Omar Abdullah: कश्मीर की एक सुहानी शाम सीएम उमर अब्दुल्ला के लिए तब भारी पड़ गई जब उन्हें कथित रूप से नजरबंद कर दिया गया। दावे के मुताबिक नजरबंद होने वालों में सिर्फ उमर अब्दुल्ला ही नहीं थे, बल्कि दर्जनों नेता इसकी ज़द में आए। जम्मू-कश्मीर में हुए इस ताजा घटनाक्रम के बाद मुख्यमंत्री ने स्वर्गीय अरुण जेटली के शब्दों में केन्द्र की मोदी सरकार को घेरा है। इशारों-इशारों में एलजी मनोज सिन्हा पर बरसते हुए Omar Abdullah ने उन तमाम अखबारों पर भी भड़ास निकाली है, जिन्होंने इस खबर को प्राथमिकता नहीं दी। सीएम अब्दुल्ला ने साफ तौर पर कहा है कि “नई दिल्ली के अनिर्वाचित प्रतिनिधियों ने जम्मू-कश्मीर की जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों को जेल में बंद कर दिया।”
अरुण जेटली के शब्दों में केन्द्र सरकार पर बरसे सीएम Omar Abdullah!
इशारों-इशारों में बड़ी बात कहते हुए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केन्द्र को निशाने पर लिया है। कथित रूप से नजरबंद किए जाने के बाद सीएम अब्दुल्ला का दर्द छलका है। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि “स्वर्गीय अरुण जेटली साहब के शब्दों को उधार लेते हुए, जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र अनिर्वाचित लोगों का अत्याचार है। इसे सीधे शब्दों में कहें तो आप सभी समझ जाएँगे कि आज नई दिल्ली के अनिर्वाचित प्रतिनिधियों ने जम्मू-कश्मीर की जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों को जेल में बंद कर दिया।” सीएम Omar Abdullah ने इस पोस्ट के साथ कुछ खास तस्वीरें भी साझा की हैं जिसमें उनके सरकारी आवास के बाहर जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों को तैनात देखा जा सकता है। मुख्यमंत्री तस्वीरों को कैप्शन देते हुए लिखते हैं कि “अनिर्वाचित सरकार ने निर्वाचित सरकार को बंद कर दिया।”
सीएम उमर अब्दुल्ला ने अखबारों को भी लिया आड़े हाथ!
नजरबंद किए जाने की खबर को प्राथमिकता नहीं देने वाले अखबारों पर भी सीएम Omar Abdullah जमकर बरसे हैं। उनके एक्स पोस्ट में लिखा गया है कि “हमारे स्थानीय अखबारों पर एक नजर डालिए। जम्मू और श्रीनगर, दोनों के, अंग्रेजी और स्थानीय भाषाओं के। आपको कायरों और हिम्मत वालों में फर्क़ साफ दिखाई देगा। कायरों ने इस बात को पूरी तरह से दबा दिया है कि कल पूरी चुनी हुई सरकार और ज़्यादातर चुने हुए प्रतिनिधि जेल में बंद कर दिए गए। जिन अखबारों में थोड़ी हिम्मत है, उन्होंने इसे पहले पन्ने पर जगह दी है। उन बिकाऊ लोगों पर शर्म आनी चाहिए जिन्होंने इस खबर को दबा दिया, उम्मीद है लिफाफे का आकार इसके लायक रहा होगा।”
क्या है नजरबंद से जुड़ा पूरा मामला?
दरअसल, 13 जुलाई का दिन कश्मीरी आवाम के लिए बेहद अहम है। अतीत के पन्ने पलटेंगे तो 1931 में 13 जुलाई को डोगरा शासक हरि सिंह के खिलाफ अब्दुल कादिर के समर्थकों द्वारा विद्रोह की आवाज उठने का जिक्र मिलता है। तत्कालीन शासन ने श्रीनगर जेल के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे कश्मीरियों पर गोली बरसा दी जिसमें 22 लोगों की मौत हुई थी। इन मृतकों को कश्मीरी शहीद का दर्जा देते हैं और उनकी कब्र पर जाकर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं। हालांकि, अबकी बार पुलिस J&K पुलिसे सीएम Omar Abdullah, फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती समेत विपक्ष के कई नेताओं को नजरबंद कर कब्रिस्तान जाने से रोक लगा दी थी। यही वजह है कि उमर अब्दुल्ला समेत तमाम विपक्षी नेताओं का दर्द छलका है।