H-1B Visa: अमेरिका की तरफ से पहले भारत पर 50 प्रतिशत का टैरिफ लगाया गया है, और अब डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने एच-1बी वीजा पर शुल्क बढ़ा दिया है। यानि अब आवेदकों को वीजा के लिए 1 लाख डॉलर देना होगा, यानि 88 लाख रूपये। हालांकि अब अमेरिकी सरकार की तरफ से सफाई है, साथ ही यह भी जानकारी दी गई है, किन लोगों को यह 88 लाख रूपये देने होंगे। इसके अलावा इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने इसपर अपनी प्रतिक्रिया दी है। बता दें कि इस बढ़े शुल्क से सबसे ज्यादा नुकसान भारतीयों के होने की उम्मीद है क्योंकि 70 प्रतिशत भारतीय इसके लिए अप्लाई करते है।
H-1B Visa पर अमेरिका ने मारी पलटी
व्हाइट हाउस ने शनिवार को अपनी नई एच-1बी वीज़ा नीति पर एक बड़ा स्पष्टीकरण जारी किया, जिसने तकनीकी उद्योग को हिलाकर रख दिया था। इसमें कहा गया है कि 100000 डॉलर का शुल्क “एकमुश्त” होगा और यह केवल नए आवेदकों पर लगाया जाएगा। हालांकि अमेरिकी सरकार ने व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने नई नीति के लागू होने से कुछ घंटे पहले शनिवार को एक स्पष्टीकरण जारी किया। जिसमे उन्होमने कहा कि यह कोई वार्षिक शुल्क नहीं है। यह एकमुश्त शुल्क है जो केवल नए वीज़ा पर लागू होता है, नवीनीकरण पर नहीं, और मौजूदा वीज़ा धारकों पर नहीं।” यह कार्यकारी आदेश, जिसे कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, 21 सितंबर 2025 से लागू होगा।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने दी विशेष जानकारी
बता दें कि एच-बी वीजा पर विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर नजर आ रहा है, वहीं अब भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि “सरकार ने अमेरिकी एच1बी वीज़ा कार्यक्रम पर प्रस्तावित प्रतिबंधों से संबंधित रिपोर्टें देखी हैं। इस उपाय के पूर्ण निहितार्थों का अध्ययन सभी संबंधित पक्षों द्वारा किया जा रहा है, जिसमें भारतीय उद्योग भी शामिल है, जिसने एच1बी कार्यक्रम से संबंधित कुछ धारणाओं को स्पष्ट करते हुए एक प्रारंभिक विश्लेषण पहले ही प्रस्तुत कर दिया है। भारत और अमेरिका दोनों के उद्योगों की नवाचार और रचनात्मकता में रुचि है और उनसे आगे के सर्वोत्तम मार्ग पर परामर्श की अपेक्षा की जा सकती है।
कुशल प्रतिभाओं की गतिशीलता और आदान-प्रदान ने संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत में प्रौद्योगिकी विकास, नवाचार, आर्थिक विकास, प्रतिस्पर्धात्मकता और धन सृजन में अत्यधिक योगदान दिया है। इसलिए नीति निर्माता हाल के कदमों का मूल्यांकन पारस्परिक लाभों को ध्यान में रखते हुए करेंगे, जिसमें दोनों देशों के बीच मज़बूत जन-जन संबंध शामिल हैं। इस कदम से परिवारों पर पड़ने वाले व्यवधान के रूप में मानवीय परिणाम होने की संभावना है। सरकार को उम्मीद है कि अमेरिकी अधिकारी इन व्यवधानों का उचित समाधान कर सकेंगे”।