Surrogacy: विवादों में रही सरोगेसी एक बार फिर मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक में सुर्खियों का विषय बन रही है। दरअसल, चुनावी साल में सीएम नीतीश कुमार ने सरोगेसी को हरी झंडी दे दी है। इसके तहत तय नियम व शर्तों का पालन करते हुए ‘किराए की कोख’ से मां-बाप बन सकेंगे। इसके लिए 5 लाख रुपए का खर्च आएगा। चुनावी साल में सीएम नीतीश कुमार द्वारा Surrogacy को लीगल करने के बाद सरगर्मियां तेज हैं। कई तरह के सवालों से सोशल मीडिया भरा पड़ा है। पूछा जा रहा है कि बिहार सरकार का ये फैसला कितना सही या गलत है। कई ऐसे लोग हैं जो सरोगेसी पर हुए इस फैसले से सहमत हैं। वहीं कई ऐसे हैं जो पुराने विवादों का जिक्र करते हुए खामियां निकाल रहे हैं। तो आइए हम आपको विस्तार से इसके बारे में बताते हैं।
विवादों में रही Surrogacy को नीतीश सरकार की हरी झंडी!
थोड़ा फ्लैशबैक में जाएं तो वर्ष 2013 में गुजरात में सरोगेसी पर हुए विवाद का जिक्र मिलता है। गुजरात के आणंद में डॉ नयन पटेल के अस्पताल में हुई एक सरोगेसी को लेकर विवाद हुआ था। इसके बाद ‘किराए की कोख’ को लेकर नए सिरे से चर्चा छिड़ी। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद तय नियम व शर्तों के तहत Surrogacy को कानूनी बनाया गया। इसी तर्ज पर बिहार की नीतीश सरकार ने भी अब सरोगेसी को लीगल कर दिया है। चुनावी साल में Nitish Kumar द्वारा लिए इस फैसले पर कई तरह के मतभेद हैं। नए ऐलान के मुताबिक सरोगेसी के लिए बना बोर्ड अब क्लिनिकों को लाइसेंस देगा और फिर इच्छुक लोग ‘किराए की कोख’ पर बच्चा पैदा करा सकेंगे। बोर्ड इस बात का ख्याल रखेगा कि कोई क्लिनिक सहायक प्रजनन तकनीक (ART) का दुरुपयोग न करें।
सरोगेसी पर बिहार सरकार का फैसला कितना सही या गलत?
इसको लेकर कई तरह के तर्क हैं। कई मतभेद भी हैं जो सरोगेसी के निर्णय पर उभर कर सामने आ रहे हैं। सकारात्मक पक्ष की बात करें तो नीतीश कुमार के फैसले से उन लोगों को राहत मिलेगी जो Surrogacy के लिए इच्छुक थे और सुविधा के अभाव में दूसरे राज्यों का रुख करते थे। इससे खर्च का भार भी बढ़ता थ। हालांकि, अब बिहार में सरोगेसी लीगल होने से ऐसे लोगों को लाभ मिलेगी और वे अपने पंजीकृत क्लिनिक पर जाकर किफायत में Surrogacy करा सकेंगे। इसका नकारात्मक पक्ष ये है कि अतिरिक्त आय की लालच में कानून का दुरुपयोग शुरू हो जाता है।
ऐसी स्थिति में लोग अविवाहित लड़कियों को इसका हिस्सा बनाकर अवैध तरीके से सरोगेसी को अंजाम देते हैं और काली कमाई करते हैं। हालांकि, नियम के मुताबिक विवाहित महिलाएं ही ‘किराए की कोख’ ले सकती हैं। ऐसे में यदि ART कानून टूटा, तो बिहार सरकार का फैसला यहां गलत होगा। वहीं कायदे से नियम-कानून के तहत चीजें संचालित होती रहीं, तो इससे उन लोगों को लाभ मिलेगा जो ‘किराए की कोख’ पर बच्चा पैदा करने की इच्छा रखते हैं।