बुधवार, जुलाई 16, 2025
होमख़ास खबरेंMuharram 2025: एक तरफ ढोल-नगाड़े, दूसरी तरफ मातम, जानें शिया ओर सुन्नी...

Muharram 2025: एक तरफ ढोल-नगाड़े, दूसरी तरफ मातम, जानें शिया ओर सुन्नी में क्यों है मोहर्रम को लेकर मतभेद?

Date:

Related stories

Muharram 2024: आज मनाया जाएगा मुहर्रम, जानें ताजिया निकालने और इस्लाम के इस त्योहार का क्या है महत्व?

Muharram 2024: देश-दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आज मुहर्रम का त्योहार मनाया जाएगा। बता दें कि मुहर्रम का त्योहार इस्लाम के प्रथम माह में 10वें आशूरा को पड़ता है जो कि इस बार 17 जुलाई यानी कि आज पड़ा है।

Muharram 2024: मुहर्रम पर Lucknow के साथ केन्द्रीय राजधानी Delhi में भी ट्रैफिक डायवर्जन का प्लान, यहां चेक करें नया रूट

Muharram 2024: देश के विभिन्न हिस्सों में 17 जुलाई को इस्लामी त्योहार मुहर्रम मनाया जाएगा। इस दौरान इस्लाम में आस्था रखने वाले लोग मातमी जुलूस निकालेंगे और इस मुहर्रम मनाएंगे।

Muharram 2025: इस्लाम धर्म में जहां एक तरफ मोहर्रम शुरु होते ही नए साल की शुरुआत होती है तो वहीं, दूसरी तरफ मातम छा जाता है। शिया मुस्लिम इस महीने को शहादत का महीना मानते हैं। वहीं, सुन्नी मुस्लिम इसे नए साल के रुप में देखते हैं। यही वजह है कि, मोहर्रम में दोनों मुस्लिम समुदायों के बीच अंतर देखने को मिलता है। 27 जून से इस्लाम धर्म में नए साल की शुरुआत हो चुकी है। वहीं, शिया मुस्लिम मोहर्रम की 10वीं तारीख को मातम मनाते हैं। इसका कारण कर्बला की वो जंग है जिसमें पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के पोते हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों को दुश्मनों ने शहीद किया था। इसीलिए मोहर्रम को गमी के रुप में मनाया जाता है और मातम किया जाता है। 6 जुलाई को मोहर्रम दुनियाभर में मनाए जा रहे हैं।

Muharram 2025: मोहर्रम क्या है और शिया क्यों मनाते हैं मातम?

मोहर्रम के दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के छोटे नाती इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को यजीद ने शहीद किया था। मुस्लिम धर्म में इसे एक दर्दनाक घटना माना जाता है। इसीलिए इमाम हुसैन को मानने वाले शिया मुस्लिम मातम करते हैं। वहीं, सुन्नी रोजे के साथ दान, नमाज और इबादत करते हैं। इमाम हुसैन और उनके सहयोगी न्याय , सच्चाई और जुर्म के खिलाफ खड़े थे उन्होंने अत्याचारी के सामने अपना सिर नहीं झुकाया। सभी 72 लोग कर्बला के मैदान में अपने अधिकारों, इस्लाम, न्याय और सच्चाई के लिए लड़ते-लड़ते शहीद हो गए थे। इमाम हुसैन की इस कुर्बानी को शिया मुस्लिम याद करते हुए मातम मनाते हैं और ताजिया और जूलूस निकालते हैं। शिया मुस्लिम ये मानते है कि, वो कर्बला की जंग में शामिल तो नहीं हो सके लेकिन उनकी कुर्बानी को हर साल याद करेंगे और मातम मनाएंगे।

सुन्नी मुस्लिमों में ढोल बजाने की प्रथा

मोहर्रम के दिन सुन्नी मुस्लिम भी मातम मनाते हैं और इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं। क्योंकि मुहरर्म से इस्लाम धर्म में नए साल की शुरुआत होती है, इसलिए ये उनके लिए खास माना जाता है। मान्यताओं की मानें तो मुहर्रम के दिन कई घटनाएं घटि थीं। इस दिन हजरत मूसा ने जालिम फिरौन मुक्ति दिलाई थी। इसलिए सुन्नी मुस्लिम रोजा रखते हैं। मुहर्रम में ढोला बजाने को लेकर धार्मिक गुरुओं की राय अलग-अलग हैं। कुछ लोग इसे जायज मानते हैं तो कुछ लोग इस नजायज मानते हैं।

Aarohi
Aarohihttps://www.dnpindiahindi.in/
आरोही डीएनपी इंडिया हिन्दी में देश, राजनीति , सहित कई कैटेगिरी पर लिखती हैं। लेकिन कुछ समय से आरोही अपनी विशेष रूचि के चलते ओटो और टेक जैसे महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी लोगों तक पहुंचा रही हैं, इन्होंने अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई निफ्टू यूनिवर्सिटी से पूर्ण की है और लंबे समय से अलग-अलग विषयों की महत्वपूर्ण खबरें लोगों तक पहुंचा रही हैं।

Latest stories