MK Stalin: चेन्नई में स्थित डीएमके कार्यालय पर आज चहल-पहल के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं की उपस्थिति है। दरअसल, आज 1 मार्च को सीएम एमके स्टालिन अपना 72वां जन्मदिन मना रहे हैं। वर्ष 2026 में होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनाव से पहले एमके स्टालिन का ये जन्मदिन खास है। MK Stalin ने परिसीमन और हिंदी भाषा के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने के लिए पूरे राज्यवासियों से खास अपील कर दी है। सीएम स्टालिन की आतुरता ये स्पष्ट करती है कि वे Tamil Nadu की सत्ता में वापसी को लेकर गंभीर हैं। पर सवाल है कि क्या ये आसान होगा? एक्टर विजय, कमल हासन, AIADMK और उभरती BJP क्या आसानी से DMK को सत्ता में लौटने देगी? DMK तमिलनाडु में अपनी नैया पार कराने के लिए क्या स्ट्रैटजी अपनाएगी? इन तमाम सवालों का जवाब खोजने की कोशिश की जाएगी।
Actor Vijay, AIADMK और BJP क्या सीएम MK Stalin की सत्ता वापसी में बनेंगे रोड़ा?
एकक्षत्र राज करने का दौर समाप्त हो चुका है और बिगुल बजा है तमिलनाडु विधानसभा चुनाव का। परिसीमन और हिंदी बनाम तमिल की लड़ाई इसका संकेत दे रही है। सबकी नजरें Tamil Nadu की सत्ता में काबिज एमके स्टालिन पर टिकी हैं। सवाल है कि क्या DMK के लिए सत्ता वापसी आसान होगी? बता दें कि तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के लिए चक्रव्यूह रचा जा रहा है। एक्टर विजय, कमल हासन, ई-पलानीस्वामी AIADMK और BJP भी मजबूती से चुनावी मैदान में उतरने का मन बना चुकी है। नतीजा क्या होगा ये तो चुनावी परिणाम आने के बाद पता चलेगा, लेकिन ये लगभग तय है कि तमिलनाडु का चुनाव एकतरफा नहीं होगा। सत्ता वापसी के लिए MK Stalin के नेतृत्व में DMK को कड़ी मेहनत करनी होगी। दक्षिण में उभरती बीजेपी, AIADMK, कमल हासन और एक्टर विजय डीएमके को खुला मैदान नहीं देंगे। ऐसे में देखना होगा आगे क्या होता है।
Tamil Nadu में कैसे पार होगी सीएम एमके स्टालिन की नैया?
गौर करने वाली बात है कि डीएमके तमिलनाडु में बीजेपी को केन्द्र रखकर टकराने का मन बना चुकी है। NEP के मुद्दे पर हिंदी बनाम तमिल की लड़ाई को धार देना इसका प्रमुख संकेत है। इसके अलावा सीएम MK Stalin लगातार एक्टर विजय को बीजेपी का सहयोगी बता रहे हैं। कमल हासन और AIADMK पर भी सीएम स्टालिन बराबर से निशाना साध रहे हैं। ऐसे में फिलवक्त ये स्पष्ट नजर आ रहा है कि DMK तमिल के चुनावी मैदान में अकेले उतरेगी। सीएम एमके स्टालिन के नेतृत्व में डीएमके हिंदी बनाम तमिल की लड़ाई को सबसे बड़ा हथियार बनाकर चल रही है। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या डीएमके की ये स्ट्रैटजी कितना सफल हो पाती है।