Bihar Assembly Election 2025: पहले चरण के मतदान को लेकर प्रचार का दौर थम चुका है। महागठबंधन और एनडीए के प्रत्याशी अब मतदान के बाद मतपेटिका खुलने का इंतजार करेंगे जिससे उनकी किस्मत का पता चल सके। इस बीच बिहार चुनाव के इस रण में प्रशांत किशोर और असदुद्दीन ओवैसी की चर्चा हो रही है।
महागठबंधन और एनडीए से इतर पीके और ओवैसी फैक्टर बिहार में कितना प्रभावी हो सकता है ये सवाल उठ रहे हैं। क्या ओवैसी और पीके बिहार चुनाव में त्रिकोणीय समीकरण बना सकते हैं? प्रशांत किशोर और ओवैसी एनडीए या महागठबंधन में किसका खेल बिगाड़ सकते हैं? इन सवालों का जवाब ढूंढ़ने के साथ ही बिहार चुनाव के संदर्भ में चर्चा की जाएगी।
पीके और ओवैसी फैक्टर क्या त्रिकोणीय बनाएंगे समीकरण? – Bihar Assembly Election 2025
इस सवाल का पुख्ता जवाब परिणाम की घोषणा के पश्चात ही पता चल सकेगा। हालांकि, ये तय है कि असदुद्दीन ओवैसी और प्रशांत किशोर मजबूती से बिहार में अपनी उपस्थिती दर्ज करा रहे हैं। सांसद ओवैसी जहां एक ओर सीमांचल में डेरा जमाए हुए हैं। वहीं प्रशांत किशोर पिछले 2 वर्ष से ज्यादा समय से बिहार के गांव-गांव घूमकर अपने हिस्से का पक्ष रख रहे हैं। टिप्पणीकारों की मानें तो जनसुराज सवर्णों के वोट बैंक में सेंधमारी कर सकती है।
इसके परिणामस्वरूप प्रशांत किशोर की पार्टी का खाता खुलने के आसार हैं। वहीं 32 सीटों पर उम्मीदवार उतार चुके असदुद्दीन ओवैसी वर्ष 2020 की तरह ही सीमांचल में अच्छा प्रदर्शन कर चौंका सकते हैं। हालांकि, लड़ाई त्रिकोणीय नहीं होता नजर आ रहा है। अब तक के समीकरण को देखें तो बिहार चुनाव में सीधी लड़ाई एनडीए बनाम महागठबंधन की है। ऐसे में ये कहना कि पीके और ओवैसी फैक्टर त्रिकोणीय समीकरण बनाएंगे, थोड़ी जल्दबाजी होगी।
एनडीए या महागठबंधन किसका बिगड़ सकता है खेल?
इस सवाल का स्पष्ट जवाब मतपेटिका खुलने और परिणाम की घोषणा होने के पश्चात ही दिया जा सकता है। हालांकि, हालिया समीकरण जरूर कुछ संकेत दे रहे हैं जिससे संभावित परिणाम को लेकर चर्चा की जा सकती है। यदि ओवैसी की पार्टी सीमांचल के मुस्लिम बहुल सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करेगी, तो इसका सीधा असर महागठबंधन पर पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में एनडीए को फायदा और महागठबंधन को नुकसान होने की संभावना है।
वहीं जनसुराज कहीं से भी महागठबंधन को नुकसान पहुंचाती नहीं नजर आ रही है। जनसुराज को लेकर सवर्ण मतदाताओं में खास उत्साह है। यदि बिहार के सवर्ण मतदाता प्रशांत किशोर की ओर रुझान रखते हैं, तो एनडीए पर इसका प्रतिकूल असर देखने को मिल सकता है। इससे इतर ओवैसी और पीके फैक्टर कहीं से भी बिहार चुनाव को प्रभावित नहीं करते नजर आ रहे हैं। हालांकि, ये कयासों का हिस्सा है। वास्तविकता क्या होगी इसके लिए 14 नवंबर का इंतजार ही एकमात्र विकल्प है, ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।






