Mukesh Sahani: मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, चुनावी समीकरण तेजी से बदल रहा है। आलम ये है कि सीट शेयरिंग के दौरान खूब उठा-पटक का सामना कर चुके महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को सीएम और मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम का चेहरा घोषित कर दिया है। इस सियासी घटनाक्रम को लेकर बिहार के उन तमाम मुसलमानों में रोष का माहौल है, जो राजद नेतृत्व पर अपने प्रतिनिधित्व का भरोसा रखते हैं। सवाल उठ रहे हैं कि 2 फीसदी मल्लाह समाज का डिप्टी सीएम पद पर दावेदारी है लेकिन 18 फीसदी मुस्लिम समाज को क्या मिला है? क्या मुसलमानों के हाथ झुनझुना थमाया जाएगा? इस पूरे घटनाक्रम ने राजद के एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है।
वीआईपी प्रमुख Mukesh Sahani को डिप्टी सीएम फेस प्रोजेक्ट कर फंसा विपक्ष?
ये बड़ा सवाल मुसलमानों की अनदेखी के दावे के साथ उठ रहा है। दरअसल, बिहार में मुसलमानों का ज्यादातर समर्थन राजद को मिलता रहा है। यही वजह है कि राजद के लिए एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण कारगर बताया जाता है।
हालांकि, इस विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव सीएम तो मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम फेस के रूप में प्रोजेक्ट किया गया है। ये समीकरण जहां एक ओर यादवोंं को प्रतिनिधित्व का भरोसा देता है, तो वहीं दूसरी ओर मल्लाह समाज के प्रतिनिधि का सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने का सपना साकार कर सकता है। लेकिन मुसलमान फिर कहां जाएंगे? 2 फीसदी मल्लाह समाज के नेता को डिप्टी सीएम फेस के रूप में प्रोजेक्ट करना और 18 फीसदी मुस्लिम समुदाय के किसी नेता को ना करना महागठबंधन के लिए गले की फांस बन गया है।
यही वजह है कि महागठबंधन के विरोध में एक नैरेटिव चल रहा है और उन पर मुस्लिम समुदाय को अनदेखा करने का आरोप लग रहा है। अब देखना दिलचस्प होगा कि विपक्षी गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी राजद कैसे एमवाई समीकरण को लेकर उठ रहे सवालों का सामना करती है।
मुस्लिम समुदाय के लिए उम्मीद की लौ
जहां एक ओर महागठबंधन ने सीएम और डिप्टी सीएम के लिए क्रमश: तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी के नाम का ऐलान किया है। वहीं ये भी स्पष्ट किया गया है कि महागठबंधन की सरकार बनने पर सिर्फ एक डिप्टी सीएम नहीं होगा। मतलब लगभग साफ है कि राजद के नेतृत्व वाला विपक्षी गठबंधन बिहार में सरकार बनने पर मुस्लिम समाज के किसी नेता को डिप्टी सीएम बना सकते हैं।
यानी सूबे की सत्ता में पिछड़ा (तेजस्वी यादव), अति पिछड़ा (मुकेश सहनी) और अल्पसंख्यक वर्ग को साधकर एक समीकरण पेश किया जा सकता है जो मुस्लिम समुदाय के लिए उम्मीद की लौ के समान है। हालांकि, इस समीकरण को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। ऐसे में कब क्या हो जाए और किसे समाहित कर लिया जाए इसके लिए सही वक्त का इंतजार करना ही एकमात्र विकल्प है।
