Tahawwur Rana: 26/11 मुंबई आतंकी हमले के अहम आरोपी ताहवुर हुसैन राणा को अमेरिका से भारत लाया गया है। सरकार इस कदम को एक बड़ी कूटनीतिक जीत बता रही है, लेकिन कांग्रेस ने दावा किया है कि इसका पूरा श्रेय UPA सरकार की रणनीति और कोशिशों को जाता है, जो सालों पहले शुरू हुई थीं। कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार आज उस ‘परिपक्व कूटनीति’ का फायदा उठा रही है, जो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में UPA सरकार के समय शुरू हुई थी।
UPA सरकार की मेहनत से मिली Tahawwur Rana की वापसी
पूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने Tahawwur Rana के प्रत्यर्पण (extradition) का स्वागत किया, लेकिन साथ ही इस पूरे मामले की पृष्ठभूमि को भी जानना जरूरी बताया। उन्होंने कहा, “मैं खुश हूं कि ताहवुर राणा को भारत लाया गया है, लेकिन ये जानना जरूरी है कि ये सिर्फ हाल की बात नहीं है। यह एक लंबी और रणनीतिक प्रक्रिया का नतीजा है, जिसकी शुरुआत UPA सरकार ने अमेरिका के साथ मिलकर की थी।” चिदंबरम ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार सिर्फ श्रेय लेने की कोशिश कर रही है, जबकि सच्चाई यह है कि इतने बड़े अंतरराष्ट्रीय मामलों में सालों की मेहनत लगती है।
2009 में दर्ज हुआ था केस, UPA ने शुरू किया था मामला
चिदंबरम ने बताया कि 2009 में दिल्ली में Tahawwur Ranaऔर डेविड हेडली के खिलाफ केस दर्ज हुआ था। यही वो साल था जब भारत और कनाडा के बीच इंटेलिजेंस शेयरिंग शुरू हुई, जो एक बड़ी कूटनीतिक सफलता थी।
अमेरिका में हुई गिरफ्तारी, लेकिन कानूनी अड़चनें आईं
राणा को 2009 में अमेरिका के शिकागो में गिरफ्तार किया गया। हालांकि, 2011 में वहां की अदालत ने उसे मुंबई हमलों में सीधे शामिल होने से बरी कर दिया। फिर भी UPA सरकार ने हार नहीं मानी और लगातार कूटनीतिक और कानूनी प्रयास जारी रखे। उसी साल भारत की NIA टीम अमेरिका गई और हेडली से पूछताछ की। अमेरिका ने MLAT (Mutual Legal Assistance Treaty) के तहत जरूरी सबूत दिए, जो चार्जशीट में शामिल किए गए। भारत ने राणा के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट और इंटरपोल रेड नोटिस भी जारी किया।
Tahawwur Rana को लेकर 2012 से शुरू हुईं अमेरिका से गंभीर बातचीत
सलमान खुर्शीद (तब विदेश मंत्री) और रणजन माथाई (विदेश सचिव) ने अमेरिकी अधिकारियों के साथ इस मुद्दे को कई बार उठाया। अमेरिका में भारत की राजदूत निरुपमा राव ने भी इस पर लगातार बात की। चिदंबरम ने कहा, ये सब दर्शाता है कि अंतरराष्ट्रीय मामलों में शांति और समझदारी से काम लेना होता है, ना कि सिर्फ प्रचार से।
2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद भी जारी रहा प्रोसेस
चिदंबरम के मुताबिक, मोदी सरकार आने के बाद भी ये प्रक्रिया रुकी नहीं।
2015 में हेडली सरकारी गवाह बना, और 2016 में मुंबई कोर्ट ने उसे माफी दी ताकि बाकी आरोपियों पर केस मजबूत हो सके। 2018 में फिर एक NIA टीम अमेरिका गई ताकि राणा की प्रत्यर्पण प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा सके। 2019 तक ये साफ हो गया था कि राणा की सजा 2023 में खत्म होगी और भारत उसे लाने के करीब है। उन्होंने आगे कहा कि “सच ये है कि इस प्रक्रिया की शुरुआत मोदी सरकार ने नहीं की थी। ना ही उन्होंने कोई नया काम किया। वे बस उस मजबूत नींव का लाभ ले रहे हैं, जो UPA सरकार ने बनाई थी। अगर भारत गंभीरता से काम करे, तो दुनिया के किसी भी अपराधी को न्याय के कटघरे में लाया जा सकता है।”
BJP पर झूठा श्रेय लेने का आरोप
चिदंबरम ने कहा कि 2020 में राणा को स्वास्थ्य कारणों से रिहा किया गया और भारत ने तुरंत प्रत्यर्पण की मांग की। बाइडन सरकार ने इस पर समर्थन दिया। मई 2023 में अमेरिकी कोर्ट ने प्रत्यर्पण की अनुमति दी। राणा ने कई बार इस फैसले के खिलाफ अपील की, यहां तक कि US सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका डाली, लेकिन सभी याचिकाएं खारिज हो गईं। फरवरी 2025 में NIA ने पुष्टि की कि राणा 2005 से 26/11 साजिश में शामिल था और पाकिस्तान की ISI व लश्कर-ए-तैयबा से उसके करीबी रिश्ते थे। 8 अप्रैल 2025 को अमेरिका ने राणा को भारत को सौंप दिया, और वह 10 अप्रैल को दिल्ली पहुंचा।