SEBI: सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया यानि सेबी ने अमेरिकी ट्रेडिंग फर्म Jane Street पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। दरअसल SEBI ने यह फैसला भारत के रिटेल इनवेस्टर्स के हितों को ध्यान में रखते हुए लिया है। दरअसल जेन स्ट्रीट ग्रुप पर यह आरोप है कि उसने गलत तरीके से भारतीय शेयर मार्केट से पैसा कमाया है। उसने Nifty 50 इंडेक्स को आर्टिफिशियल तरीके से प्रभावित करने के लिए कई रणनीतियों का इस्तेमाल किया। बताते चले कि निफ्टी 50 डंडेक्स में देश की 50 टॉप कंपनियां शामिल है।
SEBI ने ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म Jane Street पर लगाया पूर्ण प्रतिबंध
SEBI ने जेन स्ट्रीट ग्रुप द्वारा सूचकांक में हेराफेरी के मामले में अंतरिम आदेश पारित किया है और अवैध तरीकों से अर्जित 4843.57 करोड़ रुपये की वसूली के लिए अब तक का सबसे बड़ा जुर्माना लगाया है। यह आदेश जेन स्ट्रीट ग्रुप के अंतर्गत आने वाली चार प्रमुख संस्थाओं पर लक्षित है। जिसमे जेएसआई इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड, जेएसआई2 इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड, जेन स्ट्रीट सिंगापुर प्राइवेट लिमिटेड और जेन स्ट्रीट एशिया ट्रेडिंग लिमिटेड शामिल है।
सेबी द्वारा पारित अंतिम आदेश के अनुसार अमेरिकी ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म जेन स्ट्रीट और उसकी संबंधित संस्थाओं ने पिछले दो वर्षों में इंडेक्स डेरिवेटिव्स के व्यापार से 36000 करोड़ रुपये से अधिक का लाभ कमाया है। सेबी ने अपने आदेश में कहा है कि समूह ने बाजार में हेराफेरी करने के लिए लाभ अधिकतम करने की योजना का इस्तेमाल किया और सूचकांक विकल्पों में पर्याप्त लाभ दर्ज किया, जबकि नकद और वायदा खंडों में कम नुकसान हुआ।
सेबी जेन स्ट्रीट ग्रुप के 4843 करोड़ रूपये करेगी जब्त
बता दें कि SEBI ने अपने आदेश में साफ कहा है कि वह Jane Street ग्रुप द्वारा 4843 करोड़ रूपये का अवैध मुनाफा किया है, उसे जब्त किया जाएगा, यानि सेबी उस पैसों को वापस लेगी। जानकारी के मुताबिक सेबी के 105 पेज के आदेश में कहा गया है कि अंतरिम कार्रवाई समूह द्वारा छेड़छाड़पूर्ण व्यापार प्रथाओं की विस्तृत जांच के बाद की गई है, विशेष रूप से एनएसई पर सूचकांक विकल्पों की साप्ताहिक समाप्ति के आसपास।
यह मामला अप्रैल 2024 में मीडिया रिपोर्टों से उपजा है, जो भारतीय बाजारों में जेन स्ट्रीट की मालिकाना रणनीतियों से जुड़े कानूनी विवादों की ओर इशारा करता है। उल्लंघन की गंभीरता और विनियामक चेतावनियों के प्रति निरंतर उपेक्षा को देखते हुए, सेबी ने निष्कर्ष निकाला कि बाजार की अखंडता और निवेशक हितों की रक्षा के लिए तत्काल हस्तक्षेप आवश्यक था।