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Bihar Assembly Election 2025: महागठबंधन में पार्टनर के व्यवहार से ‘भूकंप’! जानें कौन हो रहा है पॉलिटिकल बॉम्बिंग का शिकार, क्रोनोलॉजी जानकर हिल जाएंगे आप

Bihar Assembly Election 2025: महागठबंधन के भीतर की स्थिति दोस्ती से विश्वासघात में कैसे बदलती जा रही है। आप यह जानकर हैरान रह जाएँगे कि ऐसा क्यों हो रहा है और इसकी शुरुआत किसने की। बीते हरियाणा और दिल्ली चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस की अनबन और अरविंद केजरीवाल व राहुल गांधी के बीच असंतोष सभी ने देखा। अब बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच राजद के साथ अनसुलझा विवाद मुख्यमंत्री के चेहरे जैसे मुद्दों में उलझ गया है।

India Alliance leaders (File photo)
India Alliance leaders (File photo)

Bihar Assembly Election 2025: विपक्षी महागठबंधन की चमक फीकी पड़ रही है। खासकर ऐसे समय में जब बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। पहले चरण के 121 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया संपन्न हो चुकी है। लेकिन इंडिया गठबंधन के भीतर सीटों का बंटवारा अभी तक आधिकारिक रूप से तय नहीं हुआ है। सीट बंटवारे को लेकर महागठबंधन के घटक दलों के बीच तनाव बना हुआ है। जिससे अंदरूनी राजनीतिक उठापटक हो रही है। मुकेश सहनी शुरू से ही अपनी विकासशील इंसान पार्टी के लिए सम्मानजनक सीट हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

एक निजी हिंदी टीवी समाचार चैनल पर पत्रकार से बात करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, “महागठबंधन देरी से चल रहा है, ठीक वैसे ही जैसे बिहार में कुछ ट्रेनें अक्सर देरी से चलती हैं।” ये टिप्पणी किसी और की नहीं, बल्कि महागठबंधन के एक घटक दल के एक प्रमुख नेता की ओर से आई है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इंडिया अलायंस के भीतर की स्थिति दोस्ती से विश्वासघात में कैसे बदलती जा रही है। आप यह जानकर हैरान रह जाएँगे कि ऐसा क्यों हो रहा है और इसकी शुरुआत किसने की। हमने इन सवालों के जवाब ढूँढ़ने की कोशिश की है। जिसे इस खबर में लिखा गया है। इसके लिए खबर को अंत तक पढ़ें।

Bihar Assembly Election 2025: क्या टूट की कगार पर खड़ा है महागठबंधन?

गौरतलब है कि 23 जून 2023 को बिहार के पटना में नीतीश कुमार की अध्यक्षता में एक बैठक हुई थी। विपक्षी एकता को एक साथ लाने का खाका तैयार किया गया था। लेकिन आज दो साल से भी कम समय बाद वही नीतीश कुमार एनडीए में लौट चुके हैं। इंडिया गठबंधन जो कभी भाजपा के खिलाफ एकजुट मोर्चे के रूप में उभरा और बिहार से संरचित और 2023 के जुलाई महीने में बेंगलुरु में अस्तित्व में आई वह अब टूटने के कगार पर है। इस गठबंधन में 26 दल शामिल हुए थे। जिसका प्रभाव लोकसभा चुनाव परिणाम में देखने को मिला था।

इंडिया गठबंधन ने उत्तर प्रदेश, बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में एनडीए को कड़ी चुनौती दी थी। नतीजतन बीजेपी अपने दम पर बहुमत हासिल करने में विफल रही। अब महागठबंधन लड़खड़ा रहा है। बीते हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान यह विशेष रूप से स्पष्ट दिखा था। हालांकि, इंडिया गठबंधन के कुछ घटक दलों को उम्मीद थी कि कुछ शेष मुद्दे हल हो जाएंगे। सुलह की बात तो छोड़ ही दीजिए, स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दौरान आंतरिक कलह के कारण महागठबंधन टूटने के कगार पर आ पहुंचा है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: महागठबंधन टूटने के पीछे असली वजह क्या होगी?

मालूम हो कि पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन के नेतृत्व को लेकर इंडिया अलायंस में अभी तक आमने-सामने की तकरार जारी है। दिल्ली चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस की अनबन और अरविंद केजरीवाल व राहुल गांधी के बीच असंतोष सभी ने देखा। अब बिहार विधानसभा चुनाव के बीच राजद के साथ अनसुलझा विवाद मुख्यमंत्री के चेहरे जैसे मुद्दों में उलझ गया है। इस सारी कलह के बीच झारखंड की सत्तारूढ़ पार्टी झामुमो ने महागठबंधन पर पुनर्विचार की बात तक कह दी है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या इस बिहार चुनाव के अंत तक या उससे पहले ही महागठबंधन का अस्तित्व डगमगा जाएगा?

आलम यह है कि बिहार विधानसभा चुनाव पहले चरण के मतदान के लिए नामांकन की समय सीमा समाप्त होने के बावजूद सीट बंटवारे का फॉर्मूला इंडिया अलायंस तय नहीं कर पाया है। इसके चलते महागठबंधन के सहयोगी दल प्रत्याशी कई सीटों पर एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में नामांकन करा चुके हैं। वहीं, इंडिया गठबंधन की बिगड़ती स्थिति के पीछे एक बड़ी वजह यह सामने आई है कि शुरुआत में क्षेत्रीय दल के रूप में उभरी और राष्ट्रीय स्तर पर अपना दबदबा कायम कर चुकी दल और कांग्रेस के बीच राजनीतिक ज़मीन को लेकर लड़ाई रही है। महागठबंधन में जिस पार्टी का किसी राज्य विशेष में दबदबा है वह अपना आधार बनाए रखना चाहती है, जबकि कांग्रेस अपनी पुरानी ज़मीन वापस पाने के लिए आतुर है।

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