Premanand Maharaj: राधा केली कुंज आश्रम में मोह-माया, व्यक्तिगत जीवन, आर्थिक परेशानी समेत अन्य कई पहलुओं से जुड़े सवालों की बौछार लगी रहती है। प्रेमानंद महाराज के अनुयायी भारी संख्या में राधा केली कुंज में पहुंचकर अपने मन में उठ रहे तमाम सवालों का जवाब जानते हैं। ऐसे ही एक युवक ने प्रेमानंद महाराज के दरबार में अपनी निजी समस्या को लेकर गुहार लगाई है। युवक ने Premanand Maharaj के समक्ष सवाल पूछा कि “मेरा मन स्त्रियों के प्रति नहीं बल्कि पुरुषों के प्रति आकर्षित होता है। हालांकि, मां-बाप जबरदस्ती मेरी शादी कराना चाहते हैं। क्या करूं? युवक के इस सवाल का जवाब गुरु प्रेमानंद महाराज ने बड़े तार्किक अंदाज में दिया है जिसे सुन लोगों की आंखें खुल सकती हैं।
शादी के लिए ‘मां-बाप’ की जबरदस्ती से परेशान युवक का सहारा बने Premanand Maharaj
गुरु प्रेमानंद महाराज युवक से कहते हैं कि “यह बात अपने माता-पिता को बता दो। बच्चा किसी की लड़की के साथ खिलवाड़ क्यों करोगे। मुझे लगता है कि तुम्हें माता-पिता से अपनी बात बता देनी चाहिए। वे कैसे नहीं मानेंगे, जब तुम्हारा लड़कियों के बजाय लड़कों के प्रति आकर्षण है तो व्यर्थ में कि किसी लड़की से ब्याह कर उसका जीवन बर्बाद मत करो। तुम भूलकर भी विवाह मत करनाष जब स्त्री में तुम्हारा राग नहीं है तो किसी का जीवन बर्बाद क्यों करोगे।” Premanand Maharaj का कहना है कि “किसी लड़की के जीवन में धोखेबाजी ना करें। आप अपने मम्मी-पापा से अपनी बात कहें और किसी लड़की की जिंदगी नर्क न बनाएं।” प्रेमानंद महाराज के कथन का अंश भजनमार्ग के आधिकारिक यूट्यूब चैनल से जारी किया गया है।
प्रेमानंद महाराज का खास संदेश सुन खुल जाएंगी आंखें
मथुरा में स्थित राधा केली कुंज आश्रम में अपनी समस्या लेकर पहुंचे एक युवक को संबोधित करते हुए गुरु प्रेमानंद ने एक बार फिर लकीर खींच दी है। प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि “भगवान ने हमे जो वृत्ति दी है वो किसी से बताना गलत नहीं है। भगवान ने हमें बनाया है तो अपने माता-पिता को बोल देना चाहिए हमारा आकर्षण लड़कों या लड़कियों के प्रति है। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो किसी लड़की या लड़के के जीवन से खिलवाड़ हो जाएगा।” Premanand Maharaj ने शादी के लिए बच्चों के समक्ष जिद और जबरदस्ती करने वाले मां-बाप के लिए भी अहम बात कह दी है। गुरु प्रेमानंद का कहना है कि “सभी मां-बाप अपने बच्चों को अच्छे से समझें। मां-बाप की जिम्मेदारी है कि बच्चों की जरूरतों को समझते हुए उनके जीवन से जुड़े फैसले लें। जोर-जबरदस्ती कदाचित न करें।”