Delhi Pollution: दिल्ली इस समय गंभीर प्रदूषण से जूझ रही है। राजधानी में प्रदूषण ने लोगों और पर्यावरण दोनों पर बहुत बुरा असर डाला है। सरकार इन समस्याओं से निपटने के लिए हर दिन युद्ध स्तर पर काम कर रही है। इन सभी कोशिशों के बावजूद, दिल्ली की हवा में प्रदूषण कम होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। यह चिंताजनक स्थिति राज्य के आम लोगों, खासकर किशोरों के जीवन पर एक गहरा असर डाल रही है। हाल ही में सामने आई कई तस्वीरों में किशोर प्रदूषण से प्रभावित होने के बाद अस्पतालों में इलाज करवाते दिख रहे हैं, जो इस बात की पुष्टि करता है कि भविष्य कितना चुनौतीपूर्ण होने वाला है। इन सबके बीच, दुनिया के लिए यह समझना बहुत ज़रूरी है कि वैज्ञानिकों ने इंसानी शरीर पर, खासकर किशोरों के दिमाग पर प्रदूषण के असर के बारे में क्या कहा है।
टीनएजर्स के दिमाग के लिए भी खतरा? – Delhi Pollution
मालूम हो कि हवा में मिश्रित प्रदूषण न सिर्फ इंसानों के फेफड़ों और दिल को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि बच्चों के बढ़ते दिमाग को भी नुकसान पहुंचा सकता है। ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी से जुड़े वैज्ञानिकों की एक नई स्टडी में इस बात की पुष्टि हुई है। जर्नल एनवायरनमेंटल रिसर्च में छपी रिसर्च में पाया गया कि प्रदूषित हवा बच्चों के दिमाग के विकास पर गंभीर असर डाल सकती है। इसका मतलब है कि प्रदूषण सिर्फ वयस्कों का दुश्मन ही नहीं, बल्कि टीनएजर्स को भी प्रभावित कर सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, प्रदूषण सीधे किशोरों के दिमाग के फ्रंटल और टेम्पोरल लोब को प्रभावित करता है, जिससे सोचने, भाषा और भावनाओं को कंट्रोल करने और सामाजिक व्यवहार जैसी ज़रूरी क्षमताओं पर असर पड़ सकता है।
प्रदूषित हवा इन अंगों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक – दिल्ली प्रदूषण
यह ध्यान देने वाली बात है कि इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एबीसीडी स्टडी’ से डेटा का एनालिसिस किया। यह अमेरिका में सबसे बड़ा ब्रेन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट है। इस शोध में लगभग 11000 बच्चे शामिल थे। जिनकी उम्र महज नौ से दस साल की थी, जो कि किशोरावस्था की शुरुआत होती है। अध्ययन के नतीजों पर प्रकाश डालते हुए प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर कैल्विन जारा ने प्रेस विज्ञप्ति में जा बाते कही हैं उसे देश और दुनिया को जानना महत्वपूर्ण है।
बता दें कि कैल्विन जारा ने कहा, “हवा में कम मात्रा में मौजूद आम प्रदूषक अगर लंबे समय तक टीनएजर्स के शरीर में जाते रहें तो वे विकसित हो रहे दिमाग पर धीर-धीरे दबाव डालते हैं।” इतना ही नहीं अध्ययन में पाया गया कि पार्टिकुलेट मैटर, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और ओजोन जैसे प्रदूषकों के संपर्क से दिमाग की बाहरी परत यानी कॉर्टेक्स की मोटाई असामान्य रूप से कमती जा रही है। वैज्ञानिक आगे बताते हैं कि, अगर यह प्रक्रिया आने वाले समय में तेज हो जाए तो ध्यान, याददाश्त और सीखने की क्षमता पर बुरा असर पड़ने की संभावना देखने को मिल सकती है।






