबर को होने वाली वोटिंग से पूर्व सिंधुदुर्ग जिले की कंकावली नगरपरिषद सीट पर सबकी नजरें हैं। यहां शिंदे सेना और उद्धव सेना एक साथ चुनावी मैदान में है। धाराशिव जिले की ओमेगा नगरपरिषद में शिंदे सेना और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रही है। जलगांव के चोपड़ा में शिंदे और कांग्रेस फिर साथ हैं।
नासिक की येओला नगरपरिषद में शिंदे सेना के रुपेश दराडे एनसीपी (एसपी) के साथ मिलकर बीजेपी-एनसीपी (अजित पवार) को चुनौती दे रहे हैं। पालघर की दहाणू नगरपरिषद सीट पर शिंदे सेना, एनसीपी के दोनों गुटों के साथ मिलकर बीजेपी को चुनौती दे रही है। ऐसे तमाम अन्य सीट हैं जो बदले सियासी रंग का उदाहरण हैं और वहां सरकार में एक-दूसरे के समक्ष खड़ी पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ ही हैं जिसको लेकर चर्चा तेज है।
