Vande Mataram: अक्सर सियासी घटनाक्रमों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले जम्मू-कश्मीर से फिर एक बार हैरान करने वाली खबर आई है। देश में 7 नवंबर को राष्ट्रगती वंदे मातरम के 150वें वर्षगांठ से पूर्व केन्द्र शांसित प्रदेश में हलचल तेज है। एक आदेश के तहत जम्मू-कश्मीर के सभी सरकारी स्कूलों में वंदे मातरम अनिवार्य किया गया है जिस पर इस्लामिक धर्मगुरुओं का एतराज सामने आया है।
विभिन्न इस्लामिक संगठनों से जुड़े मौलवियों ने सख्त प्रतिक्रिया देते हुए बगावती सुर उठाए हैं। ऐसे ही एक संगठन मुत्तहिदा मजलिस ए उलेमा से जुड़े मीरवाइज मौलवी उमर फारूक का कहना है कि वंदे मातरम को अनिवार्य करना इस्लाम धर्म में हस्तक्षेप करने से समान है। इस पूरे प्रकरण को लेकर केन्द्र शासित प्रदेश के सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो गई है और तमाम तरह के दावे सामने आ रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर के सरकारी स्कूलों में Vande Mataram अनिवार्य किए जाने पर संग्राम!
केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में सियासी संग्राम छिड़ा है। इसका प्रमुख कारण है प्रदेश सरकार द्वारा सभी सरकारी स्कूलों में राष्ट्रगीत को अनिवार्य करना। वंदे मातरम की रचना के 150वें वर्षगांठ पर स्थानीय सरकार ने इसे सभी सरकारी स्कूलों के लिए अनिवार्य किया है। इसको लेकर स्थानीय इस्लामिक संगठन मुखर हैं।
मुत्तहिदा मजलिस ए उलेमा से जुड़े मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने बगावती सुर अपनाते हुए इसे इस्लाम धर्म में हस्तक्षेप भरा कदम बताया है। मौलवी फारूक के मुताबिक सरकारी स्कूलों में वंदे मातरम की अनिवार्यता इस्लाम में अस्वीकार्य हों। इस्लामिक संगठन वंदे मातरम के कुछ बोल को इस्लाम की मान्यताओं के विपरीत बताते हुए इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। इस पूरे प्रकरण को लेकर जम्मू-कश्मीर में सियासी संग्राम की स्थिति बनी हुई है।
राष्ट्रीय गीत की 150वीं वर्षगांठ के मौके पर ऐतिहासिक फैसला!
राष्ट्रव्यापी पहल के तहत वंदे मातरम की रचना की 150वीं वर्षगांठ पर देशभर में तरह-तरह के आयोजन होने हैं। सभी राज्य सरकारें खुद तरह-तरह की पहल कर राष्ट्रगीत की 150वीं वर्षगांठ पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों का ऐलान कर रही हैं। इसी क्रम में जम्मू-कश्मीर सरकार ने भी सभी सरकारी स्कूलों में राष्ट्रगीत की अनिवार्यता पर मुहर लगाई है।
इससे इतर 7 नवंबर 2025 से 7 नवंबर 2026 तक विभिन्न तरह के संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इस ऐतिहासिक फैसले को लेकर स्थानीय इस्लामिक संगठन मुखर हैं और वंदे मातरम की अनिवार्यता पर आपत्ति जता रहे हैं।






