Asim Munir: हुकूमत पर पूरी तरह से शिकंजा कस चुके आसिम मुनीर का दबदबा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। पाकिस्तानी सरकार पर मुनीर सेना का नियंत्रण इतना तगड़ा है कि बगैर उनके एक फैसला तक नहीं हो सकता है। याद कीजिए कैसे आसिम मुनीर ने खुद प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल पीस प्राइज के लिए नॉमिनेट कर दिया था। बगैर PM शहबाज से विचार-विमर्श किए Asim Munir का सरकारी नीतियों में हस्तक्षेप तानाशाही की ओर बढ़ता कदम है। दावा किया जा रहा है कि क्रूरता के मामले में मुनीर अपने पूर्व सेना चीफ रहे क्रूर तानाशाह जिया-उल-हक को भी पीछे छोड़ेंगे।
इसकी ताजी बानगी ऐसे समझिए कि पाकिस्तानी सेना पर सवाल उठाने और इनकी पोल खोलने वाले 27 YouTube चैनलों को बैन कर दिया गया है। संघीय जांच एजेंसी (FIA) की शिकायत पर ये फैसला लिया गया है। हालांकि, सभी जानते हैं कि पाकिस्तान में सेना की मर्जी के बगैर पत्ता तक नहीं हिलता। ऐसे में दर्जनों यूट्यूब चैनल बैन करने के पीछे चाहें जो तर्क गढ़ लिए जाएं, वास्तविकता से खुद पाकिस्तानी आवाम भी परिचित होगी।
पाकिस्तानी सेना प्रमुख Asim Munir की पोल खोल कर रहे पत्रकारों पर शिकंजा शुरू!
यूं तो पाकिस्तानी हुकूमत की दमनकारी नीतियां जगजाहिर हैं। कैसे जनरल अयूब खान, याह्या खान, जिया-उल-हक और परवेज मुशर्रफ जैसे क्रूर सेना प्रमुखों ने पाकिस्तानी आवाम को कुचला है ये दुनिया जानती है। अब इसी नक्शे-कदम पर आसिम मुनीर भी चलते नजर आ रहे हैं। दरअसल, पाकिस्तानी आर्मी पर सवाल उठाने और उनकी पोल खोलने वाले 27 यूट्यूब चैनलों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया गया है। ये दमनकारी फैसला इस्लामाबाद में न्यायिक मजिस्ट्रेट अब्बास शाह ने संघीय जांच एजेंसी (FIA) के अनुरोध पर दिया।
फैसला भले ही नियम के दायरे में दिखाने की कोशिश है, लेकिन सभी की पता है कि Asim Munir कैसे दमनकारी नीति अपनाकर विरोध की आवाज को कुचलने का काम कर रहे हैं। यूट्यूब चैनल बैन कर पत्रकारों पर शिकंजा कसना तो बेहद सामान्य है। मुनीर सेना अंदरखाने उन तमाम बलूची कार्यकर्ताओं पर जुल्म ढाह रही है जो अपने हक की आवाज उठा रहे हैं। ये दर्शाता है कि Asim Munir अब तानाशाही के मार्ग पर निकल पड़े हैं और यदि वे क्रूर तानाशाह रहे जिया-उल-हक को भी पीछे छोड़ दें तो आश्चर्य की बात नहीं होगी।
पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में सेना का बोलबाला!
वर्तमान से इतर यदि हम इतिहास के पन्ने पलटें, तो भी हमें पाकिस्तान में सेना का बोलबाला देखने को मिलेगा। शहबाज शरीफ की सरकार हो या इससे पहले के तमाम हुक्मरान। सभी रबड़ स्टैंप के जैसे आर्मी से डर-डरकर अपनी सरकार चलाते हैं। इससे पूर्व पाकिस्तान 4 बार सैन्य तख्तापलट का गवाह बन चुका है। 1958 में जनरल अयूब खान, 1969 में याह्या खान, 1977 में जिया-उल-हक और 1999 में परवेज मुशर्रफ। ये सभी उन सेना प्रमुखों के नाम हैं जिन्होंने पाकिस्तानी हुकूमत को सत्ता से उखाड़ फेकने के बाद खुद सत्ता संभाली थी। अतीत की तर्ज पर Asim Munir भी पाकिस्तान को तख्तापलट के नजदीक धीरे-धीरे ले जा रहे हैं। वो दिन दूर नहीं जब अंदरखाने उठ रही विरोध की आवाज गूंज उठेगी और दमनकारी नीतियों के सहारे मुनीर सत्ता पर कब्जा कर लेंगे।