Tamil Nadu Politics: दक्षिण की राजनीति में संघ धीरे-धीरे ही सही, लेकिन अपनी जड़े मजबूत करने में कदम बढ़ा रहा है। विशेषकर तमिलनाडु की बात करें तो यहां के ग्रामीण इलाकों में आरएसएस का प्रभाव तेजी से बढ़ा है। इसकी प्रमुख वजह है संघ प्रमुख मोहन भागवत का ‘हिंदुत्व प्लान’ जिसको लेकर सियासी हलचल भी तेज हुई है।
यही वजह है कि सीएम एमके स्टालिन की डीएमके और कांग्रेस के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार थोड़ी घबराई नजर आ रही है। आरएसएस की तमिलनाडु में सक्रियता कई सवालों को भी जन्म दे रही है। पूछा जा रहा है कि सीएम स्टालिन के लिए संघ कितनी बड़ी चुनौती है? संघ प्रमुख मोहन भागवत का हिंदुत्व प्लान सत्तारुढ़ डीएमके के लिए क्यों परेशानी का विषय बन सकता है? इससे इतर भी कुछ अन्य सवाल हैं जिनका जवाब ढूंढ़ने की कोशिश की जाएगी।
सीएम स्टालिन के लिए कितनी बड़ी है RSS की चुनौती?
सामान्यत: इस सवाल का जवाब हम दक्षिण में आरएसएस की हल्की पैठ का जिक्र कर दे सकते हैं। हालांकि, परिस्थितियां बदली हैं और साथ ही आरएसएस की रणनीति में बदलाव देखने को मिला है। आलम ये है कि संघ तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में अपनी पैठ मजबूत कर रहा है। टिप्पणीकारों की मानें तो तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में शाखा का विस्तार हुआ है। साथ ही आरएसएस स्थानीय हिंदू मुन्नानी जैसे संगठनों के साथ कदम से कदम मिला रही है। इससे धीरे-धीरे ही सही, लेकिन आरएसएस के कार्यकर्ता संगठन के विचारों का प्रसार करने में कामयाब हुए हैं।
दूसरी ओर बीजेपी भी संघ के सहारे संगठन को मजबूत कर चेन्नई से मद्रास, रामेश्वरम तक डीएमके सरकार को घेर रही है। आलम ये है कि तमिलनाडु के विभिन्न शहरों में चौक-चौराहों पर संघ चर्चा का केन्द्र बन गया है। इससे ये लगभग तय है कि विधानसभा चुनाव 2026 में डीएमके गठबंधन के लिए मैदान खाली नहीं रहेगा। आरएसएस मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए सीएम स्टालिन के समक्ष चुनौती पेश करेगा। परिणाम क्या होगा, ये तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इन सब में आरएसएस अपनी अहम भूमिका जरूर निभाएगा।
मोहन भगवत का ‘हिंदुत्व प्लान’ डीएमके के लिए क्यों बन सकता है परेशानी?
संघ प्रमुख ने अपनी रणनीति के बदौलत तमिलनाडु पॉलिटिक्स में नए सिरे से हलचल मचा दी है। आलम ये है कि तिरुपरनकुंद्रम विवाद को बीजेपी मुखरता से मुद्दा बना रही है। जो धर्मों के बीच छिड़ी लड़ाई के बीच तिरुपरनकुंद्रम मसले पर मोहन भागवत ने कहा कि यह मुद्दा हिंदुओं के पक्ष में ही सुलझेगा। यह बयान साफ तौर पर संघ प्रमुख के ‘हिंदुत्व प्लान’ को धार देता है। अयोध्या और काशी की तरह यहां भी एक स्थान पर दो धर्मों के दावे को लेकर विवाद है।
मामला न्यायालय में है लेकिन आरएसएस तमिल हिंदुओं के सबसे पूजनीय देवता भगवान मुरुगन से जुड़े इस मुद्दे को उठा रही है। यदि ये मामला 2026 चुनाव से पहले नहीं सुलझा, तो संघ के सहारे बीजेपी इसे प्रदेशव्यापी मुद्दा बनाएगी। ऐसी स्थिति तमिल हिंदुओं का एक बड़ा तबका आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित होकर बीजेपी के साथ जा सकता है। यदि ऐसा हुआ तो डीएमके के वोट बैंक में तगड़ी सेंधमारी होगी जो उनके लिए परेशानी का विषय बन सकता है।






