Maha Kumbh 2025: तीर्थराज प्रयागराज में इन दिनों महाकुंभ का आयोजन हो रहा है। मेले के आकर्षण की चर्चा देश-दुनिया में हो रही है। गंगा तट पर जगमगाती रोशनी, मेले में बने पंडाल और रहने के लिए बांस जैसे प्राकृतिक संसाधनों से बने घर महाकुंभ की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं। Maha Kumbh 2025 में विज्ञान के साथ आध्यात्म का संगम भी देखने को मिल रहा है।
महाकुंभ के मेले में साधु-महात्माओं, श्रद्धालुओं और मोटर वाहनों के आवागमन को सुगम बनाने के लिए 30 पीपा पुल बनाए गए हैं। त्रिवेणी संगम नदियों की लहरों में बिना खंभों वाले 2200 से अधिक काले कैप्सूल नुमा लोहे के बक्सों पर टिका यह पीपा पुल दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। जिसकी देश-दुनिया में खूब चर्चा हो रही है। हालांकि पीपा पुल का इतिहास पुराना है। जिसे विज्ञान से जोड़ा गया है। विशेषज्ञ कहते रहे हैं कि पीपा पुल का निर्माण फारसी तकनीक से प्रेरित था।
आर्किमिडीज सिद्धांत का पीपा पुल से संबंध
आर्किमिडीज का सिद्धांत विशेष रूप से किसी द्रव में डूबी हुई वस्तु पर लगने वाले उत्प्लावन बल को संदर्भित करता है। अगर हम इसकी मानें तो किसी भी द्रव में डूबी हुई वस्तु, पिंड पर ऊपर की ओर एक उत्प्लावन बल लग रहा है, जो उस वस्तु या पिंड के विस्थापित भार के बराबर होता है। इसे हम Archimedes Principle कहते हैं।
अब बात करते हैं Maha Kumbh में बने पीपा पुल और आर्किमिडीज सिद्धांत की। दरअसल Triveni Sangam Rivers तरल की श्रेणी में आती हैं। मालूम हो कि नदी का पानी हमेशा तरल रहता है। हालांकि इसमें द्रव भी शामिल है, जिसकी कोई निश्चित संरचना नहीं होती, बल्कि वह हमेशा इधर-उधर हिलता-डुलता रहता है।
मालूम हो कि महाकुंभ में त्रिवेणी संगम की नदियों पर Pipa Bridge का निर्माण किया गया है। इसमें सबसे पहले कैप्सूलनुमा लोहे के बक्से बनाए गए। इन्हें नदियों पर बिछाया गया। इस पर लोहे की मोटी चादर की परत चढ़ाई गई ताकि लोगों और वाहनों का आवागमन आसान हो सके। पीपा पुल के कैप्सूलनुमा लोहे के बक्से उछाल बल के साथ नदियों पर तैर रहे हैं। यानी यह स्पष्ट है कि जो नदी तरल है और जिसमें तरल द्रव है, वह कैप्सूलनुमा लोहे के बक्सों वाली पीपा पुल के वजन के बराबर ऊपर की ओर उछाल बल दे रही है, जिसके कारण वे नदी पर टिके हुए हैं।
पीपा पुल का फारसी तकनीक से संबंध
पीपा पुल दुनिया भर की नदियों पर विशेष परिस्थितियों में बनाए जाते हैं। यह पहली बार 480 ईसा पूर्व में पेपिरस पोंटून के नाम से अस्तित्व में आया था। उस समय फारसी राजा जेरेक्सेस प्रथम सत्ता में था। उसने अपनी दमनकारी शक्ति का भरपूर इस्तेमाल किया और ग्रीस पर हमला कर दिया। इस दौरान जेरेक्सेस ने डार्डानेल्स स्ट्रेट को पार करने के लिए पेपिरस Pontoon के निर्माण का आदेश दिया।
इसके लिए भी वर्तमान में नदियों पर बनाए जा रहे Pontoon Bridge Persian Technology का नतीजा बताए जाते हैं। मालूम हो कि पेपिरस की पहचान जलीय पौधे के रूप में होती है। इससे मोटा कागज बनाया जाता है। वहीं पोंटून नदियों के बीच में तैरने वाली संरचना होती है। इसके अलावा 11वीं शताब्दी ईसा पूर्व में चीन पर झोऊ राजवंश का शासन था। उनके शासन के दौरान सैन्य बलों की आवाजाही के लिए पोंटून पुल का निर्माण किया गया था।
आपको बता दें कि सदियों पहले भारत में भी पीपा पुल का निर्माण हुआ था। लकड़ी का पहला पीपा पुल अंग्रेज इंजीनियर सर ब्रैडफोर्ड लेस्ली ने 1847 में कोलकाता में हुगली नदी पर बनाया था। हालांकि, एक चक्रवात में यह क्षतिग्रस्त हो गया था। इसके बाद 1943 ई. में इसको तोड़ दिया गया था। वर्तमान में इसी स्थान पर हावड़ा ब्रिज है। जिसे रवींद्र सेतु के नाम से भी जाना जाता है। यह पुल एक कैंटिलीवर ब्रिज है। इसमें बीच में नदी से जुड़ा एक भी पिलर नहीं है। जो कि Pontoon Bridge यानी पीपा पुल के इतिहास को बल प्रदान करता है।