Punjab News: जब पूरा देश लोकतंत्र दिवस मना रहा है, तब पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इसकी असली मिसाल पेश की है। बाढ़ से परेशान लोगों के बीच जाकर, उन्होंने दिखाया कि एक नेता को वाकई कैसे काम करना चाहिए। आमतौर पर नेता हवाई जहाज से ऊपर से देखकर ही चले जाते है। लेकिन मुख्यमंत्री मान खुद बाढ़ वाले इलाकों में गए। कीचड़ और पानी में जाकर लोगों से मिले। यही है असली नेतृत्व।
सभी कैबिनेट मंत्रियों को अमृतसर और सीमावर्ती गांवों में भेजा गया
सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं, सभी कैबिनेट मंत्रियों को अमृतसर और सीमावर्ती गांवों में भेजा गया। वे सिर्फ देखने नहीं गए, बल्कि सच में लोगों की मदद करने गए। दफ्तरी बैठकों की बजाय मैदान में जाकर काम किया। मान साहब ने कहा – “मैं मुख्यमंत्री नहीं, दुःख मंत्री हूं।” यह बात पंजाबीयों के दिल छू गई। उन्होंने मुसीबत में फंसे लोगों के साथ एक खास रिश्ता बना लिया।
पंजाब सरकार ने वादे नहीं, बल्कि सच्चे काम से लोकतंत्र दिवस मनाया। औपचारिकता की बजाय, पंजाब ने असली कार्रवाई दिखाई। जंग के स्तर पर योजना बनाकर भारत की सबसे बड़ी फसल मुआवज़ा राशि दी – ₹20,000 प्रति एकड़ सीधे किसानों को, और बाढ़ प्रभावित परिवारों को ₹4 लाख दिए गए। हर बाढ़ प्रभावित गांव को तुरंत बसाने के लिए ₹1 लाख की मदद मिली।
राहत शिविरों में असली लोकतंत्र दिखा। जहां लोकतंत्र सच में जिया जाता है, वहां लोग खुद आगे आते है। स्वयंसेवकों और स्थानीय नेताओं ने 2,300 से ज्यादा गांवों में खाना बांटने, डॉक्टरी कैंप लगाने और सफाई अभियान चलाने का काम संभाला। आम पंजाबियों ने अपने इलाकों और बाज़ारों में पहले सूचना देने वाले बने, सरकार के काम को अपनी ज़िम्मेदारी समझा।
प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से न कोई इशारा आया, न संदेश, न ही पंजाब की मुसीबत को समझा गया
वहीं अगर हमारे देश के प्रधानमंत्री की बात करें तो उनकी प्राथमिकताओं में जनता कहीं दिखी ही नहीं। मान सरकार ने गणतंत्र दिवस को ज़मीनी बचाव का दिन बनाया, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से न कोई इशारा आया, न संदेश, न ही पंजाब की मुसीबत को समझा गया। उनकी व्यस्तता कहीं और रही – जब मुख्यमंत्री प्रेस में भारतीय लोकतंत्र की आत्मा की बात कर रहे थे। “जनता के नेता” कहलाने वाले प्रधानमंत्री की गैर-मौज़ूदगी काफी मायने रखती है और काफ़ी कुछ दिखा जाती है।
सबने देखी उनकी विदेशों के लिए चिंता, और अपने देश में खामोशी। अपने देश में संकट के समय, लोकतंत्र के असली मूल्यों का पता चल जाता है। मोदी जी जो अफगानिस्तान जैसे बाहरी संकटों पर दखल देते नज़र आए, इस बार अपने नागरिकों को नेतृत्व और हमदर्दी के इंतज़ार में छोड़ दिया। लोकतंत्र का जश्न मनाना है तो भारतीय लोगों की ज़िंदगियों को पहले रखना चाहिए, जो आज केंद्र सरकार में दिख नहीं रहा।
“जनता की, जनता के लिए, और जनता द्वारा”
लोकतंत्र की बात करे तो लोकतंत्र का अर्थ है “जनता की, जनता के लिए, और जनता द्वारा”, जो कि शासन का वह रूप है जहाँ सर्वोच्च शक्ति जनता में निहित होती है और जनता द्वारा ही प्रयोग की जाती है, या तो प्रत्यक्ष रूप से या चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से। और इसकी जीती जागती उदाहरण है मान सरकार, क्यूंकि जब लोग राज्य को अपना समझते है, तब लोकतंत्र फलता-फूलता है। इस बाढ़ में सिर्फ सरकार ही नहीं, बल्कि जनता भी जमकर आगे आई। स्वास्थ्य अभियान से लेकर साफ-सफाई के काम तक, और किसानों की आवाज़ को नीति में शामिल करने तक – जनता और सरकार की साझेदारी ने देश के लिए मिसाल पेश की है, जबकि बाकी जगह लोकतंत्र सिर्फ रस्म बनकर रह गया है।
जैसे-जैसे पानी घट रहा है, यह साबित हो रहा है कि लोकतंत्र सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि एक पक्का वादा है। पंजाब ने लोकतंत्र दिवस को रस्म से नहीं, बल्कि लोगों को शक्ति, उम्मीद और राहत देकर मनाया। जब पंजाब में आई इस बाढ़ का इतिहास लिखा जाएगा, वह सरकार और जनता के साथ खड़े रहने की कहानी होगी, जहां एक-दूसरे को छोड़ने का सवाल ही नहीं उठा। और आम आदमी के लिए लड़ने वाली, उनके साथ खड़ी रहने वाली मान सरकार को हमेशा याद रखा जाएगा।