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Netaji Subhash Chandra Bose की आज 126वीं जयंती, जानते हैं नेताजी बनने की उनकी यात्रा

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Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti: भारत आज 23 जनवरी 2023 को दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती को पराक्रम दिवस के रुप में बड़ी धूमधाम से मना रहा है। नेताजी को जन्म आज ही के दिन 1897 में कटक (उड़ीसा) में हुआ था। उनके पिता जानकी नाथ बोस प.बंगाल के 24 परगना के एक गांव के रहने वाले थे। जो अधिवक्ता की प्रैक्टिस के लिए अपने परिवार को लेकर बंगाल से उड़ीसा आ गये और वहीं पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ था। सौभाग्य से तब तक उनके पिता सरकारी अधिवक्ता पदेन हो गये थे।

सुभाष चंद्र बोस आरंभ किशोरावस्था से ही शिक्षा में बहुत प्रखर थे और उन्होंने इस देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा को पास भी कर लिया था किन्तु उन्होंने बजाय अंग्रेजों का प्रशासनिक अधिकारी के उन्होंने स्वतंत्रता की ओर ले जाने की प्राथमिकता दी, इसीलिए वह देश को पूर्ण स्वराज की ओर ले जाने के उद्देश्य से आगे बढ़ रहे थे। इसी उद्देश्य को पाने के लिए नेताजी  कांग्रेस में सम्मिलित हो गये। जिसके कारण उन्हें लगभग 11 बार जेल भी जाना पड़ा। नेताजी आक्रामक नीति के पक्षधर थे जिसके कारण गांधी-नेहरु के प्रभुत्व वाली कांग्रेस में इन दोनों से वैचारिक मतभेद बढ़ने लगे ।

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एक नई पार्टी का किया गठन

नेताजी का मानना था कि अंग्रेजों से स्वराज केवल अहिंसा के बल पर नहीं पाया जा सकता। बस उनका यही विचार गांधी तथा नेहरु को पसंद नहीं आया और नेताजी ने अपनी राह कांग्रेस अलग कर एक नई पार्टी कांग्रेस फारवर्ड ब्लॉक का गठन कर लिया। इसके पश्चात ही वह कूटनीतिक समर्थन हेतु अलग अलग देशों के दौरों पर निकल गये। उन्होंने सबसे पहले सिंगापुर में जाकर अंग्रजों के विरुद्ध देश की पहली सशस्त्र सेना ‘आजाद हिन्द फौज’ का गठन कर दिया। इसके साथ ही 21 अक्टूबर 1943 को अविभाज्य भारत की प्रथम सरकार का गठन कर रासबिहारी बोस को सेना की कमान सोंप दी।

नौ देशों ने दी थी उनकी सेना और सरकार को मान्यता

सबसे पहले जापान सरकार ने भारत की सेना और सरकार को गठन के दो दिन बाद ही मान्यता दे दी थी। इसके साथ कूटनीतिक रुप से जर्मनी, फिलीपींस, रुस जैसे देशों ने समर्थन कर दिया था। जर्मनी के तानाशाह ने सुभाष चंद्र बोस से प्रथम भेंट में ही ‘नेताजी’ कहकर संबोधित किया था।

भारत के सुप्रसिद्ध रेत कलाकार सुदर्शन पटनायक ने नेताजी को श्रृद्धांजलि देते हुए उड़ीसा तट पर एक रेत मूर्ति बनाई है।

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