Bihar Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है राज्य में सियासी पारा चढ़ता जा रहा है। दो चरणों में होने वाले चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नामांकन की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है। 2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार में सत्ता की सियासी जंग एनडीए और महागठबंधन के बीच थी। हालांकि समय के साथ बिहार के राजनीतिक हालात बदल गए हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर है। लेकिन जनसुराज, एआईएमआईएम, द प्लुरल्स और जनशक्ति जनता दल ने सबका राजनीतिक खेल बिगाड़ दिया है।
इतना ही नहीं, बिहार के पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे ने भी अपनी नई राजनीतिक पार्टी हिंद सेना बनाई है और दो विधानसभा सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर खुद चुनाव लड़ रहे हैं। बिहार में कुल 243 विधानसभा सीटें हैं। राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी या गठबंधन के पास 122 सीटें होनी चाहिए।
एनडीए में भाजपा, जदयू, लोजपा (रामविलास), हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा शामिल हैं। वहीं, महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, विकासशील इंसान पार्टी और सीपीआई जैसी पार्टियाँ शामिल हैं। इसके अलावा इंडियन इन्क्लूसिव पार्टी भी महागठबंधन का हिस्सा है। इंडियन इन्क्लूसिव पार्टी के प्रमुख आईपी गुप्ता पहले ही दावा कर चुके हैं कि वह महागठबंधन का हिस्सा हैं।
तेजस्वी यादव बनेंगे बिहार के मुख्यमंत्री?– Bihar Assembly Election 2025
बिहार में एनडीए को हराने के लिए महागठबंधन ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अथक प्रयास किया है। कुल मिलाकर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों की घोषणा से पहले, महागठबंधन के सभी घटक दल बिहार में एकजुट दिखाई दिए। हालांकि चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद पिछले कुछ दिनों में जो तस्वीरें सामने आईं, उनसे महागठबंधन के भीतर संकट का पता चला।
इसके अलावा टिकट बंटवारे को लेकर अंदरूनी कलह की स्थिति साफतौर पर देखने को मिली। सीट बंटवारे को लेकर तीखा विवाद हुआ। कुल मिलाकर बीते कुछ दिनों में महागठबंधन घटक दलों के भीतर की कलह खबरों में रही है। इसके अलावा, तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने में आधिकारिक रूप से देरी से राजद कुनबा नाराज रहा। मुकेश सहनी भी जल्द ही खुद को उपमुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। कांग्रेस इस सब से खास तौर पर अलग ही राजनीति में व्यस्त दिखी।
इस बीच बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर उम्मीदवारों के नामांकन की प्रक्रिया अपने अंतिम समय पर समाप्त हो चुकी है। महागठबंधन के भीतर स्थिति स्पष्ट न होने के साथ इंडिया अलायंस के कई सहयोगी राज्य भर की कई विधानसभा सीटों पर एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार बन गए। हालाँकि ऐसी खबरें हैं कि कई उम्मीदवारों ने अब अपना नामांकन वापस ले लिया है, जबकि कई अन्य अभी भी मैदान में डटे हुए हैं।
बहरहाल, लंबे समय से चल रही अंदरूनी राजनीतिक उठापटक के बाद आखिरकार महागठबंधन ने बिहार विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री फेस को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। ताज़ा अपडेट यह है कि गुरुवार को पटना के एक होटल में महागठबंधन की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई। कॉन्फ्रेंस में सभी ने सर्वसम्मति से तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। वहीं, विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी को चुनाव परिणाम पक्ष में आने पर उपमुख्यमंत्री बनाने की बात कही गई।
इन वजहों से महागठबंधन का सपना कहीं टूट न जाए!
मालूम हो कि राजनीति में हर पल का अपना महत्व होता है। क्रिकेट के मैदान की तरह हर गेंद अपनी गति के आधार पर हिट होती है। बिहार की राजनीति में सदियों से जातिवाद का बोलबाला रहा है। पिछले कुछ वर्षों में स्थिति बदली है। तकनीक ने गाँव हो या शहर सभी वर्गों के लोगों के बीच संवाद के माध्यमों को इतना मज़बूत कर दिया है कि अब हर कोई अपने वोट की कीमत समझता है।
कुल मिलाकर कहा जाए तो एक नकारात्मक संदेश किसी का भी खेल बिगाड़ सकता है। बिहार में महागठबंधन के साथ भी कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है। जिसमें महागठबंधन के घटक दलों ने समय रहते अपने अंदरूनी विवादों को सुलझाने में देरी कर दी।
इस स्थिति में भाजपा, जदयू और एनडीए के अन्य घटक दल इंडिया अलायंस पर हावी होते दिखें। यह तस्वीर मीडिया में रोज़ाना वायरल होती रही हैं। इन सबके बीच गुरुवार को बिहार की राजधानी पटना से महागठबंधन समर्थकों के लिए एक अच्छी खबर आई। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत महागठबंधन में सब कुछ ठीक-ठाक करने के लिए पटना में हैं।
गहलोत ने महागठबंधन की अंदरूनी कलह को खत्म कर सभी को एकजुट होकर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 लड़ने के लिए राजी कर लिया है। ऐसी खबरें अब मीडिया में सुर्खियाँ बन रही हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो यदि कांग्रेस ने यह प्रयास पहले किया होता तो अबतक बिहार की चुनावी परिदृश्य अलग होता।