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क्या होता है Encounter और भारत में क्या हैं इससे जुड़े नियम…मानवाधिकार आयोग का क्या है पक्ष, यहां जानें

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 Encounter: उत्तर प्रदेश में लगातार एक के बाद एक माफियाओं को मिट्टी में मिलाने का काम जारी है। आए दिन यहां किसी न किसी माफिया का एनकाउंटर किया जा रहा है। काफी समय से फरार चल रहे अतीक अहमद के बेटे असद अहमद के बेटे को भी यूपी एसटीएफ ने गुरुवार को मार गिराया। इससे पहले भी कई ऐसे मामले हुए है जिसकी चर्चा मीडिया में काफी तेजी से थी उन्हीं में से एक है विकास दुबे का एनकाउंटर। लगातार हो रहे इस एनकाउंटर को लेकर लोग यह जानना चाहते हैं कि आखिर इसको लेकर भारत का कानून क्या कहता है। इसके लिए किस तरह के नियम बनाए हमारे संविधान में बनाए गए हैं। मानवाधिकारों की रक्षा करने वाली संस्था एनएचआरसी और भारत के सर्वोत्तम न्यायालय की तरफ से एनकाउंटर को लेकर क्या दिशा निर्देश दिया गया है।

एनकाउंटर पर आखिर क्या कहता है देश के कानून का किताब ?

देश के अलग -अलग राज्यों में अपराधियों के एनकाउंटर की खबर सामने आती रहती है। भारत के संविधान में या फिर कानून से जुड़े भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की किताब में एनकाउंटर शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। इसको लेकर ये हवाला दिया जाता है कि कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए एनकाउंटर किया जाता है। पुलिस के लोग ऐसे व्यक्ति जिसकी वजह से राज्य की कानून व्यवस्था बनने में दिक्क्त होती है उसे केवल कस्टडी में लेकर उसके ऊपर लगे आरोपों की जांच कर सकते हैं।

आखिर कब किया जाता है एनकाउंटर ?

एनकाउंटर को लेकर ये बताया जाता है कि जब किसी अपराधी पर कोई मुकदमा दर्ज होता है और वह पुलिस के जांच में सहयोग नहीं करता है और कई बार अपराधी काफी समय तक गायब ही रहता है ऐसे में पुलिस के लोगों को मजबूरन उसका एनकाउंटर करना पड़ता है। इस एनकाउंटर शब्द का प्रयोग कानून आयोग यानी लॉ कमीशन ने दोनों तरफ से हुए हमले के बाद निजात किया है। कानून के मुताबिक अपराधी जब पुलिस पर आक्रमण करता है तो ऐसे में पुलिस भी उसे साथ जवाबी कार्रवाई कर सकती है। वहीं भारत में एनकाउंटर को लेकर अभी तक कोई कानून नहीं बना है। सर्वोच्च अदालत की तरफ से एनकाउंटर को लेकर कई तरह के दिशा – निर्देश दिए गए हैं जिसे हर पुलिस के लोगों को पालन करना होता है।

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सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एनकाउंटर को लेकर ये दिया गया है निर्देश

सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पुलिस को ये दिशा – निर्देश दिया गया है कि अगर पुलिस विभाग को किसी अपराधी से जुड़ी खुफिया और बड़ी जानकारी मिलती है तो उसे इलेक्ट्रानिक फॉर्म में दर्ज करना होगा। उसके बाद ही पुलिस उस अपराधी पर कोई बड़ा एक्शन ले सकती है। पुलिस और अपराधी के बीच हुए मुठभेड़ में अगर कोई अपराधी मारा जाता है तो तुरंत ही उस घटना में शामिल पुलिस कर्मियों के ऊपर एफआईआर दर्ज होनी चाहिए। एफआईआर दर्ज होने के बाद घटना की सही तरीके से जांच होनी चाहिए। इस पूरे मामले की जांच स्थानीय पुलिस नहीं कर सकती है। इसकी जांच या सीआईडी या फिर किसी दूसरे पुलिस स्टेशन के लोगों के द्वारा होनी चाहिए। इसके साथ ही जांच में यह लिखित में होना चाहिए वारदात को कब अंजाम दिया गया और इससे जुड़ी जानकारियां भी होनी चाहिए। इस एनकाउंटर के बाद में पूरे घटना की जानकरी जिले की कोर्ट के सामने लिखित में पेश करना होता है।

क्या कहता है मानवाधिकार ?

एनकाउंटर को लेकर मानवाधिकार ये कहता है कि इससे जुड़ी जानकारी जैसे ही पुलिस के लोगों को लगे तो सबसे पहले एफआईआर लिखी जानी चाहिए। अगर किसी कारणवश एफआईआर नहीं लिखा गया है तो थानाधिकारी पर भी इसकी कार्रवाई हो सकती है। अपराधी से जुड़ी सभी चीजों की जानकारी लिखित में होनी चाहिए। मानवाधिकार भी ये कहता है कि इसकी जांच किसी बड़े और स्वतंत्र जांच एजंसी के द्वारा करवानी चाहिए। वहीं एनकाउंटर को लेकर ये भी नियम है कि इसकी जांच भी चार महीने के अंदर ही पूरी होनी चाहिए। वहीं अगर एनकाउंटर में पुलिस के लोग दोषी पाए गए तो उनके खिलाफ भी शख्त कार्रवाई होनी चाहिए। इसकी जांच मजिस्ट्रेट के द्वारा करवाए जाने पर तीन महीने के अंदर ही पूरी होनी चाहिए। अपराधी के एनकाउंटर की जानकरी परिवार के लोगों को देना जरुरी है।

इस एनकाउंटर को लेकर सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार आयोग की तरफ से कड़े नियम है। कई ऐसे भी मामले आए हैं जब पुलिस एनकाउंटर पर सवाल उठे हैं। वहीं अदालत की तरफ से ये कहा गया है कि अगर कोई पुलिस का अधिकारी फर्जी एनकाउंटर करता है तो उसके खिलाफ भी हत्या का मामला दर्ज होगा।

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