Premanand Maharaj: शादीशुदा जीवन में एक औरत का सबसे बड़ा कर्तव्य क्या है? पति-पत्नी का एक-दूसरे के प्रति के क्या कर्तव्य है? ये तमाम सवाल राधा केली कुंज आश्रम में गुरु प्रेमानंद महाराज के संमक्ष गूंजे है। प्रेमानंद महाराज ने अपने एक अनुयायी को चिर-परिचित अंदाज में जवाब देते हुए इसका जवाब दिया है। उन्होंने बताया है कि क्यों अर्धांगिनी को बिना बताए या बिना उसकी सलाह के पति को कोई काम नहीं करना चाहिए? ऐसा करने की स्थिति में अनर्थ हो सकता है। आइए हम आपको Premanand Maharaj के उपदेश के बारे में विस्तार से बताते हैं। साथ ही उनके उपदेश के माध्यम से बताते हैं कि पति-पत्नी का एक-दूजे के प्रति क्या कर्तव्य होता है।
Premanand Maharaj ने शादीशुदा कपल को दिया गुरु मंत्र
गुरु प्रेमानंद महाराज का कहना है कि “पहले आप स्वीकार करो कि मैं भगवान का अंश हूं। ये अंश स्त्री शरीर में आया तो स्त्री शरीर का कर्म हुआ लोक धर्म। हम भगवान के अंश है, तो ये हुआ परम धर्म। परम धर्म का पालन करते हुए भगवान का नाम जप करते हुए अपने परिवार, अपने पति को भगवत स्वरूप मानकर आराधना करना यही एक स्त्री का परम कर्तव्य है। लड़ाई, झगड़ा, कलह, अशांति तब होती है जब हमारे अंदर भेद-बुद्धि होती है। जब भगवत बुद्धि होती है तो सब प्यार भरा जीवन व्यतीत होता है। जब हम सास-ससुर की सेवा करेंगे अपने पति के परिवार को प्रेम देंगे तो पति अपने आप अधीन बना रहेगा। भक्ति में आनंद तो तभी आता है जब हम आपको प्यार करें आप हमें प्रतिकूलता दें।”
Premanand Maharaj आगे कहते हैं कि “पति प्रतिकूल व्यवहार कर रहा है, हर क्षण कष्ट दे रहा है पर हम उसके प्रति भगवत भाव रख रहे हैं तो वो पतिव्रता है। एक दिन पति को अधीन करके सब सुखों को प्राप्त कर लें।”
शादीशुदा जीवन में क्या है पुरुष का परम कर्तव्य?
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि “अपनी अर्धांगिनी को प्राण मानना, बिना उसकी सलाह के कोई धर्म कार्य भी ना करना पुरुष का परम कर्तव्य है। अगर पत्नी थोड़ा रुक्ष, कड़वी स्वभव की है और प्रतिकूलता देती है तो हमें सहन कर जाना चाहिए। सनद रहे कि केवल एक बात ना हो, पत्नी किसी गैर पुरुष से रमण करने की लालसा ना रखती हो तो उसका हर व्यवहार सहन कर लेना चाहिए। पति-पत्नी को बच्चों के प्रति ऐसा कर्तव्य पालन करना चाहिए कि भगवान ने हमको ये बहुत बड़ी सेवा दी है। जैसे हमारे माता-पिता ने हमको स्वस्थ किया, पढ़ा-लिखा के हमको सत् मार्ग दिया। ऐसे ही हमें अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर पुष्ट करके उनकी योग्यता के अनुसार उनका ब्याह आदि कर देना चाहिए। जब तक औलाद व्यापार, नौकरी आदि में व्यवस्थित ना हो, तब तक मां-बाप के लिए कोई धर्म-कर्म तीर्थ यात्रा नहीं है।”