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‘राष्ट्रपति ने मुझे लड्डू खिलाए’ रायसीना हिल से लौटकर Atal Bihari Vajpayee ने क्यों कही ये बात? पहली बार कैसे सत्ता के शिखर तक पहुंचा था स्वयंसेवक?

इस लेख के माध्यम से हम आपको उस वाकये के बारे में बताएंगे जब 161 सीटें जीतकर बीजेपी ने पहली बार 1996 में सरकार बनाई थी और अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) 13 दिनों के लिए देश के पीएम बने थे।

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Atal Bihari Vajpayee
फाइल फोटो- पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी

Atal Bihari Vajpayee: रायसीना हिल कि वो बैठक, बैठक के दौरान राष्ट्रपति द्वारा एक नेता को लड्डू खिलाना और फिर लड्डू खाने वाले नेता का देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेना। यह सारे राजनीतिक घटनाक्रम 9 मई, 1996 के बाद के हैं, जब लोकसभा चुनाव नतीजों के ऐलान के बाद भाजपा 161 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। BJP के लिए चुनावी कमान संभाली थी अटल बिहारी वाजपेई (Atal Bihari Vajpayee) ने। ऐसे में परंपरा के अनुसार ‘चुनाव के बाद के परिदृश्य’ पर चर्चा करने वे रायसीना हिल स्थित राष्ट्रपति आवास पहुंचे। दोपहर करीब 1:40 पर रायसीना हिल के लिए निकले वाजपेयी जल्द ही अपने 6, रायसीना स्थित आवास लौट आए। उन्होंने अपने एक मित्र को बताया कि राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने उन्हें लड्डू खिलाए हैं, जो स्पष्ट रूप से संकेत था कि RSS का एक स्वयंसेवक पहली बार पीएम की कुर्सी पर बैठने वाला था।

सत्ता के शिखर तक कैसे पहुंचे थे Atal Bihari Vajpayee?

9 मई ,1996 को लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित हुए। इस चुनाव में तीसरा मोर्चा 173 सीटें जीतकर सबसे बड़ा घटक दल बना था। हालांकि, सिंगल लार्जेस्ट पार्टी के रूप में बीजेपी सामने आई थी जिसके 161 सांसद चुनाव जीतकर सदन पहुंचे थे। वहीं कांग्रेस महज 140 सीटों पर सिमट गई थी। परंपरा के अनुसार सबसे बड़ी पार्टी के रूप में बनकर उभरी भाजपा को ‘चुनाव के बाद के परिदृश्य’ पर चर्चा के लिए राष्ट्रपति भवन से आमंत्रण मिला। अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) बीजेपी की ओर से राष्ट्रपति से मिलने पहुंचे। बैठक खत्म कर 6, रायसीना रोड स्थित अपने आवास पर लौटे वाजपेयी ने अपने एक करीबी मित्र को बताया कि राष्ट्रपति ने मुझे लड्डू खिलाए हैं। इससे स्पष्ट था कि RSS के स्वयंसेवक रहे वाजपेयी प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले थए।

अंततः 16 में 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। इस दौरान भाजपा मुख्यालय से लेकर संघ के मुख्यालय तक अटल समर्थकों ने खूब जश्न मनाया। अटल बिहारी वाजपेई के साथ 11 अन्य कैबिनेट मंत्रियों ने भी शपथ ली थी। इसमें जसवंत सिंह, श्याम मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं का नाम शामिल था। वहीं राजमाता विजय राजे सिंधिया और लाल कृष्ण आडवाणी का कैबिनेट में न होना सबको हैरान कर रहा था। इन सबसे इतर बीजेपी देश के लोगों को ये विश्वास दिला पाने में कामयाब रही कि उन्हें सत्ता सौंपी जा सकती है। 13 दिनों के अपने पहले कार्यकाल में वाजपेयी सरकार ने संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण करने का फैसला लिया। यह फैसला विश्वास प्रस्ताव पर चली दो दिन की बहस से ठीक पहले लिया गया था।

सदन में खूब गरजे थे अटल बिहारी वाजपेयी!

वीपी सिंह और कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में तैयार हुई संयुक्त मौर्चा, और कांग्रेस को इस मोर्चे का समर्थन देने से जुड़ा वादा अटल बिहारी वाजपेयी के कानों तक पहुंच चुका था। उन्होंने निश्चित कर लिया कि वे प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देंगे। इसी कड़ी में 27 मई, 1996 को सदन में बोलने के लिए खड़ा हुए अटल बिहारी वाजपेयी जब बोल रहे थे, तो मानों ऐसा लग रहा था कि इस भाषण के लिए वर्षों से उन्होंने तैयारी कर रखी हो। उन्होंने अपने भाषण के दौरान स्पष्ट किया था कि भाजपा एकरूपता की पक्षधर नहीं है। भाजपा कई धर्म, कई भाषाओं और कई नस्लों वाले बहुरंगी चरित्र को स्वीकार करती है। वाजपेयी ने अंतत: कहा, ‘ माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं महामहिम राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र सौंपने जा रहा हूं।’

अटल बिहारी वाजपेयी के इस कथन के बाद खूब गहमा-गहमी चली। उन्होंने इस कथन से यह स्पष्ट कर दिया था कि वह अपने सरकार का बहुमत साबित करने के लिए दी गई समय से पहले इस्तीफा दे रहे हैं। उन्होंने सदन के गुणा-गणित का सम्मान किया और अपने त्याग का प्रदर्शन किया। अटल बिहारी वाजपेयी के इस कथन के माध्यम से भाजपा जनता को यह संदेश देना चाहती थी कि देश की सत्ता उन्हें सौंपी जा सकती है। बीजेपी यह संदेश दे पाने में सफल भी रही। संयुक्त मोर्चा की सरकार गिरने के बाद 1998 में वाजपेयी एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बने। फिर 1999 से 2004 तक उन्होंने पहले गैर कांग्रेसी पीएम के रूप में अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल को पूरा कर इतिहास भी रचा। हालांकि, वर्ष 2004 में ‘इंडिया शाइनिंग’ का जहाज डूबा और कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सत्ता वापसी करने में सफल रही थी।

नोट- पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक जीवन से जुड़ा ये किस्सा विनय सीतापति की किताब ‘जुगलबंदी’ से लिया गया है।

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